ब्रजभाषा देश की प्राचीनतम भाषान में ते एक है। जे केवल ब्रज क्षेत्र में ही नाँय बल्कि देश के अधिकांश भागन में बोली और समझी जाबे वारी भाषा है।
हमने प्रेम कूँ खानेन में विभक्त करने में कोई कसर नाँय छोड़ी, लेकिन प्रेम तौ प्रेम ही है। अभागौ है दुनिया में बू व्यक्ति जाने काऊ कूँ प्रेम नाँय करौ या जो काऊ के प्रेम कौ पात्र नाँय बनौ। ध्यान रखबे वारी बात जे है कै जहाँ अहम् होयगौ, वहाँ प्रेम नाँय मिलैगौ। जहाँ अविश्वास होयगौ, स्वार्थ होयगौ, भेदभाव होयगौ वहाँ हु प्रेम नाँय होयगौ। दूसरी ओर जहाँ प्रेम होयगौ वहाँ लगाव जरूर होयगौ, अपनौपन होयगौ, आत्मत्याग व समर्पण हु होयगौ ।
अनेक ऐसे विद्वान भये हैं, जिन्नै ब्रजभाषा में बहुत ही उल्लेखनीय काम करते भये याय राष्ट्रीयऔर अंतरराष्ट्रीय आयाम दियौ है ।
इमरै ने ब्रजभाषा साहित्य कौ मूल भाषा में गहरौ अध्ययन कियौ है और भाषान की राजनीति कूँ लै कैं हु वे काम करते रहे हैं ।
रुपर्ट स्नेल हु केवल या ही काम के लिए नाँय जाने जाँय विनकूँ ब्रजभाषा साहित्य पै अपने शोध और किताबन के लैं जानौ जामतौ है । ब्रजभाषा में कृष्णभक्ति काव्य परंपरा कूँ लै कैं हिंदी तक में शायद ही काऊ विद्वान ने इतेके विस्तार ते काम कियौ है । हिंदी में कृष्णभक्ति काव्य-परंपरा कौ सबरौ जोर सूरदास और अष्टछाप के कवीन पै रह्यौ है, लेकिन रुपर्ट स्नेल नै अपने शोध के माध्यम ते जे दिखायौ कै बड़ी संख्या में कवि कृष्ण भक्ति काव्य की रचना कर रहे हते और ब्रजभाषा की व्याप्ति के पीछैं इन्हीं भक्त कवियों कौ बड़ौ योगदान रह्यौ
यदि ब्रजक्षेत्र की एक सर्वमान्य भाषा होंत है तौ ब्रजमंडल के हर जिलेन में व्यक्तिन ते के संग सम्पर्क बढ़िया ते जुड़ सकतौ है, या ते विकास के हु रास्ते खुल सकतें। ब्रजमण्डल की एकता एवं संप्रभु अखण्डता के लैं ब्रजप्रदेश में एक भाषा कौ होनौ अत्यन्त आवश्यक है। मातृभाषा सीखबे, समझबे एवं ज्ञान की प्राप्ति में सरल है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने स्वयं के अनुभव के आधार पर कही है कै ‘‘मैं अच्छौ वैज्ञानिके या लैं बनौ, चौं कै मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त करी (धरमपेठ कॉलेज नागपुर)। अंग्रेजी भाषा माध्यम में पढ़ाई में अतिरिक्त श्रम करनौ पड़तौ है। मेडिकल या इंजीनियरिंग पढ़बे हेतु पहलैं अंग्रेजी सीखनी पड़तै और बाद में विन विषयन कौ ज्ञान प्राप्त होंतौ है। पंडित मदन मोहन मालवीय अंग्रेजी के ज्ञाता थे। विनकी अंग्रेजी सुनवे कूँ अंग्रेज विद्वान हु आमत हते लेकिन विन्नै कही हती कै ‘‘मैं 60 वर्ष ते अंग्रेजी कौ प्रयोग करतौ आ रह्यौ हूँ, परन्तु बोलबे में हिन्दी जैसी सहजता अंग्रेजी में नाँय आ पामत। या ही प्रकार विश्व कवि रविन्द्र नाथ ठाकुर नै कही है, ‘‘ यदि विज्ञान कूँ जन-सुलभ बनानौ है तो मातृभाषा के माध्यम ते विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए।’’ या सम्बन्ध में महात्मा गांधी कौ हु मत हतो कै अंग्रेजी माध्यम ने बच्चन की तंत्रिकान
भार डालौ है , विन्नै रट्टू बनायौ है, वे सृजन के लायक नाँय रहे। .विदेशीभाषा ने देशी भाषान के विकास कूँ बाधित करौ है।
विश्व के आर्थिक एवं बौद्धिक दृष्टि ते सम्पन्न जैसे अमरीका, रशिया, चीन, जापान, कोरिया, इंग्लैण्ड , फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इजरायल आदि देशन में जन समाज, शिक्षा एवं शासन-प्रशासन की भाषा वहां की अपनी भाषा ही है।
याकौ तात्पर्य जे है कै जब तक भारत में शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षा एवं न्यायालय सहित शासन-प्रशासन कौ कार्य अपनी भाषा में नाँय होयगौ तब तक देश आगे नाँय बढ़ सकै।
बच्चन के मानसिक विकास के लैं मातृभाषा इतेक ही आवश्यक है जितेक शारीरिक विकास के लैं माँ कौ दूध’’ ।
भाषा संस्कृति और संस्कारन की संवाहिका हैमतै। भाषा के पतन ते संस्कृति व संस्कारन कौ ही पतन है रह्यौ है। भाषा बदलबे ते मूल्य हु बदल जामतें। भाषा संस्कृति कौ अधिष्ठान है।
कार्य व व्यवहार में अपनी भाषा कौ ही उपयोग करैं। अपने बालकन कूँ मातृभाषा में ही पढा़यें। अपने संगठन, संस्था के स्तर पै सबरौ कार्य व्यवहार अपनी ही भाषा में करैं। घर, कार्यालय, दुकान में नाम पट्ट एवं पट्टिकान कूँ अपनी भाषा में ही लिखें। अपने व्यक्तिगत पत्र, आवेदन पत्र, निमंत्रण-पत्र आदि हु मातृभाषा या भारतीय भाषा में लिखें या छपवाऔ।