ब्रज भाषा जैसा काव्य किसी और भाषा में नहीं
ब्रजभाषा गद्य लेखन में अभी काम कम हुआ है हम सभी को प्रयास करने चाहिए कि गद्य की सभी विधाओं में लेखन कार्य हो। ब्रजभाषा में नीति काव्य पूर्ण दक्ष है। ऐसा नीति काव्य और किसी भाषा में नहीं है।
1- मथुरा में एक बाप अपने बेटे ते रात कूँ सोमते समय, "लाला, तोय पतौ है, पेट्रोल सस्तो है गयो है।
बेटा : हम्बै ! है तौ गयौ है, फिर....।
बाप : फिर कछु नाँय, या मोबाइल बंद करकें चुपचाप सो जा। नाँय, तौ पेट्रोल छिरक कैं आग लगा दंगो ... सारे में।
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2-एक छोरा कूँ रस्ता में शंकर भगवान् मिलगे ,बिन्नै बा छोरा कूँ अमृत पान करबे कूँ दियौ |
छोरा - नैक रुकौ भगवान, अबई राजश्री खायौ है ।
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3-ग्राहक-गुलाब जामुन कैसैं दिए ऍह |
हलवाई -१२० रुपैया किलो तराजू ते तोल कैं |
ग्राहक- अच्छा ! एक किलो दीजो और जलेबी काह भाव है ।
हलवाई – ८०/- रु. किलो.
ग्राहक- अच्छौ ! तौ गुलाब जामुनन नै रहन दै | १ किलो.जलेबी दै दै |
हलवाई – ठीक है भैया जे लेओ जलेबी १ किलो.
ग्राहक – धन्यवाद, राम राम भैया जी !
हलवाई – अरे भाईया , जलेबी के तौ पइसा दै जा |
ग्राहक – पइसा कयके ,जलेबी तौ गुलाब जामुनन के बटकी लिए हैं ।
हलवाई – तौ गुलाब जामुनन के पइसा दै जाऔ।
ग्राहक – अरे भैया जी, गुलाब जामुन तौ लिए जे नाँय फिर कायके ?
राम राम !
💐💐💐💐💐*गीत*💐💐💐💐💐💐💐💐
*सुन मेरी मैया, मैं पडूँ तेरी पैंया*
सुन मेरी मैया, मैं पडूँ तेरी पैंया
मेरो छोटौ सौ काम कराय दै
राधा गोरी से ब्याह रचाय दै
राधा-सी गोरी मेरे मन में बसी है
ग्वाल उड़ावे नहीं मेरी हँसी है
मोकूँ छोटी-सी दुल्हनियाँ लाय दै
अपने हाथन से दुल्हा बनाय दै
सेवा बू मैया तेरी रोज करेगी
जोड़ी तौ मैया मेरी खूब जमेगी
नन्द बाबा कूँ तू नेंक समझाय दै
दाऊ भैया कूँ नैंक संग पठाय दै
गाँव बरसानौ जाकौ सब जग जानै
गैया ना चराऊं तेरी तू ना मेरी मानें
अब तू मैया और काहु कूँ पठाय दै
बलदाऊ भैया कूँ तू बुलवाय दै
मेरो छोटौ सौ काम कराय दै
राधा गोरी ते ब्याह रचाय दै
*छोटी-छोटी गइया छोटे-छोटे ग्वाल*
छोटी-छोटी गइया छोटे-छोटे ग्वाल
छोटौ सो मेरौ मदन गोपाल
आयगें-आयगें गइया, पीछैं-पीछैं ग्वाल
बीच में मेरो मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
कारी-कारी गइया गोरे-गोरे ग्वाल
श्याम वरन मेरौ मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
घास खामें गइया, दूध पीवें ग्वाल
माखन खावै मेरौ मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
छोटी-छोटी लकुटी, छोटे-छोटे हाथ
बंशी बजावै मेरौ मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
छोटी-छोटी सखियाँ मधुबन बाग
