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ब्रजमण्डल में मेट्रोन के आवे-जाबे की घोषणा ब्रजभाषा में कैसैं होयगी

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Friday, 29 November 2019

ब्रजभाषा में parts of opeech

Brajbhasha Part Of Speech-

Noun

काउ व्यक्ति, स्थान, वस्तु आादि के नाम कूँ संज्ञा कहमतें |
जैसे-कमला, रोहन, मुंबई, गाय-गैया, चूहा-मूसौ, बैल-बिजार, बछड़ा-जैंगरा, नेवला-न्यौरा, तोता –हरिया
चिड़िया-चिरैया, ट्रेक्टर- टैकटर, बाइक- मोटर साईकिल , टेम्पो-टम्पू , बघ्घी-बुग्गी , भूसा –भुस, चावल-चामर
बाजरा-बाजरौ, ज्वार चरी , बरसीम -बरसम, भैंस का बच्चा – पड्डा, सियार-सियारिया, नील गाय -रोज
बकरी-बकरिया, मंदिर-मिन्दर , गोवर्धन – गोधन, वृन्दावन-बिन्दावन, बलदेव-दाऊजी, मोर-मोरा , मथुरा-मथरा
संज्ञा कैउ (निरी ) प्रकार की हैमतैं-

संज्ञा के भेद –

भाववाचक संज्ञा
संख्यावाचक संज्ञा
लिंगवाचक संज्ञा
समूहवाचक संज्ञा
भाववाचक संज्ञा-बा शब्द कूँ कहमतें जाकौ उपयोग काउ गुण या स्थिति कौ वर्णनन एक वस्तु की तरह करतें |
जैसे-दूसरेन कौ भलौ करबौ अच्छाई कहलाबै |
या वाक्य में अच्छाई भाव भाववाचक संज्ञा ऍह |
अच्छाई, सफेदी, इमान्दारी, बहादुरी, प्रसन्नता, हरकत, बचपन, युवावस्था, गरीबी आदि |
संख्यावाचक संज्ञा-या तरह की संज्ञा बिन शब्दन के बारे में बतामते जो गिनती की जानकारी दैमतें |
जैसे- दो छोरा गाम की ओर जारे ऍह |
लिंगवाचक-व्यक्ति, पशु या वस्तु के लिंग की जानकारी मिलतै |
जैसे-छोरा स्कूल कूँ गए हतें | या वाक्य में छोरा पुल्लिंग ऍह |
समूहवाचक संज्ञा-कछु बस्तून और व्यक्तिन कौ जिक्र एक साथ करने के लैं याकौ प्रयोग करतें |
जैसे- भैंसन कौ झुण्ड बम्मा में नहारौ ऍह |
वचन – दो प्रकार के हैमतैं
एकवचन- एकवचन में केवल एक जाती,वास्तु,गुण आदि कौ बोध हैमतौ ऍह |
बहुवचन- बहुवचन दो या दो ते ज्यादा(कैउ) बस्तुन या गुणन कौ बोध हैमतौ ऍह |
ब्रजभाषा में शब्द के पीछें “न” लगाबे तेई बहुवचन बन जामतौ ऍह |
जैसे-
चिरैया -चिरैयान कार-कारन भैंस -भैंसन किताब-किताबन
उदा ०- मेरी सब किताबन नै या किताबन कूँ मेरे थैला में रख देऔ |
सबरे गेहूं के दाने तौ चिरैयान नै चुग लिए |
कुत्तान नै/कूँ तौ घूंसबे की तौ बहौतई बुरी टेब ऍह -कुत्तो को भौकने की तो बहुत ही बुरी आदत है |

PRONOUN-

संज्ञा की जगह पै प्रयोग करबे बारे शब्दन कूँ सर्वनाम कहमतें |
जैसे-
वह – वह-बू, उस -बा, उसे -बाय , वे-बे,,उसका -बा कूँ या बाकौ उसी को- बाई कूँ,उनको- बिन कूँ या बिन्नै
तुम – तोय या तू , तुम्हें -तुझे,तुमको ही- तुमकूँ ई या तोकूँ ई ,तेरे लिये-तेरे काजें या तिहारे लैं, तूने-तैनैं
इस – या, इसे-याय,इसी -यायी,इसी कूँ-यायी कूँ, इसी के लिए -यायी के मारें ,इसी की बजह से- यायी के मारें,इनको-इनकूँ या इन्नै,इसका-या कूँ, या याकौ,इसी को-याई कूँ
हम – हम,हम ही-हमई,हम भी-हमउ ,हम से-हम ते, हमारा-हमारौ, हमको-हमकूँ, हमारे लिए-हमारेउ काजें
मैं – मैं, मुझ-मो, मुझे- मोय, मुझको- मोकुं, मुझ से- मो ते
भी- उ, ही-ई, मुझे भी- मोएउ, मुझे ही- मोएई, मेरे लिए -मेरे काजें,मुझ को ही- मो कूँ ई
की बजह से- के मारें
के लिए -के काजें ,से- ते
जिस– जा जिसका-जाय या जाकौ
इधर– इतकू या इत्ते या इल्लंग, उधर बितकू या बित्ते या पल्लंग, यहाँ- इतकूँ वहां -बितकूँ

