भारतभूमि के महामान्य ऋषियों में से एक विशेषकर *ब्रजभूमि* वृंदावन को तपोस्थली स्वरूप मानकर यमुना के जल के अंदर ६०००० वर्ष (साठ हजार वर्ष) तक तपस्या की। उन के वंशज आज भी ब्रज तथा अन्यत्र प्रदेशों के हिस्सों में रह रहे हैं। इसी वंश में जन्मे ब्राह्मणों द्वारा ब्रज के राजा बल दाऊजी महाराज की सेवा की जाती है। सेवायत सभी जन पंडे/ पांडे/ पाण्डे/पाण्डेय के नाम से बतौर उपाधि या आस्पद नाम धारण करते हैं। इस वंश के समाज का ज़्यादातर वर्ग सदाचारी, सादगी से भरे और वैदिक विधि - विधानों में पारंगत हैं। संत शिरोमणि प्रभुदुत्त ब्रह्माचारी जी भी इसी वंश में जन्मे थे जिनका आश्रम वंशीवट वृंदावन और संकीर्तन भवन तीर्थराज प्रयागराज के समीप ही है। प्रसिद्द चित्रकार जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी भी ब्रह्मर्षि सौभरि जी के वंश में जन्मे।
इस स्थान पर उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा पवित्र तीर्थस्थल सुनरख, वृन्दावन में 460 एकड़ भू-भाग में ब्रह्मर्षि सौभरि वन (सिटी फॉरेस्ट) के रूप में एक पार्क का विकास किया जाएगा।
460 एकड़ में प्रस्तावित एशिया के सबसे बड़े "सौभरि वन" (सुनरख वन) में चार योग केंद्र स्थापित होंगे। इसके साथ ही पर्यटकों के लिए अन्य कई सुविधाएं भी होंगी। इस पूरे प्रोजेक्ट की अनुमानित लोग 325 करोड़ रुपये होगी।
ब्रजभूमि पर स्थित १२ वनों, २४ उपवनों, १२ तपोवनों, १२ अधिवनों, १२ तपोवनों को मिलाकर भी उन सबसे ज़्यादा क्षेत्रफल पर ब्रह्मर्षि सौभरि नगर वन का निर्माण किया जा रहा है।
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साभार:- ब्रजवासी
ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'
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