Featured post

ब्रजमण्डल में मेट्रोन के आवे-जाबे की घोषणा ब्रजभाषा में कैसैं होयगी

                              Metro Map  Mathura District Metro (BrajMandal)- भविष्य में मथुरा में मेट्रो आबैगी तौ salutation और in...

Friday, 10 January 2020

Slang words and abuses in Brajabhasha

 ब्रजभाषा कठबोली शब्द(Slang word in Brajabhasha)-

कठबोली या स्लैंग (slang) काऊ भाषा या बोली के उन अनौपचारिक शब्द और वाक्यांशन कूँ कहमतें हैं जो बोलबे वारे की भाषा या बोली में मानक तौ नाँय माने जाँय लेकिन बोलचाल में स्वीकार्य हैमतें। भाषावैज्ञानिकन कौ माननौ है कि कठबोलियाँ हर मानक भाषा में हमेशा अस्तित्व में रही हैं और लगभग सबरे लोग विनकौ प्रयोग करत हैं।
जैसैं 'मूत्र' को कई हिन्दीभाषी कठबोली में 'सूसू', पुलिस कूँ मामा कहमतें , कोई 'सिगरेट' कूँ 'सुट्टा' हु बुलामतें ।

 कठबोली की शब्दावली कछु ख़ास क्षेत्र जैसैं कैं 'हिंसा, अपराध, ड्रग्स और सेक्/जेण्डर ' में विशेष रूप ते समृद्ध हैं। वैकल्पिक रूप ते कठबोली, वर्णन करी गयी चीजन के संग केवलअपनेपन ते बाहर निकल सकतै। मोबाइल फोनन पै प्रयोग होबे वारे SMS की भाषा  (LOL)", जो "जोर से हंसने" या "जोरदार हँसी" कूँ बतामतै ।
कठबोली कौ निम्न या गैर-प्रतिष्ठित लोगों की शब्दावली ते है ।
कठबोली बोलबे ते बोलने वारेन कौ सामाजिक स्तर या गौरव नीचौ हैमतौ है, ऐसौ कछूक लोग मानतें ।

फट्टू
जुगाड़ी
घंटा
ओए
 काण्ड
ऐस्तैसी
अंगुरिया करनौ
निकम्मौ
बैतल
 गैला
ऊधमगारौ
छैला
छिछोरा
छोट्टिया
 महेरी खाबा
लटूरेन में आग लगा दंगो
पेंदना-पेंदीनी से
चटकी पेंन्दी के
 मूला
बहलोल
सिर्री
घण्टोली
नथोली
सूधौ
भिनगा
 मचूच
दारी के
टेड़ा
 कंजा
भेंडा
कनेटा
 छैल-छबीली
रंगरसिया
भडुआ
रडुआ
चुप्प छिनार
गंजेड़ी
ठोड़ीहला
चिलुआ
चम्पू
चटोरा
चांदमारा
मालामारा
बहरूपिया
 बाबड़े
भोलू
 ऐंठू
 टुंडा
गुटारी
मुच्छड़
गौंछा
दढ़ियल
कलुआ
कटल्ला
अधूंस
पेट्या
रोडू
पद्दू
 रंहट्या
 उर्रु
 लुंड
मलूक

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻


क्या गाली पुराने समय में भी लोग दिया करते थे ?

एक आदर्श समाज में गाली के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, पर हम जानते हैं ऐसा सिर्फ कल्पनाओं में होता है ।लोग एक-दूसरे को जलील करने के तरीके खोज ही लेते हैं और ये हमेशा करते भी रहेंगे । आपने कभी गौर किया है कि हमारे किसी भी प्राचीन ग्रंथ और महाकाव्यों में गाली का एक शब्द भी नहीं है. महाभारत में इतनी मारकाट और रक्तपात है पर कोई किसी को गाली नहीं देता. जबकि इतना तो तय है कि जन-जीवन में गालियां जरूर रही होंगी. यहां तक कि ग्रीक गंथ्रों, जैसे होमर के महाकाव्य ‘इलियड और ओडिसी’ में भी गाली नहीं मिलती. कालिदास जैसे महान कवि नायिका के अंग-अंग का मादक वर्णन तो करते हैं पर किसी गाली का कोई सन्दर्भ नहीं देते ।गाली शब्द का ज़िक्र होते ही क्यों मां, बहन और बेटियों का ही ख़्याल आता है क्योंकि पुरुषों के लिए तो कोई गाली बनी ही नहीं! तन्वी जैन इन गालियों को औरतों के ख़िलाफ़ 'शाब्दिक हिंसा' मानती हैं.

