💐 *बच्चन में संस्कार बचपन ते ही दैमते रहने चहियैं* 💐
एक संत नै एक द्वार पै घुसते भये आवाज लगायी' " भिक्षाम् देहि"। इतेक ही में एक छोटी बच्ची बाहर आयी और बोली- बाबा हम तौ बहौत ही ग़रीब हैं, तिहारे लैं हमारे पास दैवे कूँ कछु नाँय । संत बोले- अरी लाली(छोरी) नाँयी मत करै, अपने आँगन की धूल ही दै दै । छोरी नै एक मुट्ठी भर कैं धूल उठायी और बाबा कूँ दै दई । संत के संग चलबे बारे शिष्य नैं पूछी, गुरु जी! धूलहु कोई भिक्षा हैमतै काह? आपने वा लाली कूँ धूल दैवे की चौं कही ? संत बोले- लाला, अगर बू आज "ना" कह दैमती फिर कबहु ना दै पामती, आज धूल दई तौ काह भयौ, वामें कछु दैवे की कम ते कम भावना तौ जाग गयी । कल सामर्थवान होयगी तौ फल-फुलहु देगी । *जितेक छोटी कथा है निहतार्थ उतनौ ही बड़ौ*
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Braj Kavita-
देहरी, आंगन, धूप अनुपस्थित।
ताल, तलैया, कुआ अनुपस्थित।
घूँघट वारौ रूप अनुपस्थित। डलिया,चलनी,सूप अनुपस्थित।
आया समय फ्लैट कल्चर कौ,
चौक, आंगन और छत अनुपस्थित।
हर छत पै पानी की टंकी,
पोखर, तालाब, नदी अनुपस्थित।।
लाज-शरम चंपत आँखन ते,
घूँघट वारौ रूप अनुपस्थित।
पैकिंग वारे चावल, दालें,
चक्की,चलनी, सूप अनुपस्थित।
बढ़ीं गाड़ियां, जगह कम पड़ी,
सड़कन के फुटपाथ अनुपस्थित।
लोग भये बेमतलब सब,
मदद करें वे हाथ अनुपस्थित।
मोबाइल पै चैटिंग चालू,
यार-दोस्त कौ संग अनुपस्थित।
बाथरूम, शौचालय घर में,
घेर, गौत, जंगल अनुपस्थित।
हरियाली के दर्शन दुर्लभ,
कोयलिया की कूक अनुपस्थित।
घर-घर जलैं गैस के चूल्हे,
चिमनी वारी फूंक अनुपस्थित।
मिक्सी, लोहे की अलमारी,
सिलबट्टा, संदूक अनुपस्थित।
मोबाइल सबके हाथन में,
विरह, मिलन की बात अनुपस्थित।
बाग-बगीचे खेत बन गए,
जामुन, बरगद, पेड़ अनुपस्थित।
सेब, संतरा, चीकू बिकते
चिलमटरी,गोंदी, गूलर, अनुपस्थित।
ट्रैक्टर ते है रही जुताई,
जोत-जात में मेंड़ अनुपस्थित।
रेडीमेड बिक रह्यौ ब्लैंकेट,
पालन के घर भेड़ अनुपस्थित।
लोग बढ़ गए, बढों अतिक्रमण,
जुगनू, तितली, झाड़ अनुपस्थित।
कमरे बिजली ते रहे चमक,
आरे, खूंटी, टांड़ अनुपस्थित।
चावल पकवे लगौ कुकर में,
बटलोई कौ मांड़ अनुपस्थित।
कौन चबाए चना-चनौरी,
भड़भूजे कौ भाड़ अनुपस्थित।
पक्के ईंटन वारे घर हैं,
छप्पर और खपरैल अनुपस्थित।
बिछे खड़ंजा गली-गलीन में,
कीच- धूल और गैल अनुपस्थित।
चारे में हु मिलौ केमिकल,
गोबर ते गुबरैल अनुपस्थित।।
शर्ट-पैंट कौ फैशन आयौ,
धोती और लंगोट अनुपस्थित।
खुले-खुले परिधान आ गए,
बंद गले के लत्ता अनुपस्थित।।
आँचल, चोली और दुपट्टे
घूंघट वारी ओट अनुपस्थित।
बढ़ी महंगाई के सब मारें
एक-पांच के नोट अनुपस्थित।।
लोकतंत्र अब भीड़तंत्र है,
जनता की पहचान अनुपस्थित।
कुर्सी पानौ राजनीति है,
नेता से सच्चाई अनुपस्थित।
गूगल विद्यादान कर रह्यौ,
गुरु जी कौ सम्मान अनुपस्थित।
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हमारौ ग्रुप प्रेम कौ मंदिर है,
जे बहुत ही सुन्दर है,
याय और सुन्दर बनाऔ।
मन ऐसौ रखो कै,
काहु कूँ बुरौ ना लगै।
हृदय ऐसौ रखौ कै,
काहु कूँ दुःखी नाँय करैं।
संबंध ऐसौ रखो कै,
वाकौ अंत न होय।
हमने रिश्तेन कूँ संभालौ है मोतीन की तरह,
कोई गिरहु जाए तौ झुक कैं उठा लैमतें ।
ग्रुप नाँय जे परिवार है,
बसतौ जहाँ पूरौ प्यार है।
सुख के तौ साथी हजार हैं,
यहां सब जिंदगी के आधार हैं ।
अपनौं सौ प्यार है यहाँ,
या के लैं सबन कौ आभार है ।
काम होय कोई तौ बता दीजौं,
या ग्रुप में हर कोई तैयार है ।
सबन कूँ साथ जोडबे के लैं,
सबन कौ हृदय ते आभार है ।
