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Sunday, 8 August 2021

ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'


भारतभूमि के महामान्य ऋषियों में से एक विशेषकर *ब्रजभूमि* वृंदावन को तपोस्थली स्वरूप मानकर यमुना के जल के अंदर ६०००० वर्ष (साठ हजार वर्ष) तक तपस्या की। उन के वंशज आज भी ब्रज तथा अन्यत्र प्रदेशों के हिस्सों में रह रहे हैं। इसी वंश में जन्मे ब्राह्मणों द्वारा ब्रज के राजा बल दाऊजी महाराज की सेवा की जाती है। सेवायत सभी जन पंडे/ पांडे/ पाण्डे/पाण्डेय के नाम से बतौर उपाधि या आस्पद नाम धारण करते हैं। इस वंश के समाज का ज़्यादातर वर्ग सदाचारी, सादगी से भरे और वैदिक विधि - विधानों में पारंगत हैं। संत शिरोमणि प्रभुदुत्त ब्रह्माचारी जी भी इसी वंश में जन्मे थे जिनका आश्रम वंशीवट वृंदावन और संकीर्तन भवन तीर्थराज प्रयागराज के समीप ही है। प्रसिद्द चित्रकार जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी भी ब्रह्मर्षि सौभरि जी के वंश में जन्मे।

इस स्थान पर उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा पवित्र तीर्थस्थल सुनरख, वृन्दावन  में 460 एकड़ भू-भाग में ब्रह्मर्षि सौभरि वन (सिटी फॉरेस्ट) के रूप में एक पार्क का विकास किया जाएगा।

460 एकड़ में प्रस्तावित एशिया के सबसे बड़े "सौभरि वन" (सुनरख वन) में चार योग केंद्र स्थापित होंगे। इसके साथ ही पर्यटकों के लिए अन्य कई सुविधाएं भी होंगी। इस पूरे प्रोजेक्ट की अनुमानित लोग 325 करोड़ रुपये होगी।


सौभरि जी के बारे में जानने के लिए नीचे 🖇️ लिंक पर क्लिक करें।

वैदिक ब्रह्मर्षि सौभरि जी

ब्रजभूमि पर स्थित १२ वनों, २४ उपवनों, १२ तपोवनों, १२ अधिवनों, १२ तपोवनों को मिलाकर भी उन सबसे ज़्यादा क्षेत्रफल पर ब्रह्मर्षि सौभरि नगर वन का निर्माण किया जा रहा है।

साभार-  ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा

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साभार:- ब्रजवासी 


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ब्रज के भोजन और मिठाइयां

ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'

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Sunday, 11 July 2021

ब्रज के भोजन व मिठाइयां

 

Anga Roti Recipe:अंगा भोज (ब्रज का मशहूर व्यंजन)

अंगा” Recipe के बारे में आपने सुना हो या नहीं, लेकिन ब्रजक्षेत्र में घरों में यह शाम को भोजन (Dinner) के रूप में बनाना आम बात है । इसका आकार गोल मोटी रोटी जैसा होता है और इसकी सिकाई उपलों के जलने से जो अंगारे बन जाते हैं, उन पे होती है । इसलिए इसका नाम अंगा पडा । सबसे पहले आटे में थोड़ा बेसन व मसाले डालकर गूँथते हैं फिर इसे डबल रोटी की तरह बेलकर उन उपलों के अंगारौं पे सेकते हैं ।मसालों के तौर पे आप इसमें अजवाइन, थोड़ा जीरा, नमक, हींग इत्यादि मिला लेते हैं ताकि ये खानें में स्वादिष्ट लगे ।कभी-कभी हम इसमें आलू की चटनी भरकर भी सेकते हैं ।
और बने हुए “अंगे” में जो डबल रोटी की तरह होता है उसमें छोटे-छोटे गड्ढे बनाकर घी अच्छे से डाल लेते हैं ।आप इसे अचार या हरी चटनी के साथ खा सकते हैं ।
पुराने समय में लोग इसे शाम के भोजन के साथ- साथ बचे हुए भोजन का, सुबह भी कलेऊ (नाश्ता) कर लिए करते थे।वैसे अब नई पीढी के बच्चों को कम रोचक लगता है, इस वजह से इसका चलन दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है।
मगर पुराने जमाने के लोगों को आज भी पहले की तरह अच्छा लगता है ।

गांव में तो इसके ऊपर कहावत भी है कि ” अरै आजकल तोय अंगा खूब झिककें मिलरे हैं” हिंदी अर्थ- अरे आजकल आपको खाने के लिए ठीक ठाक मिल रहा है ।