सर्वनामउ निरे प्रकार के रहमतें –

व्यक्तिवाचक सर्वनाम- बू, बे, मैं, तोय आदि जैसे शब्दों को व्यक्तिवाचक सर्वनाम या Personal Pronoun कहमतें, चौंकि ये शब्द सूदे सूदे काउ व्यक्ति या वस्तु कौ ग्यान करबामतैं |
जैसे-बू और मोहन मिलकें अच्छौ काम करतें |
संकेतवाचक सर्वनाम- या सर्वनाम के रूप में या बा, याय, बाय शब्दन कौ प्रयोग जो काउ वस्तु/वस्तुन की ओर संकेत करबे के लैं करौ जामतौ ऍह, तौ बिन्नै संकेतवाचक सर्वनाम कहमतें |
जैसे-कोई व्यक्ति इतकूँ आ रौ ऍह |
बू मेरौ गाम वैसौ नाँय जैसौ तुम सोचरे ऍह |
अनिश्चयवाचक सर्वनाम- कभऊ कभऊ वाक्य में प्रयुक्त सर्वनाम काउ विशेष वस्तु या व्यक्ति कूँ नाँय दर्शाबै, बाकौ उपयोग एक सामान्य तौर पै करौ जामतौ ऍह ऐसे सर्वनाम कूँ अनिश्यवाचक सर्वनाम कहमतें |
जैसे-कछु आदमी बहौत अच्छे हैमतें |
कोई कोई बाकी दुःख की नाँय सुनरौ |
प्रश्नवाचक सर्वनाम- इन्नै प्रश्न पूछबे के लैं प्रयोग करौ जाय |
जैसे- 
को ऍह तू ?
कुनसे कौ ऍह ई पेन ?
चौं आजकल्ल के छोरांन /छोट्टन नै बुरी टेब पररई ऍह ?

VERB-

काउ बस्तु या चीज के बारे में कहबे के लैं याकौ प्रयोग हैमतौ ऍह |
क्रिया के कैउ (निरे ) प्रकार ऍह-
अकर्मक क्रिया।
सकर्मक क्रिया।
द्विकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया- जिन क्रियान कौ असर “कर्ता ” पै परतौ ऍह, बू अकर्मक कहलामतें |
जैसे-
राकेश रोमतौ ऍह |
पप्पू खामतौ ऍह |
उदा०–खाना=खानों पीना-पीनौ रहना-रहनौ सोना-सोनौं काटना-काटनौ चलना-चलनौ
सकर्मक क्रिया-जिन क्रियान कौ असर “कर्म ” पै परतौ ऍह, बू सकर्मक कहलामतें |
जैसे-
मैं लेख लिखतौ ऊँह |
मीरा फल लामतै |
द्विकर्मक क्रिया- जिन क्रियान में दो कर्म हैमत होंय,बाय द्विकर्मक क्रिया कहमतें |
जैसे-
मैंने रामें पुस्तक दई या मैंने राम कूँ पुस्तक दई |
दददू नै मो पै ते पइसा लिए |
प्रेऱणार्थक क्रिया बनाबे के नियम- ज्यादातर धातून ते दो-दो प्रेरणार्थक क्रिया बनतैं | जैसे- गिरना-गिरवाना , चढ़ना-चढ़वाना, पीटना-पिटवाना, लूटना-लुटवाना आदि |
अन्य-
जैसे-सुरेश कलेऊ (नाश्ता) कर रौ ऍह |
हरी लड्डू खा रौ ऍह |
चिरैया आसमान में उड़ रई ऍह |
घोडा घास चर रौ ऍह |
छोरा सबन के ऊपर गुलाल भुरक (उड़ेलना) रौ ऍह |
गुरु जी बन्दरन नै तार (भगा) रे ऍह |
बू बापै भैरा रौ ऍह – (वो उस पर गुस्सा निकल रहा है)
छोरी बाहर जाबे कौ मूडौ बना रई ऍह |- (लड़की बाहर जाने का बहाना बना रही है |
Causative verbs –
या प्रकार के वाक्यन में कर्ता कोई काम अपने आप ना करकें ,कोई दूसरे ते करबामतौ ऍह |
उदा०-भगबायौ,पिटबायौ ,कुचलबायौ,सरकबायौ, खबबायौ,नहलबायौ आदि |
जैसे-
कल्लू छाछ महेरी कौ कलेऊ लैंकै बारेन (पास के खेत ) तानीपहुँचबा देगौ |
आज ई सबरे घर के कूरे (कूड़े ) कूँ बहार फिकबा दंगो |
छापौ परबे ते पहलें कागजन नैपजरबा (जलना ) दंगो |
हमारे यांह आ जइयो मैं तोय रोटीखबबा (खिलबा) दंगो |
गाम के प्रधान नै मजदूर पिटवाये |