रास रचावै मेरौ मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
छोटौ सौ मेरौ मदन गोपाल
*कालीदह पै खेलन आयौ री*
*मेरौ बारौ सौ कन्हैंया* कालीदह पै खेलन आयौ री
ग्वाल-बाल सब सखा संग में गेंद कौ खेल रचायौरी
काहे की जानै गेंद बनायी और काहे कौ डण्डा लायौ री
रेशम की जानै गेंद बनायी, चन्दन कौ डण्डा लायौ री
मारौ टोल गेंद गयी दह में गेंद के संग ही धायौ री
नागिन जब ऐसैं उठि बोली, चौं तू दह में आयौ रे
काह तू लाला गैल भूल गयौ, कै काहु नै बहकायौ री
कैसैं लाला तू इतकूँ आयौ, कैं काऊ ने भिजवायौ री
ना नागिन मैं गैल ही भूलौ, और ना काहु नै बहकायौ री
नागिन नाग जगाय दै अपने याही की मारें आयौरी
नाँय जगावै तौ फिर कह दै ठोकर मार जगायौ री
भयौ युद्ध दोनोंन में भारी, अन्त में नाग हरायौ री
नाग नाथ रेत में डारौ वाके फनन पै बैंन बजायौ री
रमणदीप कूँ नाग भेज दियौ फन पै चिन्ह लगायौरी
*जमुना किनारे मेरौ गाँव सांवरे आ जइयो*
जमुना किनारे मेरौ गाँव सांवरे आ जइयो
जमुना किनारे मेरी ऊँची हवेली
मैं ब्रज की गोपिका नवेली
राधा रंगीली मेरौ नाम कै बंशी बजाय जइयो
मल-मल कै स्नान कराऊँ
घिस-घिस चन्दन खौर लगाऊँ
पूजा करूँ सुबह शाम कै माखन खा जइयो
खस-खस कौ बंगला बनवाऊँ
चुन-चुन कलियाँ सेज सजाऊँ
धीरे-धीरे दाबूँ में पाम, प्रेम-रस पियाय जइयो
देखत रहूँगी बाट तुम्हारी
जल्दी अइयो कृष्णमुरारी
झाँकी देखंगे सब ब्रजवासी कै हँस-मुस्काय जइयो
तुम ते फँस रह्यौ प्रेम हमारौ
तू तौ है ब्रज कौ रखबारौ
आयकैं नैंक मेरौ काम तू करवाय जइयो ।
सुन मेरी मैया, मैं पडूँ तेरी पैंया
मेरो छोटौ सौ काम कराय दै
राधा गोरी से ब्याह रचाय दै
राधा-सी गोरी मेरे मन में बसी है
ग्वाल उड़ावे नहीं मेरी हँसी है
मोकूँ छोटी-सी दुल्हनियाँ लाय दै
अपने हाथन से दुल्हा बनाय दै
सेवा बू मैया तेरी रोज करेगी
जोड़ी तौ मैया मेरी खूब जमेगी
नन्द बाबा कूँ तू नेंक समझाय दै
दाऊ भैया कूँ नैंक संग पठाय दै
गाँव बरसानौ जाकौ सब जग जानै
गैया ना चराऊं तेरी तू ना मेरी मानें
अब तू मैया और काहु कूँ पठाय दै
बलदाऊ भैया कूँ तू बुलवाय दै
मेरो छोटौ सौ काम कराय दै
राधा गोरी ते ब्याह रचाय दै
*छोटी-छोटी गइया छोटे-छोटे ग्वाल*
छोटी-छोटी गइया छोटे-छोटे ग्वाल
छोटौ सो मेरौ मदन गोपाल
आयगें-आयगें गइया, पीछैं-पीछैं ग्वाल
बीच में मेरो मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
कारी-कारी गइया गोरे-गोरे ग्वाल
श्याम वरन मेरौ मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
घास खामें गइया, दूध पीवें ग्वाल
माखन खावै मेरौ मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
छोटी-छोटी लकुटी, छोटे-छोटे हाथ
बंशी बजावै मेरौ मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
छोटी-छोटी सखियाँ मधुबन बाग
रास रचावै मेरौ मदन गोपाल
छोटी-छोटी गइया...