इसकी तुलना आप बिहार की डिश ‘लिट्टी चोखा’ से कर सकते हैं ।

अन्य भोजन

1-गूंजा- जे चून(आटा) ते बनबे बारी ऐसी मिठाई ऍह याके अंदर पंजीरी या खोवा (खोया ) भर कैं बनामतैं ।

2-मठरी (मट्ठी - जे हु आटे ते बनबे बारी सुखी खाबे की चीज ऍह जो सबेरे-सबेरे (धौंताय ) जलपान करबे के काम आमतै (बू ऊ चाय के संग) 

3-सकलपारे- सकलपारेन नै बनाबे कूँ गुड़ या चीनी के घोल ते आटौ गूँथ कैं फिर बा के बाद, नैक-नैकसे टुकड़ा बना कैं करैया(कढ़ाई ) में तल दैमतैं ।

4-सैमरी (सेवईयां )- आटे ते बनी पतरी-पतरी रेशेदार किनकी ।

5-महेरी- छाछ और जौ के दानेन ते बनी चीज जो सबेरे कलेऊ के काम आमतै ।

6-दरिया(दलिया)- गेहूं ते बनौ हलकौ भोजन जो सबेरे जलपान और बीमार लोगन के लें बड़ौ फायदेमंद है ।

7-अंगा- आटे ते टिक्की जैसे मोटे आकार में बनबे बारौ भोजन जो बरोसी (अंगीठी )में कोरन ते सेक कैं पका कैं बनबे बारौ भोजन 

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ब्रज में मिठाइयों का चलन:-

दालबाटी व चूरमा:- ब्रज का विशेष भोजन जो दालबाटी चूरमा के नाम से जाना जाता है, यह ब्रजवासियों का विशेष भोजन है। 


समारोह, उत्सवों, और सैर सपाटों एवं विशेष अवसरों पर यह भोजन तैयार किया जाता है और लोग इसका आनन्द लेते हैं। यह भोजन पूरी तरह से देशी घी में तैयार होता है। इसके अलावा मालपुआ, आदि भी बहुतायत में खाया जाता है।

पेड़ा:- ब्रज में मिठाईयों का बहुत महत्त्व है। ब्रज की सबसे प्रसिद्ध मिठाई पेड़ा है। ब्रज जैसा पेड़ा कहीं नहीं मिलता। ब्रज में मथुरा के पेड़े से अच्छे और स्वादिष्ट पेड़े दुनिया भर में कहीं भी नहीं मिलते हैं। 

आप यदि पारम्परिक तौर पर मथुरा के पेड़े का एक टुकड़ा भी चखते हैं तो कम-से-कम चार पेड़े से कम खाकर तो आप रह ही नहीं पायेंगे। ब्रज में ज़्यादातर व्यक्तियों की पसंदीदा चीज़ मिठाई होती है।

घेवर:- ब्रज में रक्षाबंधन पर घेवर और फैनी खाने खिलाने की परंपरा है। रक्षाबंधन पर बहनें राखी बांधने के बाद अपने भाइयों को घेवर खिलाती हैं।घेवर मूलत: ब्रज की ही मिठाई है और ब्रज क्षेत्र में ही इसका प्रचलन ज्यादा है। आगरा, फिरोजाबाद, अलीगढ़, हाथरस और एटा तक घेवर खूब खाया जाता है, लेकिन इसके अलावा तो इसके दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं। तीज का त्योहार भी घेवर के बिना अधूरा-सा लगता है । ब्रजवासियों का मिठाई खाने से पेट ही नहीं भरता। मौका कोई भी हो, मिठाई जरूर होनी चाहिए। अब घेवर को ही ले लो। किसी के यहां सावन में जाओ, तो स्वागत में घेवर ही खिलाया जा रहा है। लेकिन दुकानों पर यह केवल सावन-भादों में ही मिलता है।


पारंपरिक तौर पर घेवर मैदे और अरारोट के घोल विभिन्न सांचों में डालकर बनाया जाता है. फिर इसे चाशनी में डाला जाता है. वैसे समय के साथ इसमें बनाने के तरीके में तो नहीं, लेकिन सजाने में काफी एक्सपेरिमेंट्स हुए हैं. जिसमें मावा घेवर, मलाई घेवर और पनीर घेवर खास हैं । लोगों की पहली पसंद मावा-घेवर ही है । घेवर मैदे से बना मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखाई देने वाला एक खस्ता और मीठा पकवान है. घेवर को इंग्लिश में हनीकॉम्ब डेटर्ट के नाम से जाना जाता है । कहा जाता है कि घेवर राजस्थान का अविष्कार है । राजस्थान खानपान के मामले में बहुत ही अलग है ।

मालपुआ:-



साभार-  ओमन सौभरि भुरर्क, भरनाकलां, मथुरा

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साभार:- ब्रजवासी 


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