Adjective-

कोई शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतामत होय, बाय विशेषण कहमतें |
जैसे- बू एक ज्वान छोरा ऍह |
कछु विशेषण शब्द नीचे दिए जा रे ऍह-
खारा-खट्टो, कड़वा-कलेलौ, मीठा-मीठौ
कला-कारौ पीला-पीरौ भूरा-गोरौ सफ़ेद-धौरौ
अच्छा- नेक, सुन्दर-मलूक, चतुर-चालाक
शरारती-निकममौ या बेहया, नुकीला-पैनौ
विशेषण के कैउ प्रकार हैमतैं –
गुणवाचक विशेषण
समूहवाचक विशेषण
संकेतवाचक विशेषण
परिमाणवाचक विशेषण
गुणवाचक विशेषण- संज्ञा के गुण या प्रकार कूँ दिखाबे बारे शब्दन कूँ गुणवाचक विशेषण कहमतें |
जैसे- दिल्ली बहौत बड़ौ शहर ऍह |
समूहवाचक विशेषण-  जिन शब्दन के द्वारा सामूहिक संख्या कौ बोध होय,बाय समूहवाचक विशेषण कहमतें |
जैसे-दो आदमी सुरेश के संग कलेऊ (नाश्ता) कर रे ऍह |
संकेतवाचक विशेषण- जिन शब्दन संकेत में कौ बोध होय,बाय संकेतवाचक विशेषण  कहमतें |
जैसे- बू आदमी स्वभाव में बड़ौ अच्छौ ऍह |
परिमाणवाचक विशेषण- जिन शब्दन में नाप-तौल कौ बोध होय,बाय परिमाणवाचक विशेषण  कहमतें |
जैसे- मोय दो मीटर लत्ता चहियै |
संज्ञा से विशेषण बनानौ –
प्रत्यय संज्ञा विशेषण
क –
अंश-आंशिक
धर्म धार्मिक
अलंकार -आलंकारिक
नीति-नैतिक
अर्थ-आर्थिक
दिन-दैनिक
इतिहास- ऐतिहासिक
देव-दैविक
इत-
अंक-अंकित
कुसुम-कुसुमित
सुरभि-सुरभित
ध्वनि-ध्वनित
क्षुधा-क्षुधित
तरंग-तरंगित
इल-
जटा-जटिल
पंक-पंकिल
फेन-फेनिल
उर्मि-उर्मिल
इम-
स्वर्ण-स्वर्णिम
रक्त-रक्तिम
ई-
रोग-रोगी
भोग-भोगी
ईन-
कुल-कुलीनAdverb-
क्रिया की विशेषता बताबे बारे शब्द कूँ क्रिया-विशेषण कहमतैं |
जैसे-
जल्दी-बेगि बड़ा-बड़ौ खारा-खट्टो, कड़वा-कलेलौ मीठा-मीठौ कला-कारौ पीला-पीरौ भूरा-गोरौ सफ़ेद-धौरौ अच्छा- नेक सुन्दर-मलूक शरारती-निकममौ या बेहया नुकीला-पैनौ चतुराई -चालाकी
ई कैउ प्रकार कौ हैमतौ ऍह-
स्थानवाचक
कालवाचक
परिमाणवाचक
दिशावाचक
रीतिवाचक
स्थानवाचक- काउ स्थान कौ बोध कराबे बारे शब्दन नै,स्थानवाचक कहमतें |
जैसे- बू यही कहीं छिपौ ऍह |
यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, तहाँ, सामने, नीचे, ऊपर, आगे, भीतर, बाहर
कालवाचक- समय कौ बोध कराबे बारे शब्दन नै,स्थानवाचक कहमतें |
जैसे- मैं दिल्ली कूँ कल जांगो |
आज, कल, परसों, पहले, पीछे, अभी
परिमाणवाचक- मात्रा या निश्चित संख्या कौ बोध कराबे बारे शब्दन नै,स्थानवाचक कहमतें |
जैसे- घर के बाहर मेह पररौ ऍह |
बहुत, अधिक, पूर्णतया, सर्वथा, कुछ, थोड़ा, काफ़ी, केवल
दिशावाचक- काउ क्रिया की दिशा कौ बोध कराबे बारे शब्दन नै,स्थानवाचक कहमतें |
जैसे- हम दोनों एक दूसरे के दांये -बांये चलेंगे |
दायें-बायें, इधर-उधर, किधर, एक ओर, चारों तरफ़
रीतिवाचक- काउ रीति कौ बोध कराबे बारे शब्दन नै,स्थानवाचक कहमतें |
जैसे- बापै सचमुच गानों गाबौ आमतौ ऍह |
सचमुच, ठीक, अवश्य, कदाचित्, यथासम्भव
अन्य उदाहरण-
राजू बहौतबेगि दौड़तौ ऍह |
यांह बेगि शब्द दौड़बे ( क्रिया ) की बिशेषता बतारौ ऍह
चिरैया आसमान में ऊंची उड़ रई ऍह |
घोडा हरी घास चर रौ ऍह |
छोरा सबन के ऊपर रंग-बिरंगी गुलाल भुरक (उड़ेलना) रौ ऍह |
गुरु जी बन्दरन नै मोटे बारे डण्डा ते तार (भगा) रे ऍह |
बू बापै बड़े-बड़े ढिले (मिटटी के टुकड़े ) फैंकरौ ऍह – (वो उस पर गुस्सा निकल रहा है)

conjuction-

जब दो या दोन ते ज्यादा शब्दन कूँ या वाक्यन कूँ जोङतौ ऍह । बाय समुच्चयबोधक कहमतें |
कछु शब्द या प्रकार ऍह-
तब,और,बरना,इसलिए,ताकि,चूँकि,अथवा,अन्यथा,एवं,तौ,फलतः, ,परन्तु, पर, किन्तु, मगर यदि….तो, जा…तो, यद्यपि….तथापि, यद्यपि…परन्तु आदि।
जैसे-
तू चाहमतौतौ तौ बू कल आ जामतौ |
दोऔर दो चार हैमतें |
रोहन आगरा जा रौ ऍहमगर मोहन दिल्ली कूँ |
मैं पढ़नौ चहामतौ ऊँहपर किताबन ते नाँय सिर्फ ऑनलाइन ई |
राहुल आज विष्णु केसंग पोखर पै गयो ऍह |
Note-
Conjunctions की ई तरह relative pronouns, relative adverbs और prepositions ऊ शब्दन या वाक्यन कूँ जोड़ने कौ काम करतें | यालैं (इसलिए इन्नै अलग अलग चिन्हित करते समय सावधानी बर्तनों जरुरी ऍह |

