Monday, 27 January 2020

राधाकृष्ण के "प्रेम कथन" व धार्मिक कथन ब्रजभाषा में


प्रेम में कितेक बाधा देखी,
फिर हु कृष्ण संग राधा देखी ।



 देवयुग में राधा-कृष्ण कौ मिलन तो बस एक बहानौ हतो,
या संसार कूँ प्रेम कौ अर्थ जो समझानौ हतो ।



 यदि प्रेम कौ अर्थ केवल पा लेनों होंतौ ।
तौ हर हृदय में राधा-कृष्ण कौ नाम नाँय होंतौ ।



 एक ओर साँवरे कृष्ण, दूसरी ओर राधिका गोरी ।
जैसैं एक-दूसरे ते मिल गये हों चन्द्र-चकोरी।



प्रेम की भाषा बड़ी सहज हैमत है,
राधा-कृष्ण की प्रेम-कथा जे संदेश दैमत है।

कृष्ण के प्रेम की बाँसुरिया सुन, भई वो प्रेम दिवानी ।
जब-जब कान्हा मुरली बजाबै, दौड़ी आमत राधा रानी।

कितेक सुंदर नैन तेरे ओ राधा! प्यारी ।
इन नैनन में खोयगे मेरे बांकेबिहारी।

ए कान्हा! अब तौ आँखन ते हु मोय जलन हैमत है ।
चौं कै बंद होंय तौ सपने तेरे और खुली होंय तौ तेरी तलाश देखत हैं ।

हे कान्हा, तुम्हें पानौ ही जरूरी नाँय,
तुम्हारौ है जानौ ही बहुत है मेरे लैं ।

राधे राधे बोल, श्याम भागकैं चले आंगे,
एक बार आयगे तौ कबहु नाँय जांगे।

 कर भरोसौ राधे नाम कौ धोखा कबहु ना खावैगौ,
हर अवसर पै तेरे घर कान्हा सब ते पहले आबैगौ।

गोकुल में है जिनकौ वास, गोपीन के संग करै निवास ।
 देवकी, यशोदा हैं जिनकी मैया, ऐसे हैं हमारे कृष्ण कन्हैया


 ईश्वर कहमतें उदास मत होय मैं तौ तेरे साथ हूँ, सामने नाँय आस-पास ही हूँ ।
 पलकन कूँ बंद कर और दिल ते याद कर, मैं कोई और नाँय तेरौ विश्वास हूँ ।

 भाग्य पै गर्व है तौ वजह,
प्रभु तिहारी कृपा…
प्रसन्नता जो पास है तौ वजह
प्रभु तिहारी कृपा…
मेरे अपने मेरे संग हैं तौ
वजह प्रभु तिहारी सेवा…
मैं तुम ते प्रेम की लग्न
कैसैं न करूँ, जे साँस जो चलत है तौ वजह
प्रभु तिहारी कृपा…


 हजारों दोष हैं मो में, नाँय कोई कौशल निस्संदेह,
मेरी कमीयन कूँ तू अच्छाईन में बदल दीजौं ।
मेरौ अस्तित्व है एक खारे समन्दर जैसौ मेरे दाता,
तू अपनी कृपान ते याकूँ मीठी झील कर दीजौं ।


 धर्मो रक्षति रक्षतः - अर्थात मनुष्य धर्म की रक्षा करतौ है तौ धर्म हु वाकी रक्षा करतौ है ।

जो दृढ राखे धर्म को,
नाँय राखे करतार ।
जहाँ धर्म नाँय, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदिन कौ हु अभाव हैमतौ है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता रहमतै, शून्यता हैमत है ।

पर हित सरिस धर्म नहिं भाई,
पर-पीड़ा सम नहिं अधमाई ।
- संत तुलसीदास

 तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय ।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
अर्थ: कबीर कहमतें एक छोटे से तिनके की हु कबहु निंदा नाँय करौ जो तुम्हारे पांमन के नीचे दब जामतौ है। यदि कबहु वो तिनका उड़कैं आँख में आ गिरै तौ कितेक गहरी पीड़ा हैमतै ।

बात मन में दबाकैं मत रखौ, व्यर्थ में चिंता ही बढैगी। मनोभावन कूँ शांत-सहज भाव में व्यक्त करौ,तुम्हारी सबरी बिगड़ी भयी बात बन जाएगी।

सम्बन्ध वा ही आत्मा ते जुड़तौ है, जिनते पिछले जन्मन कौ रिश्तौ होंतौ है । वरना संसार की या भीड़ में को-कौनकौ होंतौ है ।

अगर आपकी समस्या एक जहाज की तरह बड़ी हैं तौ  जे मत भूलौ कै प्रभु की कृपा सागर जितेक विशाल हैमतै । प्रभु हमें वैसौ ही देमतौ है जैसैं गेहूँ दैमत है, हम एक कण बोमतें और सौ कण पामतें ।

 संसार के लोगन पै कियौ गयौ भरोसौ तौ टूट सकै है लेकिन संसार के स्वामी पै कियौ गयौ भरोसौ कबहु नाँय टूटत । जब हम सच्चे मन ते प्रभु कूँ खोजतें तौ प्रभु अपनी मौजूदगी कौ अहसास हमें जरूर करवावैगौ ।