ब्रजभाषा कठबोली शब्द(Slang word in Brajabhasha)-
कठबोली या स्लैंग (slang) काऊ भाषा या बोली के उन अनौपचारिक शब्द और वाक्यांशन कूँ कहमतें हैं जो बोलबे वारे की भाषा या बोली में मानक तौ नाँय माने जाँय लेकिन बोलचाल में स्वीकार्य हैमतें। भाषावैज्ञानिकन कौ माननौ है कि कठबोलियाँ हर मानक भाषा में हमेशा अस्तित्व में रही हैं और लगभग सबरे लोग विनकौ प्रयोग करत हैं।
जैसैं 'मूत्र' को कई हिन्दीभाषी कठबोली में 'सूसू', पुलिस कूँ मामा कहमतें , कोई 'सिगरेट' कूँ 'सुट्टा' हु बुलामतें ।
कठबोली की शब्दावली कछु ख़ास क्षेत्र जैसैं कैं 'हिंसा, अपराध, ड्रग्स और सेक्/जेण्डर ' में विशेष रूप ते समृद्ध हैं। वैकल्पिक रूप ते कठबोली, वर्णन करी गयी चीजन के संग केवलअपनेपन ते बाहर निकल सकतै। मोबाइल फोनन पै प्रयोग होबे वारे SMS की भाषा (LOL)", जो "जोर से हंसने" या "जोरदार हँसी" कूँ बतामतै ।
कठबोली कौ निम्न या गैर-प्रतिष्ठित लोगों की शब्दावली ते है ।
कठबोली बोलबे ते बोलने वारेन कौ सामाजिक स्तर या गौरव नीचौ हैमतौ है, ऐसौ कछूक लोग मानतें ।
फट्टू
जुगाड़ी
घंटा
ओए
काण्ड
ऐस्तैसी
अंगुरिया करनौ
निकम्मौ
बैतल
गैला
ऊधमगारौ
छैला
छिछोरा
छोट्टिया
महेरी खाबा
लटूरेन में आग लगा दंगो
पेंदना-पेंदीनी से
चटकी पेंन्दी के
मूला
बहलोल
सिर्री
घण्टोली
नथोली
सूधौ
भिनगा
मचूच
दारी के
टेड़ा
कंजा
भेंडा
कनेटा
छैल-छबीली
रंगरसिया
भडुआ
रडुआ
चुप्प छिनार
गंजेड़ी
ठोड़ीहला
चिलुआ
चम्पू
चटोरा
चांदमारा
मालामारा
बहरूपिया
बाबड़े
भोलू
ऐंठू
टुंडा
गुटारी
मुच्छड़
गौंछा
दढ़ियल
कलुआ
कटल्ला
अधूंस
पेट्या
रोडू
पद्दू
रंहट्या
उर्रु
लुंड
मलूक
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क्या गाली पुराने समय में भी लोग दिया करते थे ?
एक आदर्श समाज में गाली के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, पर हम जानते हैं ऐसा सिर्फ कल्पनाओं में होता है ।लोग एक-दूसरे को जलील करने के तरीके खोज ही लेते हैं और ये हमेशा करते भी रहेंगे । आपने कभी गौर किया है कि हमारे किसी भी प्राचीन ग्रंथ और महाकाव्यों में गाली का एक शब्द भी नहीं है. महाभारत में इतनी मारकाट और रक्तपात है पर कोई किसी को गाली नहीं देता. जबकि इतना तो तय है कि जन-जीवन में गालियां जरूर रही होंगी. यहां तक कि ग्रीक गंथ्रों, जैसे होमर के महाकाव्य ‘इलियड और ओडिसी’ में भी गाली नहीं मिलती. कालिदास जैसे महान कवि नायिका के अंग-अंग का मादक वर्णन तो करते हैं पर किसी गाली का कोई सन्दर्भ नहीं देते ।गाली शब्द का ज़िक्र होते ही क्यों मां, बहन और बेटियों का ही ख़्याल आता है क्योंकि पुरुषों के लिए तो कोई गाली बनी ही नहीं! तन्वी जैन इन गालियों को औरतों के ख़िलाफ़ 'शाब्दिक हिंसा' मानती हैं.
गालीन कौ वर्गीकरण-
मोटे तौर पै गालीन कूँ पांच परिवारन में विभक्त कर सकतें पहलौ सगे-सम्बन्धीन ते यौन-सम्बन्धन कूँ लै कैं बनबे वारी, दूसरी, शरीर के अंग-विशेष कूँ केन्द्रित करकैं दयी जाबे वारी गाली (जे पश्चिमी देशन में ज्यादा प्रचलित हैं जैसैं asshole, dick, cunt, prick इत्यादि), तीसरी, जानवरन के ऊपर रखकैं दयी जाबे वारी, चौथी है, जाति या नस्ल के नाम पै दयी जाबे वारी और पांचवीं, लिंग के आधार पै बनबे वारी । फुटकर गालीन के रूप में संख्या, फूल, पेड़न के नाम पर बनवे वारी गालीन कौ एक छोटॉ उप-परिवारहु है सकतौ है ।
बाबा जी कौ घंटा
गांडू
बकचो*
सारे
सास के
बहिनचो...
धी के लौंडा
बाबरचो*
बिजलौंडी
रांडी
रंडी
ब्रजभाषा में आप इन पंक्तिन ते समझबे की चेष्ठा करौ एक बार...
ब्रज की भाषा लगै अति प्यारी,
अति ही सुंदर लागत मोकूँ यहां "सारे" की गारी ।
या भाषा कूँ बोल गये हैं जबते कुंज बिहारी ।
तब ही ते अति सरस भयी, जे बोलत में सुखकारी ।
ओरे!अरे! अरी! कहि बोलैं, सबरे ब्रजवासी नर नारी ।