preposition-

बे शब्द या बिन शब्दन कौ समूह जो काउ संज्ञा या सर्वनाम ते पहले लगाए जामतें और बू सम्बन्धसूचक बा संज्ञा या सर्वनाम कौ सम्बन्ध काउ दूसरे शब्द ते प्रदशित करतें |
या यौंह कह सकैं कै “बू वाक्य जामें गहरी अनूभूति हो बाय विस्मयादिबोधक कहमतें” |
जैसे- कौ,की,के,भी,लिए,और आदि
बू किसान खेतमें काम करतौ ऍह |
बबलू पोखरके अंदर नहारौ ऍह |
राम, श्यामकौ बहौत बडे मित्र ऍह |
राम की मोय नाँय पतौ , बू घर ते बाहर ऍह |
राम अपने घर वारेन के संग सबरे सामान समेत गयौ ऍह |
यांह जो ऊपर गहरे शब्द ऍह, बे सब सम्बन्धबोधक ऍह |
“भी” शब्द कौ प्रयोग-
काउ शब्द के पीछैं “उ” लगाबे ते हिंदी के “भी” शब्द के हांई काम करतौ ऍह |
जैसे-
महादेवउ और रमेशउ दिल्ली कूँ जांगे |-महादेव भी रमेश भी दिल्ली को जाएंगे
तूउ और मैंउ संगई संग जांगे |
मैं खाबे कूँ तोकूँ चीनीउ और बुरौउ दंगो |
रेलउ और बसउ दोनोंई खचाखच भरी भयीं हती |
तूउ और मैंउ संगई संग जांगे |
याकेउ छोरा कौ नाम कान्हा ऍह और बाकेउ छोरा कौ नामउ कान्हा ऍह |
“ही” अक्षर कौ प्रयोग-
काउ शब्द के पीछैं “ई” लगाबे ते हिंदी के “ही” शब्द के हांई काम करतौ ऍह |
जैसे-
गोविन्दई जायगौ गोकुल ते बल्देब कूँ दूध लैंकैं |
सबरी चीजन नै तौरामई कूँ दियायौ ऍह, मोकूँ तौ तैनैं झुनझुना पकरा दियौ ऍह |
एक तूई ऍह जो मेरे हाँईं ऍह जो कछु मेरीउ सुन लैमतौ ऍह |
सब कहमतें कै भगवान तौएकई ऍह, जबउ पतौ नाँय आदमी धर्म कूँ लैकें चौं लडतें |
“मॉंऊँ” शब्द कौ प्रयोग-
काउ शब्द के पीछैं “मॉंऊँ” लगाबे ते हिंदी के “तरफ या ओर” शब्द के हांई आबाज पैदा करतौ ऍह |
जैसे-
बाकी मय्यो तेरी मय्यो केहाईं नाँय, बा ते सौबट चोखी ऍह |
भारत चीन केहाईं बड़ौ देश ऍह |
“मारें ” शब्द कौ प्रयोग-
काउ शब्द के पीछैं “मारें ” लगाबे ते हिंदी के ” बजह ” शब्द के हांई आबाज निकरतै |
जैसे-
आज तेरी इन गलतीन के मारें मोय यहाँ आनौ परौ ऍह |
दुनिया में पाकिस्तान कौ नाम आतंकवाद केमारें बदनाम भयौ परौ ऍह |
“कूँ या ‘के लैं’ ” शब्द कौ प्रयोग-
काउ शब्द के पीछैं “कूँ ” लगाबे ते हिंदी के ” को ,के लिए ” शब्द के हांई आबाज निकरतै |
जैसे-
आज तेरी इन गलतीन केमारें मोय यहाँ आनौ परौ ऍह |
आज सबरे कामन नै तोकूँ दंगो, चौंकै मौ कहूँ बाहर जानौ ऍह |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीन नै विकास के लैं तौ बेर बेर में इत ते बित कूँ जानौ पररौ ऍह |
” पै ” शब्द कौ प्रयोग-
काउ शब्द के पीछैं “पै ” लगाबे ते हिंदी के ” पर ” शब्द के हांई आबाज निकरतै |
जैसे-
तोपै, हम पै,  सब पै,  और या देश रहबे बारे सबरे आदमीं पै देश की मट्टी कौ कर्ज ऍह |
यांह जितनेउ लोग ठाड़े ऍह बिन सबरेनपै ते १००-१०० रुपैयान की उगाही कर लेऔ |
” संग ” शब्द कौ प्रयोग-
काउ शब्द के पीछैं “संग ” लगाबे ते हिंदी के ” साथ ” शब्द की आबाज निकरतै |
जैसे-
बहु अपने दूल्हा केसंग खेतन नै देखबे जा रही है |
हमें गरीब लोगन कौ संग देनौ चइयै |

