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ब्रजमण्डल में मेट्रोन के आवे-जाबे की घोषणा ब्रजभाषा में कैसैं होयगी

                              Metro Map  Mathura District Metro (BrajMandal)- भविष्य में मथुरा में मेट्रो आबैगी तौ salutation और in...

Monday, 27 January 2020

राधाकृष्ण के "प्रेम कथन" व धार्मिक कथन ब्रजभाषा में


प्रेम में कितेक बाधा देखी,
फिर हु कृष्ण संग राधा देखी ।



 देवयुग में राधा-कृष्ण कौ मिलन तो बस एक बहानौ हतो,
या संसार कूँ प्रेम कौ अर्थ जो समझानौ हतो ।



 यदि प्रेम कौ अर्थ केवल पा लेनों होंतौ ।
तौ हर हृदय में राधा-कृष्ण कौ नाम नाँय होंतौ ।



 एक ओर साँवरे कृष्ण, दूसरी ओर राधिका गोरी ।
जैसैं एक-दूसरे ते मिल गये हों चन्द्र-चकोरी।



प्रेम की भाषा बड़ी सहज हैमत है,
राधा-कृष्ण की प्रेम-कथा जे संदेश दैमत है।

कृष्ण के प्रेम की बाँसुरिया सुन, भई वो प्रेम दिवानी ।
जब-जब कान्हा मुरली बजाबै, दौड़ी आमत राधा रानी।

कितेक सुंदर नैन तेरे ओ राधा! प्यारी ।
इन नैनन में खोयगे मेरे बांकेबिहारी।

ए कान्हा! अब तौ आँखन ते हु मोय जलन हैमत है ।
चौं कै बंद होंय तौ सपने तेरे और खुली होंय तौ तेरी तलाश देखत हैं ।

हे कान्हा, तुम्हें पानौ ही जरूरी नाँय,
तुम्हारौ है जानौ ही बहुत है मेरे लैं ।

राधे राधे बोल, श्याम भागकैं चले आंगे,
एक बार आयगे तौ कबहु नाँय जांगे।

 कर भरोसौ राधे नाम कौ धोखा कबहु ना खावैगौ,
हर अवसर पै तेरे घर कान्हा सब ते पहले आबैगौ।

गोकुल में है जिनकौ वास, गोपीन के संग करै निवास ।
 देवकी, यशोदा हैं जिनकी मैया, ऐसे हैं हमारे कृष्ण कन्हैया


 ईश्वर कहमतें उदास मत होय मैं तौ तेरे साथ हूँ, सामने नाँय आस-पास ही हूँ ।
 पलकन कूँ बंद कर और दिल ते याद कर, मैं कोई और नाँय तेरौ विश्वास हूँ ।

 भाग्य पै गर्व है तौ वजह,
प्रभु तिहारी कृपा…
प्रसन्नता जो पास है तौ वजह
प्रभु तिहारी कृपा…
मेरे अपने मेरे संग हैं तौ
वजह प्रभु तिहारी सेवा…
मैं तुम ते प्रेम की लग्न
कैसैं न करूँ, जे साँस जो चलत है तौ वजह
प्रभु तिहारी कृपा…


 हजारों दोष हैं मो में, नाँय कोई कौशल निस्संदेह,
मेरी कमीयन कूँ तू अच्छाईन में बदल दीजौं ।
मेरौ अस्तित्व है एक खारे समन्दर जैसौ मेरे दाता,
तू अपनी कृपान ते याकूँ मीठी झील कर दीजौं ।


 धर्मो रक्षति रक्षतः - अर्थात मनुष्य धर्म की रक्षा करतौ है तौ धर्म हु वाकी रक्षा करतौ है ।

जो दृढ राखे धर्म को,
नाँय राखे करतार ।
जहाँ धर्म नाँय, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदिन कौ हु अभाव हैमतौ है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता रहमतै, शून्यता हैमत है ।

पर हित सरिस धर्म नहिं भाई,
पर-पीड़ा सम नहिं अधमाई ।
- संत तुलसीदास

 तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय ।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
अर्थ: कबीर कहमतें एक छोटे से तिनके की हु कबहु निंदा नाँय करौ जो तुम्हारे पांमन के नीचे दब जामतौ है। यदि कबहु वो तिनका उड़कैं आँख में आ गिरै तौ कितेक गहरी पीड़ा हैमतै ।

बात मन में दबाकैं मत रखौ, व्यर्थ में चिंता ही बढैगी। मनोभावन कूँ शांत-सहज भाव में व्यक्त करौ,तुम्हारी सबरी बिगड़ी भयी बात बन जाएगी।

