ब्रजभाषा में ठंड पै नवनिर्मित ब्रजकविता-
भयौ अपहरण धूप कौ, सबरी जनता मौन ।
कोहरौ थानेदार है, रपट लिखाबै कौन ।
ओह सर्दी! तू इतनी मत इतराबै, हमकूँ मत तू आंख दिखाबै ।
अब ही चली जा, हिम्मत होय तौ जून में आ...
किट-किट करकैं दाँत बजैं, जाडेन में पाँव और हाथ जमैं ।
वैसैं सब हैमत हैं खास, ठंड की है कछु अलग ही बात ।
देर सबेरे तक सब सोमैं, बेगि ना कोई उठतौ है ।
सर्द हवा जो घुस जाबै तौ एक करंट सौ लगतौ है ।
दिल करतौ है नाँय करें कोई काम, बस रजाई में करते रहमें आराम ।
खर्चा पाउडर, डियो कौ सब हर रोज बचतौ जाबै,
ढकौ रहै तन जे अपनौ, मच्छरहु काटन ना पाबै ।
सूरज मध्धम सौ भयौ, मौसम सिसकी लैंतौ है,
कोहरौ नाचे मोर-सौ, ठंड ठहाकौ देंतौ है।
गरम पकौड़े मन कूँ भावै, गर्म चाय कूँ मौह ललचाबै ।
सबरे लोग अब सोच रहे हैं, जल्दी ते सर्दी भग जाबै ।
*पंडित ओमन सौभरि भुर्रक/ओमप्रकाश शर्मा*
भयौ अपहरण धूप कौ, सबरी जनता मौन ।
कोहरौ थानेदार है, रपट लिखाबै कौन ।
ओह सर्दी! तू इतनी मत इतराबै, हमकूँ मत तू आंख दिखाबै ।
अब ही चली जा, हिम्मत होय तौ जून में आ...
किट-किट करकैं दाँत बजैं, जाडेन में पाँव और हाथ जमैं ।
वैसैं सब हैमत हैं खास, ठंड की है कछु अलग ही बात ।
देर सबेरे तक सब सोमैं, बेगि ना कोई उठतौ है ।
सर्द हवा जो घुस जाबै तौ एक करंट सौ लगतौ है ।
दिल करतौ है नाँय करें कोई काम, बस रजाई में करते रहमें आराम ।
खर्चा पाउडर, डियो कौ सब हर रोज बचतौ जाबै,
ढकौ रहै तन जे अपनौ, मच्छरहु काटन ना पाबै ।
सूरज मध्धम सौ भयौ, मौसम सिसकी लैंतौ है,
कोहरौ नाचे मोर-सौ, ठंड ठहाकौ देंतौ है।
गरम पकौड़े मन कूँ भावै, गर्म चाय कूँ मौह ललचाबै ।
सबरे लोग अब सोच रहे हैं, जल्दी ते सर्दी भग जाबै ।
*पंडित ओमन सौभरि भुर्रक/ओमप्रकाश शर्मा*