Interjection-

विस्मयादिबोधक कौ प्रयोग “जिया” में (हृदय में) एकदम या अचांनचक्क हैबे बारी भावनान कूँ ऊ बताबे के लैं हैमतौ ऍह |
या यौंह कह सकैं कै “बू वाक्य जामें गहरी अनूभूति हो बाय विस्मयादिबोधक कहमतें” |
जैसे-
अरे! (उरे )
काश!
वाह!
हाय
(1) हर्षबोधक- अहा ! धन्य !, वाह-वाह !, ओह ! वाह ! शाबाश !
(2) शोकबोधक- आह !, हाय !, हाय-हाय !, हा, त्राहि-त्राहि !, बाप रे !
(3) विस्मयादिबोधक- हैं !, ऐं !, ओहो !, अरे, वाह !
(4) तिरस्कारबोधक- छिः !, हट !, धिक्, धत् !, छिः छिः !, चुप !
(5) स्वीकृतिबोधक- हाँ-हाँ !, अच्छा !, ठीक !, जी हाँ !, बहुत अच्छा !
(6) संबोधनबोधक- रे !, री !, अरे !, अरी !, ओ !, अजी !, हैलो !
(7) आशीर्वादबोधक- दीर्घायु हो !, जीते रहो !
उदाहरण –
उरे ! ई तौ बहौत मलूक ऍह |
वाह: ! कितनौ अच्छौ मौसम ऍह ।
हाय ! इतनी कर्री टक्कर भयी, कै मेरे अबउ पाम कांप रे ऍह |
बाप रे बाप ! तैनैं ई काह कर डारौ |
हाँ जी ! तुम या काम कर सकतें |

ब्रजभाषा का इतिहास


BRAJ KI BOLI

बृजभाषा मूलत: बृज क्षेत्र की बोली है। (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में “व्रज” शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तकभारत के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ “भाषा” नाम प्राप्त किया और “ब्रजबोली” नाम से नहीं, अपितु “ब्रजभाषा” नाम से विख्यात हुई। अपने विशुद्ध रूप में यह आज भी आगरा, हिण्डौन सिटी,धौलपुर, मथुरा, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम “केंद्रीय बृजभाषा” के नाम से भी पुकार सकते हैं। बृजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई। सभी भक्त कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव,घनानंद, बिहारी, इत्यादि। हिन्दी फिल्मों के गीतों में भी बृज भाषा के शब्दों का प्रमुखता से प्रयोग किया गया है।
आधुनिक ब्रजभाषा 1 करोड़ 23 लाख जनता के द्वारा बोली जाती है और लगभग 38,000 वर्गमील के क्षेत्र में फैली हुई है। ब्रजभाषा का कुछ मिश्रित रुप जयपुर राज्य के पूर्वी भाग तथा बुलंदशहर, मैनपुरी, एटा, बरेली और बदायूं ज़िलों तक बोला जाता है। ग्रिर्यसन महोदय ने अपने भाषा सर्वे में पीलीभीत, शाहजहाँपुर, फर्रूखाबाद, हरदोई, इटावा तथा कानपुर की बोली को कन्नौजी नाम दिया है, किन्तु वास्तव में यहाँ की बोली मैनपुरी, एटा बरेली और बदायूं की बोली से भिन्न नहीं हैं। अधिक से अधिक हम इन सब ज़िलों की बोली को ‘पूर्वी ब्रज’ कह सकते हैं। सच तो यह है कि बुन्देलखंड की बुन्देली बोली भी ब्रजभाषा का ही रुपान्तरण है। बुन्देली ‘दक्षिणी ब्रज’ कहला सकती है। * भाषाविद् डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने लिखा है- अपने विशुद्ध रूप में ब्रजभाषा आज भी आगरा, धौलपुर, मथुरा और अलीगढ़ ज़िलों में बोली जाती है। इसे हम केंद्रीय ब्रजभाषा के नाम से भी पुकार सकते हैं। केंद्रीय ब्रजभाषा क्षेत्र के उत्तर पश्चिम की ओर बुलंदशहर ज़िले की उत्तरी पट्टी से इसमें खड़ी बोली की लटक आने लगती है। उत्तरी-पूर्वी ज़िलों अर्थात् बदायूँ और एटा ज़िलों में इस पर कन्नौजी का प्रभाव प्रारंभ हो जाता है। डा. धीरेंद्र वर्मा, कन्नौजी को ब्रजभाषा का ही एक रूप मानते हैं। दक्षिण की ओर ग्वालियर में पहुँचकर इसमें बुंदेली की झलक आने लगती है। पश्चिम की ओर गुड़गाँवा तथा भरतपुर का क्षेत्र राजस्थानी से प्रभावित है। भारतीय आर्य भाषाओं की परंपरा में विकसित होने वाली “ब्रजभाषा” शौरसेनी भाषा की कोख से जन्मी है। गोकुल के वल्लभ-सम्प्रदाय का केन्द्र बनने के बाद से ब्रजभाषा में कृष्ण साहित्य लिखा जाने लगा और इसी के प्रभाव से ब्रज की बोली साहित्यिक भाषा बन गई। भक्तिकाल के प्रसिद्ध महाकवि सूरदास से आधुनिक काल के श्री वियोगी हरि तक ब्रजभाषा में प्रबंध काव्यऔर मुक्तक काव्यों की रचना होती रही।
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ब्रजभाषा का क्षेत्र रूप-

