“अंगा” Recipe के बारे में आपने सुना हो या नहीं, लेकिन ब्रजक्षेत्र में घरों में यह शाम को भोजन (Dinner) के रूप में बनाना आम बात है । इसका आकार गोल मोटी रोटी जैसा होता है और इसकी सिकाई उपलों के जलने से जो अंगारे बन जाते हैं, उन पे होती है । इसलिए इसका नाम अंगा पडा । सबसे पहले आटे में थोड़ा बेसन व मसाले डालकर गूँथते हैं फिर इसे डबल रोटी की तरह बेलकर उन उपलों के अंगारौं पे सेकते हैं ।मसालों के तौर पे आप इसमें अजवाइन, थोड़ा जीरा, नमक, हींग इत्यादि मिला लेते हैं ताकि ये खानें में स्वादिष्ट लगे ।कभी-कभी हम इसमें आलू की चटनी भरकर भी सेकते हैं ।
और बने हुए “अंगे” में जो डबल रोटी की तरह होता है उसमें छोटे-छोटे गड्ढे बनाकर घी अच्छे से डाल लेते हैं ।आप इसे अचार या हरी चटनी के साथ खा सकते हैं ।
पुराने समय में लोग इसे शाम के भोजन के साथ- साथ बचे हुए भोजन का, सुबह भी कलेऊ (नाश्ता) कर लिए करते थे।वैसे अब नई पीढी के बच्चों को कम रोचक लगता है, इस वजह से इसका चलन दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है।
मगर पुराने जमाने के लोगों को आज भी पहले की तरह अच्छा लगता है ।
गांव में तो इसके ऊपर कहावत भी है कि ” अरै आजकल तोय अंगा खूब झिककें मिलरे हैं” हिंदी अर्थ- अरे आजकल आपको खाने के लिए ठीक ठाक मिल रहा है ।
इसकी तुलना आप बिहार की डिश ‘लिट्टी चोखा’ से कर सकते हैं ।
अन्य भोजन
1-गूंजा- जे चून(आटा) ते बनबे बारी ऐसी मिठाई ऍह याके अंदर पंजीरी या खोवा (खोया ) भर कैं बनामतैं ।
2-मठरी (मट्ठी - जे हु आटे ते बनबे बारी सुखी खाबे की चीज ऍह जो सबेरे-सबेरे (धौंताय ) जलपान करबे के काम आमतै (बू ऊ चाय के संग)
3-सकलपारे- सकलपारेन नै बनाबे कूँ गुड़ या चीनी के घोल ते आटौ गूँथ कैं फिर बा के बाद, नैक-नैकसे टुकड़ा बना कैं करैया(कढ़ाई ) में तल दैमतैं ।
4-सैमरी (सेवईयां )- आटे ते बनी पतरी-पतरी रेशेदार किनकी ।
5-महेरी- छाछ और जौ के दानेन ते बनी चीज जो सबेरे कलेऊ के काम आमतै ।
6-दरिया(दलिया)- गेहूं ते बनौ हलकौ भोजन जो सबेरे जलपान और बीमार लोगन के लें बड़ौ फायदेमंद है ।
7-अंगा- आटे ते टिक्की जैसे मोटे आकार में बनबे बारौ भोजन जो बरोसी (अंगीठी )में कोरन ते सेक कैं पका कैं बनबे बारौ भोजन
ब्रज में मिठाइयों का चलन:-
दालबाटी व चूरमा:- ब्रज का विशेष भोजन जो दालबाटी चूरमा के नाम से जाना जाता है, यह ब्रजवासियों का विशेष भोजन है।
समारोह, उत्सवों, और सैर सपाटों एवं विशेष अवसरों पर यह भोजन तैयार किया जाता है और लोग इसका आनन्द लेते हैं। यह भोजन पूरी तरह से देशी घी में तैयार होता है। इसके अलावा मालपुआ, आदि भी बहुतायत में खाया जाता है।
पेड़ा:- ब्रज में मिठाईयों का बहुत महत्त्व है। ब्रज की सबसे प्रसिद्ध मिठाई पेड़ा है। ब्रज जैसा पेड़ा कहीं नहीं मिलता। ब्रज में मथुरा के पेड़े से अच्छे और स्वादिष्ट पेड़े दुनिया भर में कहीं भी नहीं मिलते हैं।
आप यदि पारम्परिक तौर पर मथुरा के पेड़े का एक टुकड़ा भी चखते हैं तो कम-से-कम चार पेड़े से कम खाकर तो आप रह ही नहीं पायेंगे। ब्रज में ज़्यादातर व्यक्तियों की पसंदीदा चीज़ मिठाई होती है।
घेवर:- ब्रज में रक्षाबंधन पर घेवर और फैनी खाने खिलाने की परंपरा है। रक्षाबंधन पर बहनें राखी बांधने के बाद अपने भाइयों को घेवर खिलाती हैं।घेवर मूलत: ब्रज की ही मिठाई है और ब्रज क्षेत्र में ही इसका प्रचलन ज्यादा है। आगरा, फिरोजाबाद, अलीगढ़, हाथरस और एटा तक घेवर खूब खाया जाता है, लेकिन इसके अलावा तो इसके दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं। तीज का त्योहार भी घेवर के बिना अधूरा-सा लगता है । ब्रजवासियों का मिठाई खाने से पेट ही नहीं भरता। मौका कोई भी हो, मिठाई जरूर होनी चाहिए। अब घेवर को ही ले लो। किसी के यहां सावन में जाओ, तो स्वागत में घेवर ही खिलाया जा रहा है। लेकिन दुकानों पर यह केवल सावन-भादों में ही मिलता है।
पारंपरिक तौर पर घेवर मैदे और अरारोट के घोल विभिन्न सांचों में डालकर बनाया जाता है. फिर इसे चाशनी में डाला जाता है. वैसे समय के साथ इसमें बनाने के तरीके में तो नहीं, लेकिन सजाने में काफी एक्सपेरिमेंट्स हुए हैं. जिसमें मावा घेवर, मलाई घेवर और पनीर घेवर खास हैं । लोगों की पहली पसंद मावा-घेवर ही है । घेवर मैदे से बना मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखाई देने वाला एक खस्ता और मीठा पकवान है. घेवर को इंग्लिश में हनीकॉम्ब डेटर्ट के नाम से जाना जाता है । कहा जाता है कि घेवर राजस्थान का अविष्कार है । राजस्थान खानपान के मामले में बहुत ही अलग है ।
मालपुआ:-
साभार- ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरासंबंधित लिंक...