गालीन कौ वर्गीकरण-

मोटे तौर पै गालीन कूँ पांच परिवारन में विभक्त कर सकतें पहलौ सगे-सम्बन्धीन ते यौन-सम्बन्धन कूँ लै कैं बनबे वारी, दूसरी, शरीर के अंग-विशेष कूँ केन्द्रित करकैं दयी जाबे वारी गाली (जे पश्चिमी देशन में ज्यादा प्रचलित हैं जैसैं asshole, dick, cunt, prick इत्यादि), तीसरी, जानवरन के ऊपर रखकैं दयी जाबे वारी, चौथी है, जाति या नस्ल के नाम पै दयी जाबे वारी और पांचवीं, लिंग के आधार पै बनबे वारी । फुटकर गालीन के रूप में संख्या, फूल, पेड़न के नाम पर बनवे वारी गालीन कौ एक छोटॉ उप-परिवारहु है सकतौ है ।

बाबा जी कौ घंटा
गांडू
बकचो*
सारे
सास के
बहिनचो...
धी के लौंडा
बाबरचो*
बिजलौंडी
 रांडी
रंडी


ब्रजभाषा में आप इन पंक्तिन ते समझबे की चेष्ठा करौ एक बार...
ब्रज की भाषा लगै अति प्यारी,
अति ही सुंदर लागत मोकूँ यहां "सारे" की गारी ।
या भाषा कूँ बोल गये हैं जबते कुंज बिहारी ।
तब ही ते अति सरस भयी, जे बोलत में सुखकारी ।
ओरे!अरे! अरी! कहि बोलैं, सबरे ब्रजवासी नर नारी ।

Brajbhasha mein bodh kathaa v Kavita

💐 *बच्चन में संस्कार बचपन ते ही दैमते रहने चहियैं* 💐

एक संत नै एक द्वार पै घुसते भये आवाज लगायी' " भिक्षाम् देहि"। इतेक ही में एक छोटी बच्ची बाहर  आयी और बोली- बाबा हम तौ बहौत ही ग़रीब हैं, तिहारे लैं हमारे पास दैवे कूँ कछु नाँय । संत बोले-  अरी लाली(छोरी) नाँयी मत करै, अपने आँगन की धूल ही दै दै । छोरी नै एक मुट्ठी भर कैं धूल उठायी और बाबा कूँ दै दई । संत के संग चलबे बारे शिष्य नैं पूछी, गुरु जी! धूलहु कोई भिक्षा हैमतै काह? आपने वा लाली कूँ धूल दैवे की चौं कही ? संत बोले- लाला, अगर बू आज "ना" कह दैमती फिर कबहु ना दै पामती, आज धूल दई तौ काह भयौ, वामें कछु दैवे  की कम ते कम भावना तौ जाग गयी । कल सामर्थवान होयगी तौ फल-फुलहु देगी । *जितेक छोटी कथा है निहतार्थ उतनौ ही बड़ौ*

******************************************
Braj Kavita-

 देहरी, आंगन, धूप अनुपस्थित।
 ताल, तलैया, कुआ अनुपस्थित।
 घूँघट वारौ रूप अनुपस्थित। डलिया,चलनी,सूप अनुपस्थित।