भाषा का क्षेत्रीय रूप बोली कहलाता है। अर्थात् देश के विभिन्न भागों में बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है और किसी भी क्षेत्रीय बोली का लिखित रूप में स्थिर साहित्य वहाँ की भाषा कहलाता है।
ब्रजभाषा क्षेत्र की भाषागत विभिन्नता को दृष्टि में रखते हुए हम उसका विभाजन निम्नांकित रूप में कर सकते हैं:
  • 1. आदर्श ब्रजभाषा – अलीगढ़, मथुरा तथा पश्चिमी आगरा की ब्रजभाषा को “आदर्श ब्रजभाषा” कहा जा सकता है।
  • 2. बुंदेली ब्रजभाषा – ग्वालियर के उत्तर-पश्चिम में बोली जाने वाली भाषा को कहा जा सकता है।
  • 3. राजस्थानी से प्रभावित ब्रजभाषा – यह भरतपुर और उसके दक्षिणी भाग में बोली जाती है।
  • 4. सिकरवारी ब्रजभाषा – यह ग्वालियर के उत्तर पूर्व में जहाँ सिकरवार राजपूत हैं, पाई जाती है।
  • 5. जादौबारी ब्रजभाषा – करौली और चंबल के मैदान में बोली जाने वाली भाषा को “जादौबारी ब्रजभाषा” नाम कहा जाता है। जादौ (यादव) राजपूतों की बस्तियाँ हैं।
  • 6. कन्नौजी ब्रजभाषा – एटा, अनूपशहर, और अतरौली की भाषा कन्नौजी भाषा से प्रभावित है।
  • 7. बुंदेली ब्रजभाषा – ग्वालियर के उत्तर-पश्चिम में बोली जाने वाली भाषा को कहा जा सकता है।
ग्वाल कवि,गुरु गोविन्दसिंह जैसे पंजाब क्षेत्र के कवियों ने पंजाबी प्रभाव दिया है। दादू, सुन्दरदास और रज्जब जैसे सन्तकवियों की भाषा में (जो प्रमुख रूप से ब्रजभाषा ही है) राजस्थानी का पुट गहरा है। बुन्देलखण्ड के कवियों में पद्माकर, ठाकुर बोधा और बख्शी हंसराज का प्रभाव उल्लेखनीय है।

प्रयोग के प्रमाण-

महानुभाव सम्प्रदाय (तेरहवीं शताब्दी के अन्त) के सन्त कवियों ने एक प्रकार की ब्रजभाषा का उपयोग किया। कालान्तर में साहित्यिक ब्रजभाषा का विस्तार पूरे भारतमें हुआ और अठारहवीं, उन्नीसवीं शताब्दी में दूर दक्षिण में तंजौर और केरल में ब्रजभाषा की कविता लिखी गई। सौराष्ट्र(कच्छ) में ब्रजभाषा काव्य की पाठशाला चलायी गई, जो स्वाधीनता की प्राप्ति के कुछ दिनों बाद तक चलती रही। उधर पूरब में यद्यपि साहित्यिक ब्रज में तो नहीं साहित्यिक ब्रज से लगी हुई स्थानीय भाषाओं में पद रचे जाते रहे। बंगाल और असम में इन भाषा को ‘ब्रजबुलि’ नाम दिया गया। इस ‘ब्रजबुली’ का प्रचार कीर्तन पदों में और दूर मणिपुर तक हुआ।
इस देश के साहित्य के इतिहास में ब्रजभाषा ने जो अवदान दिया है, उसे यदि हम काट दें तो देश की रसवत्ता और संस्कारिता का बहुत बड़ा हिस्सा हमसे अलग हो जायेगा।
ब्रजभाषा के कवियों ने सामान्य गृहस्थ जीवन को ही केन्द्र में रखा है, चाहे वे कवि संत हो, दरबारी हो, राजा हो या फ़कीर हो। रहीम के निम्नलिखित शब्द-चित्रों में श्रमजीवी की सहधर्मिता अंकित है-
लइके सुघर खुरपिया पिय के साथ। छइबे एक छतरिया बरसत पाथ।।
ब्रजभाषा साहित्य का कोई अलग इतिहास नहीं लिखा गया है, इसका कारण यह है कि हिन्दी और ब्रजभाषा दो सत्ताएँ नहीं हैं। यदि दो हैं भी तो, एक-दूसरे की पूरक हैं। परन्तु जिस प्रकार की अल्प परिश्रम से विद्या प्राप्त करने की प्रवृत्ति ज़ोर पकड़ती जा रही है, जिस तरह का संकीर्ण उपयोगितावाद लोगों के मन में घर करता जा रहा है, उसमें एक प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है, कि हिन्दी साहित्य को यदि पढ़ना-पढ़ाना है तो, उसे श्रीधर पाठक या मैथिलीशरण गुप्त से शुरू करना चाहिए। यह कितना बड़ा आत्मघात है, उसे बतलाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि साहित्य या संस्कृति में इस प्रकार की विच्छिन्नता तभी आती है, जब कोई जाति अपने भाव-स्वभाव को भूलकर पूर्ण रूप से दास हो जाती है। हिन्दुस्तान में ऐसी स्थिति कभी नहीं आयी, आज आ सकती है, यदि इस प्रकार विच्छेद करने का प्रयत्न हो।
जब हम ब्रजभाषा साहित्य कहते हैं तो, उसमें गद्य का समावेश नहीं करते। इसका कारण यह नहीं है कि, ब्रजभाषा में गद्य और साहित्यिक गद्य है ही नहीं। वैष्णवों के वार्ता साहित्य में, भक्ति ग्रन्थों के टीका साहित्य में तथा रीतकालीन ग्रन्थों के टीका साहित्य में ब्रजभाषा गद्य का प्रयोग हुआ है|

