Monday, 29 July 2019

चिरैया और मानव

अकेलौ बैठौ हतो एक दिन मैं अपने घर में,
 चिरैया बना रही हती घोंसला रोशनदान में ।।       
 पल भर में आमती और पल भर में जामती हती बू,
नैक-नैक से तिनका चौंच में भर कैं लामती हती बू ।।            बना रही हती बू अपनौ घर एक न्यारौ,
केवल तिनका कौ प्रयोग, ना ईंट और गारौ ।।                       कछू दिना बाद!!!                 
 मौसम बदलौ बयार के झौंका आमन लगे,                           छोटे से दो बच्चे घौंसला में चहचामन लगे ।।                       पाल रही हती चिरैया इन्नै,
 पंख निकल रहे हते दोनोंन के, 
 पैरन पै करती हती खडॉ बिन्नै ।
देखत हतो मैं हर दिन उन्नै, 
भावनान के पेच मेरे बिनते कछु जुड़ गए,
पंख निकलने पर दोनों बच्चे,
 मां को छोड़ अकेले उड़ गए ।
चिरैया ते पूछौ मैंने ... तिहारे बच्चा तुम्हें अकेली चौं छोड़ गये, तू तौ हती मां बिनकी, फिर जे रिश्ता चौं जोड़ गये ?
 चिरैया बोली, पक्षी और मानव के बच्चन में यही तौ अंतर है । इंसान कौ बच्चा पैदा हैमत ही अपनौ हक जमातौं है ।
ना मिलबे पै बू माँ-बाप कूँ कोर्ट कचहरी तकउ लै जाँतौ है । मैंने बच्चन कूँ जनम दियौ,  पर करतौ मोय कोई याद नाँय,
मेरे बच्चा काह रहेंगे साथ मेरे, चौं कै मेरी कोई जायदाद नाँय ।
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    1-  * ब्रजभाषा उत्कथन*
दो बात मन की दुर्बलता कूँ प्रकट करतें,
पहली, बोलबे के अवसर पै चुप्पी साधनौ ।
दूसरी, चुप्प रहबे के अवसर पै बोलनौ ।।

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 2-🌹काउ व्यक्ति नै एक ज्ञानी ते पूछी कै या दुनिया में आपकौ कौन (को) है ? तौ ज्ञानी व्यक्ति नै हँस कै उत्तर दियौ- *समय* यदि आपकौ समय सही है तौ सब अपने हैं नाँय तौ कोई अपनौ नाँय ।🌹