आया समय फ्लैट कल्चर कौ,
चौक, आंगन और छत अनुपस्थित।
हर छत पै पानी की टंकी,
पोखर, तालाब, नदी अनुपस्थित।।
लाज-शरम चंपत आँखन ते,
घूँघट वारौ रूप अनुपस्थित।
पैकिंग वारे चावल, दालें,
चक्की,चलनी, सूप अनुपस्थित।
बढ़ीं गाड़ियां, जगह कम पड़ी,
सड़कन के फुटपाथ अनुपस्थित।
 लोग भये बेमतलब सब,
 मदद करें वे हाथ अनुपस्थित।
मोबाइल पै चैटिंग चालू,
यार-दोस्त कौ संग अनुपस्थित।
बाथरूम, शौचालय घर में,
घेर, गौत, जंगल अनुपस्थित।

हरियाली के दर्शन दुर्लभ,
 कोयलिया की कूक अनुपस्थित।
घर-घर जलैं गैस के चूल्हे,
चिमनी वारी फूंक अनुपस्थित।
मिक्सी, लोहे की अलमारी,
 सिलबट्टा, संदूक अनुपस्थित।
मोबाइल सबके हाथन में,
विरह, मिलन की बात अनुपस्थित।

बाग-बगीचे खेत बन गए,
जामुन, बरगद, पेड़ अनुपस्थित।
सेब, संतरा, चीकू बिकते
चिलमटरी,गोंदी, गूलर, अनुपस्थित।
ट्रैक्टर ते है रही जुताई,
जोत-जात में मेंड़ अनुपस्थित।
रेडीमेड बिक रह्यौ ब्लैंकेट,
पालन के घर भेड़ अनुपस्थित।

लोग बढ़ गए, बढों अतिक्रमण,
 जुगनू, तितली, झाड़ अनुपस्थित।
कमरे बिजली ते रहे चमक,
आरे, खूंटी, टांड़ अनुपस्थित।
चावल पकवे लगौ कुकर में,
 बटलोई कौ मांड़ अनुपस्थित।
कौन चबाए चना-चनौरी,
भड़भूजे कौ भाड़ अनुपस्थित।

पक्के ईंटन वारे घर हैं,
छप्पर और खपरैल अनुपस्थित।
बिछे खड़ंजा गली-गलीन में,
 कीच- धूल और गैल अनुपस्थित।
चारे में हु मिलौ केमिकल,
गोबर ते गुबरैल अनुपस्थित।।

शर्ट-पैंट कौ फैशन आयौ,
धोती और लंगोट अनुपस्थित।
खुले-खुले परिधान आ गए,
बंद गले के लत्ता अनुपस्थित।।
 आँचल, चोली और दुपट्टे
 घूंघट वारी ओट अनुपस्थित।
बढ़ी महंगाई के सब मारें
एक-पांच के नोट अनुपस्थित।।

लोकतंत्र अब भीड़तंत्र है,
जनता की पहचान अनुपस्थित।
कुर्सी पानौ राजनीति है,
नेता से सच्चाई अनुपस्थित।
गूगल विद्यादान कर रह्यौ,
गुरु जी कौ सम्मान अनुपस्थित।


****************************************

हमारौ ग्रुप प्रेम कौ मंदिर है,
जे बहुत ही सुन्दर है,
      याय और सुन्दर बनाऔ।
मन ऐसौ रखो कै,
      काहु कूँ बुरौ ना लगै।
हृदय ऐसौ रखौ कै,
      काहु कूँ दुःखी नाँय करैं।
संबंध ऐसौ रखो कै,
      वाकौ अंत न होय।
हमने रिश्तेन कूँ संभालौ है मोतीन की तरह,
कोई गिरहु जाए तौ झुक कैं उठा लैमतें ।
ग्रुप नाँय जे परिवार है,
      बसतौ जहाँ पूरौ प्यार है।
सुख के तौ साथी हजार हैं,
     यहां सब जिंदगी के आधार हैं ।
अपनौं सौ प्यार है यहाँ,
     या के लैं सबन कौ आभार है ।
काम होय कोई तौ बता दीजौं,
    या ग्रुप में हर कोई तैयार है ।
सबन कूँ साथ जोडबे के लैं,
     सबन कौ हृदय ते आभार है ।


*ब्राह्मण ओमन सौभरि भुर्रक*