ब्रजभाषी गेय पद रचना-

चण्डीदास, विद्यावति तथा गोविन्दस्वामी को छोड़कर गेय पद रचना पर ब्रजभाषा का अक्षुण्ण अधिकार है। तुलसीदास जी ने स्वयं भिन्न प्रयोजनों से भिन्न-भिन्न प्रकार की भाषा का प्रयोग किया।
सुन्दरदास के एक उदाहरण में
तू ठगि कै धन और कौ ल्यावत, तेरेउ तौ घर औरइ फोरै।
आगि लगै सबही जरि जाइ सु तू, दमरी दमरी करि जोरै।
हाकिम कौ डर नाहिन सूझत, सुन्दर एकहि बार निचोरै।
तू षरचै नहिं आपुन षाइ सु तेरी हि चातुरि तोहि लै बोरे।।
सबसे अधिक श्रेय इस विषय में सूरदास को दिया जाना चाहिए। सूर ब्रजभाषा के पहले कवि हैं, जिन्होंने इसकी सृजनात्मक सम्भावनाओं की सबसे अधिक सार्थक खोज की और जिन्होंने ब्रजभाषा को गति और लोच देकर इसकी यान्त्रिकता तोड़ी।

सुन्दर व्याकरणीय प्रयोग-

आगे नन्दरानी के तनिक पय पीवे काज तीन लोक ठाकुर सो ठुनकत ठाड़ौ है…(पद्माकर)
अब रहियै न रहियै समयो बहती नदी पाँय पखार लै री।
राधिका के आनन की समता न पावै विधु टूकि-टूकि तोरै पुनि टूक-टूक जोरै है…(उत्प्रेक्षा)
उलाहनों की भाषा में बाँकपन सूरदास से ही मिलना प्रारम्भ हो जाता है, किन्तु इस युग की कविता में वह बाँकपन कुछ और विकसित मिलता है। जैसे-
भोरहि नयौति गई ती तुम्हें वह गोकुल गाँव की ग्वारिन गोरी। आधिक राति लौं बेनी प्रबीन तुम्हें ढिंग राखि करी बरजोरी।
देखि हँसी हमें आवत लालन भाल में दीन्ही महावर घोरी। इते बड़े ब्रजमण्डल में न मिली कहुँ माँगेहु रंचक रोरी।।
शृंगार रस प्रधान भारतेंदु जी ने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का सुंदर चित्रण किया है। वियोगावस्था का एक चित्र देखिए-
देख्यो एक बारहूं न नैन भरि तोहि याते जौन जौन लोक जैहें तही पछतायगी।
बिना प्रान प्यारे भए दरसे तिहारे हाय, देखि लीजो आंखें ये खुली ही रह जायगी।

ब्रजभाषा के प्रति असजगता-

जो भक्त कवि कुशल नहीं थे, वे भाषा के प्रति सजग नहीं रहे, वे सम्प्रेषण के प्रति उदासीन रहे, उनके मन में यह भ्रम रहा कि भाव मुख्य है, भाषा नहीं। वे यह समझ नहीं सकते थे कि भाव और भाषा का बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। इनके अचेत कवि-कर्म की बहुलता का प्रभाव भाषा पर पड़ा, उसमें कुछ जड़ता आने लगी।


Mathura ki madhuri bhasha-

ब्रजभाषा कौ मानकीकरण –
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ब्रजभाषा कौ मानकीकरण बनौ भयौ ऍह लेकिन बू लिखित रूप में, ‘गद्य के रूप में’ नाँय वैसें पद्य ते तौ अटौ परयौ ऍह |आज के समय ज्यादातर बे ई भाषा आयगें हैं जिनकौ गद्य समृद्ध ऍह लेकिन पुराने दिनांन में पद्य बारी भाषा आयगें हतीं |”वाक्यसंरचना” के हिसाब ते हिंदी भाषा ब्रजभाषा की बिलकुल नक़ल ऍह |
तुम कितेकउ बार तुलना कर लीजों याइ की नक़ल मिलैगी |अब मैं, या ब्रज भाषा के लिखे गए कछु वाक्यन नै हिंदी में ज्यौं की त्यौं रख कैं बता रऊँ|हिंदी में – ब्रज भाषा का मानकीकरण बना हुआ है लेकिन वह लिखित रूप में गद्य के रूप में नहीँ है वैसे पद्य से भरा पड़ा है |आज के समय ज्यादातर वो ही भाषा आगे हैं जिनका गद्य समृद्ध है लेकिन पुराने समय में “पद्य वाली भाषा” आगे थीं ।
“वाक्यसंरचना” के हिसाब से हिंदी भाषा “ब्रज भाषा” की बिलकुल नक़ल है |तुम कितनी भी बार तुलना कर लेना, इसी की नक़ल मिलेगी अब मैं, इस ब्रज भाषा के लिखे गए वाक्यों को हिंदी में ज्यौं की त्यौं बता रहा हूँ |