छोटौ सौ मेरौ मदन गोपाल
*कालीदह पै खेलन आयौ री*
*मेरौ बारौ सौ कन्हैंया* कालीदह पै खेलन आयौ री
ग्वाल-बाल सब सखा संग में गेंद कौ खेल रचायौरी
काहे की जानै गेंद बनायी और काहे कौ डण्डा लायौ री
रेशम की जानै गेंद बनायी, चन्दन कौ डण्डा लायौ री
मारौ टोल गेंद गयी दह में गेंद के संग ही धायौ री
नागिन जब ऐसैं उठि बोली, चौं तू दह में आयौ रे
काह तू लाला गैल भूल गयौ, कै काहु नै बहकायौ री
कैसैं लाला तू इतकूँ आयौ, कैं काऊ ने भिजवायौ री
ना नागिन मैं गैल ही भूलौ, और ना काहु नै बहकायौ री
नागिन नाग जगाय दै अपने याही की मारें आयौरी
नाँय जगावै तौ फिर कह दै ठोकर मार जगायौ री
भयौ युद्ध दोनोंन में भारी, अन्त में नाग हरायौ री
नाग नाथ रेत में डारौ वाके फनन पै बैंन बजायौ री
रमणदीप कूँ नाग भेज दियौ फन पै चिन्ह लगायौरी
*जमुना किनारे मेरौ गाँव सांवरे आ जइयो*
जमुना किनारे मेरौ गाँव सांवरे आ जइयो
जमुना किनारे मेरी ऊँची हवेली
मैं ब्रज की गोपिका नवेली
राधा रंगीली मेरौ नाम कै बंशी बजाय जइयो
मल-मल कै स्नान कराऊँ
घिस-घिस चन्दन खौर लगाऊँ
पूजा करूँ सुबह शाम कै माखन खा जइयो
खस-खस कौ बंगला बनवाऊँ
चुन-चुन कलियाँ सेज सजाऊँ
धीरे-धीरे दाबूँ में पाम, प्रेम-रस पियाय जइयो
देखत रहूँगी बाट तुम्हारी
जल्दी अइयो कृष्णमुरारी
झाँकी देखंगे सब ब्रजवासी कै हँस-मुस्काय जइयो
तुम ते फँस रह्यौ प्रेम हमारौ
तू तौ है ब्रज कौ रखबारौ
आयकैं नैंक मेरौ काम तू करवाय जइयो ।
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सुनबे बारौ कोई नाँय, टर्रामें चों"।
ऐसौ कह कें अपनौ जोस घटामें चौं॥
जिनकूँ बिदरानों है - बिदरामंगे ही।
हम अपनी भाषा-बोली बिदरामें चौं॥
ब्रजभासा की गहराई जगजाहिर है।
तौ फिर या कों उथलौ कुण्ड बनामें चौं॥
ऐसे में जब खेतन कों बरखा चँइयै।
ओस-कणन के जैसें हम झर जामें चौं॥
जिन के हाथ अनुग्रह कूँ पहिचानत नाँय।
हम ऐसे लोगन के हाथ बिकाबामें चौं॥
मन-रंजन-आनन्द अगर मिलनों ही नाँय।
तौ फिर दुनिया के आगें रिरियामें चौं॥
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कुहासौ छँट गयौ और, उजीतौ है गयौ है।
गगनचर चल गगन कूँ, सबेरौ है गयौ है॥
हतो बू इक जमानौ, कह्यौ करतौ है जमानौ।
चलौ जमना किनारें - सबेरौ है गयौ है ॥
बू रातन की पढ़ाई, और अम्मा की हिदायत।
अरै तनिक सोय लै रे - सबेरौ है गयौ है॥
अगल-बगलन छत्तन पै, कहाँ सुनबौ मिलै अब।
कै अब जामन दै, बैरी - सबेरौ है गयौ है॥
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ब्रज के सिवाय होयगी अपनी बसर कहाँ।
ब्रज-भूमि कूँ बिसार कें जामें कितकूँ और कहाँ?
कनुआ सों दिल लगाय कें हम धन्य है गये।
और काहू की प्रीत में ऐसौ असर कहाँ॥
सूधे-सनेह की जो डगर ब्रज में है हुजूर।
दुनिया-जहाँ में कहूँ ऐसी डगर कहाँ॥
तन के लैं तौ ठौर घनी हैं सबन के पास।
“मनुआ” मगर बसाओगे, मन के नगर कहाँ॥
उपदेस ज्ञान-ध्यान रखौ आप ही भैयाऔ।
जिन के खजाने लुट गये बिनकूँ सबर कहाँ॥
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नैक तौ देख तेरे सामही हैं।
काह -काह कर’तें तिहारे घर बारे॥
एक कौने में धर दियौ तो कूँ ।
खूब चोखे तिहारे घर बारे॥
जहर पी कें सिखायौ बा नें हमें।
हमारी गैल में रपटन मचायबे बारे।
तनौ ही रहियो, हमकूँ गिरायबे बारे॥
बस एक दिन के लिएँ मौन-ब्रत निभाय कें देख।
हमारी जीभ पे तारौ लगायबे बारे॥
जनम-जनम तोय अपनेन कौ संग मिलै।
हमारे गाम ते हम कों हटायबे बारे॥
हमारे लाल तिहारे कछू भी नाँय काह ।
हमारे ‘नाज में कंकर मिलायबे बारे॥
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शीघ्र ही नाँय शीघ्रतर आबै।
अब तौ अच्छी सी कछु खबर आबै॥
कोई तौ उन अँधेरी गैलन में।
रात कूँ जाय दीप धर आबै॥
राह तौ बीसन मिलीं मगर हमें।
अब जो आबै तौ रहगुजर आबै॥
मेरी उन्नति कौ मोल है तब ही ।
जब सबरेन पै कछु असर आबै॥
है अगर सच्च-ऊँ गगन में बू ।
एक-दो दिन कूँ ई उतर आबै॥
बा कौ उपकार माननों बेहतर।
जा की बिटिया हमारे घर आबै॥
जुल्म की धुन्ध में, भलाई की।
"घाम निकरै तौ कछु नजर आबै"॥