*ब्राह्मण ओमन सौभरि भुर्रक*
एक संत नै एक द्वार पै घुसते भये आवाज लगायी' " भिक्षाम् देहि"। इतेक ही में एक छोटी बच्ची बाहर आयी और बोली- बाबा हम तौ बहौत ही ग़रीब हैं, तिहारे लैं हमारे पास दैवे कूँ कछु नाँय । संत बोले- अरी लाली(छोरी) नाँयी मत करै, अपने आँगन की धूल ही दै दै । छोरी नै एक मुट्ठी भर कैं धूल उठायी और बाबा कूँ दै दई । संत के संग चलबे बारे शिष्य नैं पूछी, गुरु जी! धूलहु कोई भिक्षा हैमतै काह? आपने वा लाली कूँ धूल दैवे की चौं कही ? संत बोले- लाला, अगर बू आज "ना" कह दैमती फिर कबहु ना दै पामती, आज धूल दई तौ काह भयौ, वामें कछु दैवे की कम ते कम भावना तौ जाग गयी । कल सामर्थवान होयगी तौ फल-फुलहु देगी । *जितेक छोटी कथा है निहतार्थ उतनौ ही बड़ौ*
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Braj Kavita-
देहरी, आंगन, धूप अनुपस्थित।
ताल, तलैया, कुआ अनुपस्थित।
घूँघट वारौ रूप अनुपस्थित। डलिया,चलनी,सूप अनुपस्थित।
आया समय फ्लैट कल्चर कौ,
चौक, आंगन और छत अनुपस्थित।
हर छत पै पानी की टंकी,
पोखर, तालाब, नदी अनुपस्थित।।
लाज-शरम चंपत आँखन ते,
घूँघट वारौ रूप अनुपस्थित।
पैकिंग वारे चावल, दालें,
चक्की,चलनी, सूप अनुपस्थित।
बढ़ीं गाड़ियां, जगह कम पड़ी,
सड़कन के फुटपाथ अनुपस्थित।
लोग भये बेमतलब सब,
मदद करें वे हाथ अनुपस्थित।
मोबाइल पै चैटिंग चालू,
यार-दोस्त कौ संग अनुपस्थित।
बाथरूम, शौचालय घर में,
घेर, गौत, जंगल अनुपस्थित।
हरियाली के दर्शन दुर्लभ,
कोयलिया की कूक अनुपस्थित।
घर-घर जलैं गैस के चूल्हे,
चिमनी वारी फूंक अनुपस्थित।
मिक्सी, लोहे की अलमारी,
सिलबट्टा, संदूक अनुपस्थित।
मोबाइल सबके हाथन में,
विरह, मिलन की बात अनुपस्थित।
बाग-बगीचे खेत बन गए,
जामुन, बरगद, पेड़ अनुपस्थित।
सेब, संतरा, चीकू बिकते
चिलमटरी,गोंदी, गूलर, अनुपस्थित।
ट्रैक्टर ते है रही जुताई,
जोत-जात में मेंड़ अनुपस्थित।
रेडीमेड बिक रह्यौ ब्लैंकेट,
पालन के घर भेड़ अनुपस्थित।
लोग बढ़ गए, बढों अतिक्रमण,
जुगनू, तितली, झाड़ अनुपस्थित।
कमरे बिजली ते रहे चमक,
आरे, खूंटी, टांड़ अनुपस्थित।
चावल पकवे लगौ कुकर में,
बटलोई कौ मांड़ अनुपस्थित।
कौन चबाए चना-चनौरी,
भड़भूजे कौ भाड़ अनुपस्थित।
पक्के ईंटन वारे घर हैं,
छप्पर और खपरैल अनुपस्थित।
बिछे खड़ंजा गली-गलीन में,
कीच- धूल और गैल अनुपस्थित।
चारे में हु मिलौ केमिकल,
गोबर ते गुबरैल अनुपस्थित।।
शर्ट-पैंट कौ फैशन आयौ,
धोती और लंगोट अनुपस्थित।
खुले-खुले परिधान आ गए,
बंद गले के लत्ता अनुपस्थित।।
आँचल, चोली और दुपट्टे
घूंघट वारी ओट अनुपस्थित।
बढ़ी महंगाई के सब मारें
एक-पांच के नोट अनुपस्थित।।
लोकतंत्र अब भीड़तंत्र है,
जनता की पहचान अनुपस्थित।
कुर्सी पानौ राजनीति है,
नेता से सच्चाई अनुपस्थित।
गूगल विद्यादान कर रह्यौ,
गुरु जी कौ सम्मान अनुपस्थित।
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हमारौ ग्रुप प्रेम कौ मंदिर है,
जे बहुत ही सुन्दर है,
याय और सुन्दर बनाऔ।
मन ऐसौ रखो कै,
काहु कूँ बुरौ ना लगै।
हृदय ऐसौ रखौ कै,
काहु कूँ दुःखी नाँय करैं।
संबंध ऐसौ रखो कै,
वाकौ अंत न होय।
हमने रिश्तेन कूँ संभालौ है मोतीन की तरह,
कोई गिरहु जाए तौ झुक कैं उठा लैमतें ।
ग्रुप नाँय जे परिवार है,
बसतौ जहाँ पूरौ प्यार है।
सुख के तौ साथी हजार हैं,
यहां सब जिंदगी के आधार हैं ।
अपनौं सौ प्यार है यहाँ,
या के लैं सबन कौ आभार है ।
काम होय कोई तौ बता दीजौं,
या ग्रुप में हर कोई तैयार है ।
सबन कूँ साथ जोडबे के लैं,
सबन कौ हृदय ते आभार है ।
*ब्राह्मण ओमन सौभरि भुर्रक*