ब्रजभाषा के संदर्भ में महापुरूषन की कही गयी बात/ब्रजभाषा की महिमा- आदर के भाव से कहें तो वस्तुत: बृज भाषा का प्रसाद है हिन्दी - साहित्य
ब्रज का काव्य और वैष्णव वार्ताऐं वह अविभावक हैं जिन्होंने संस्कृत के धरातल पर भारत को प्रतिनिधी भाषा- हिंदी प्रदान की है ।
हिंदी साहित्य के इतिहासकार आचार्य रामचंन्द्र शुक्ल ( सन् १८४४ - १९४१ ) ने हिंन्दी भाषा का शोध पूर्ण इतिहास लिखा है और स्पष्टत: कहा है कि ब्रज भाषा हिन्दी साहित्य का प्राण है ।

ब्रजभाषा वोई भाषा है, जामें मांगी माखन रोटी
ब्रजभाषा के आगे लागे, हर कोई भाषा खोटी।
ब्रजभाषा ने नाईं देय बस भाषा के अभिमानी
ब्रज भाषा ने दये जगत कूं तुलसी सूर सो ज्ञानी।।

 सजन सरल घनस्याम अब, दीजै रस बरसाय।
जासों ब्रजभाषा - लता , हरी - भरी लहराय।।


जन्मी ब्रजभूमि में पली है तू मलाई पाय,
गोपन कौ माखन सरस सद् खायौ है।
तुलसी के वन में, सुछंद गेंद सूरज की,
खूब खुलि खेलिकें अनूप रूप पायौ है।
ऐहो रसखानि घन आनंद सुमन वारी,
दास मतिराम तोय भूषन सजायौ है।
धन्य ब्रजभाषा तोसी दूसरी न भाषा, तैनें
बानी के विधाता कू बोलिबौ सिखायौ है 

(मथुरा यानी ब्रज का क्षेत्र हमेशा दूध, दही और मलाई से परिपूर्ण रहता है, वहां रहने वाले सदैव मलाई और माखन का सेवन करते रहते हैं और स्वयं कृष्ण को भी मलाई बेहद प्रिय थी। इस भाषा में रसखान और मतिराम जैसे कवियों ने अनेक रचनाएं की हैं और रामनारायम अग्रवाल कहते हैं कि ब्रजभाषा जैसी और कोई दूसरी भाषा नहीं है क्योंकि इस भाषा ने कृष्ण यानी विधाता को बोलना सिखाया है)

सुरपद बरन सुभाय विविध रसमय अति उत्तम,
सुद्ध संस्कृत सुखद आत्मजा अभिनव अनुपम।
दसकाल अनुसार भाव निज व्यक्त करन में,
मंजु मनोहर भाषा या सम कोउ न जग में।
बरनन को करि सकत भला तिह भाषा कोटी,
मचलि मचलि मांगी जामैं हरि माखन रोटी।

(उस भाषा का जग में कोई क्या सानी होगा जिस बोली में हरि के अवतार श्रीकृष्ण ने माखन रोटी मांगी होगी)

ब्रजभाषे हौं भूलि सकति कबहूं नहिं तोकौं
तेरी महिमा और मधुरिमा मोहत मोकौं
वह वृंदावन नंदगांव गोकुल बरसानौ
जहां स्वर्ग कौ सार अवनितल पै रससानौ
वे कालिंदी कूल कलित, कलरव वा जल कौं

झलक जाये स्याम वरन अजहूं स्यामल कौ

वे करील के कुंज चीर उरझावन हारे

रहे आप बलवीर स्वयं सुरझावन बारे

वह केकी, पिक, कूह-कूह चातक की रटना

सांझ सवेरे नित्य नई पनघट की घटना

धेनु-धूरि में मोर-मुकुट बारी वह झांकी

घूंघट-पट की ओट, चोट की चितबन बांकी

वह कदंब की छांह, मेह झर ब्यौरी ब्यौरी

दिये जहां गलबांह सामरी गोरी-गोरी

वह  बसंत की ब्यार, सरद की सुंदर पूनौ

नटनागर कौ रास रहस जहं दिन दिन दूनौ

आंस गांस सौं भरी सांस सौं फूंकनबारी

हरे बांस की पोर हाय हरि की वह प्यारी

वह गोपिन कौ प्र्रेम और निरवाहन बारौ

ऊधौ कौ वह ज्ञान गरव गढ़ ढाहन हारौ

(बहुत ही सुंदर वर्णन किया है मैथिली जी ने ब्रजभाषा का, उन्हें यह भाषा इतनी प्रिय है कि वह इसे कभी भूल नहीं सकते साथ ही वह उस ब्रज क्षेत्र का भी वर्णन कर रहे हैं जहां यह भाषा बोली जाती है कि यह वो स्थान है जहां गोपियों ने उद्धव के ज्ञान को परास्त कर दिया था)

अपनाय लई बनिकें कवि कोविद

काऊ नें गाइ बढ़ाई पिपासा

गुजरात बिहार बंगाल पंजाब,

बुदेलिन नें यै बुलाई है पासा

सब राजन के ढिंग पाय कें मान

कियौ सर्वत्रहि यानें सुबासा

जननी न बनी पै जु काऊ प्रदेश की,

श्प्रीतमाश् के घर की ब्रजभाषा 

✍️ब्रज की भाषा लगै पियारी।

अति ही सुंदर लागत मोकू यहां सारे की गारी

या भाषा कौं बोल गये हैं जबते कुंज बिहारी

तब ही ते अति सरस भई है बोलन में सुखकारी

ओरे अरे अरी कहि बोलैं, ब्रजवासी नर नारी

साभार:- पंडित ओमप्रकाश शर्मा ब्रजवासी 


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