सम्बन्ध वा ही आत्मा ते जुड़तौ है, जिनते पिछले जन्मन कौ रिश्तौ होंतौ है । वरना संसार की या भीड़ में को-कौनकौ होंतौ है ।

अगर आपकी समस्या एक जहाज की तरह बड़ी हैं तौ  जे मत भूलौ कै प्रभु की कृपा सागर जितेक विशाल हैमतै । प्रभु हमें वैसौ ही देमतौ है जैसैं गेहूँ दैमत है, हम एक कण बोमतें और सौ कण पामतें ।

 संसार के लोगन पै कियौ गयौ भरोसौ तौ टूट सकै है लेकिन संसार के स्वामी पै कियौ गयौ भरोसौ कबहु नाँय टूटत । जब हम सच्चे मन ते प्रभु कूँ खोजतें तौ प्रभु अपनी मौजूदगी कौ अहसास हमें जरूर करवावैगौ ।

Thursday, 23 January 2020

महापुरुषन द्वारा कहे गये अनमोल वचन ब्रजभाषा में



 मेरे जौहरैं एक लक्ष्य है जाय, मोय हर हाल में पूरा करनौ हैं।  मेरा जन्म वा ही के लैं भयौ है । मोय नैतिक विचारन की धारा में नाँय बहनौ।


अन्याय सहबौ और गलत के संग समझौतौ करबौ सबते बड़ौ अपराध  हैमतौ है।


अपने पूरे जीवन में मैंने कबहु खुशामद नाँय करी।  दूसरेन कूँ अच्छी लगबे वारी बातन्नै करनौ मोय नाँय आमत।



 जे हमारौ कर्तव्य है कै हम अपनी स्वतंत्रता कौ भुगतान अपने रक्त ते करैं। आपके बलिदान और परिश्रम के माध्यम ते, वा ते हम जो स्वतंत्रता जीतंगे, हम अपनी शक्ति के संग संरक्षित करने में सक्षम हुन्गे।



माँ कौ प्यार स्वार्थ रहित और सबते गहरौ होंतौ है या कूँ काऊ हु प्रकार ते नापौ नाँय जा सकै ।
: नेताजी सुभाषचंद्र बोस

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 राख कौ हर एक कण मेरी गर्मी ते गतिमान है।  मैं एक ऐसौ पागल हूँ जो जेल में हु आजाद हूँ।

मनुष्यन कूँ तौ मारौ जा सकतौ है, परन्तु वाके विचारन कूँ नाँय।

हमारे देश के सभी राजनैतिक आंदोलन, जिन्नै हमारे आधुनिक इतिहास में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विनके उपलब्धि के आदर्शन में कमी हती जाकौ उद्देश्य रखौ गयौ हतो। या तरह ते जे क्रांतिकारी आंदोलन हु कोई अपवाद नाँय ।

हमें जे स्पष्ट करनौ चहियै कै क्रांति कौ मतलब केवल उथल-पुथल या एक प्रकार कौ संघर्ष नाँय । क्रांति आवश्यक रूप  ते मौजूदा शासन के पूर्ण विनाश के बाद नए और बेहतर रूप ते अनुकूलित आधार पै समाज के व्यवस्थित पुनर्निर्माण के कार्यक्रम कौ अर्थ है।
: सरदार भगत सिंह

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जब तक आप स्वयं पै विश्वास नाँय करैं तब तक आप भगवान पै ही विश्वास नाँय कर सकैं।

जे कबहु मत कहौ कै,  ‘मैं नाँय कर सकतौ हूँ’, चौं कै आप अनंत हैं, आप कछु हु कर सकतैं।

उठौ, जागौ और लक्ष्य पूरा हैबे तक मत रुकौ।

अपने इरादेन कूँ मज़बूत रखौ। लोग जो कहंगे विनकूँ कहमन देओ। जब तुम सफल है जांगे तौ एक दिना वे ही लोग तुम्हारौ गुणगान करंगे।

9- अपने आप को विस्तार आपको अपने अंदर से करना होगा। तुम्हें कोई नहीं सिखा सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता। कोई दूसरा शिक्षक नहीं है बल्कि आपकी अपनी आत्मा है।
 : स्वामी विवेकानंद

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 पहले वो आपकूँ अनदेखौ करंगे, वाके बाद आप पै हँसंगे, फिर वो आप ते लडंगे और अंत में आपउनते  जीत जांगे।

काऊ हु व्यक्ति के विचार ही सब कछु हैं। बू जो सोचतौ है, बू वैसौ ही बन जामतौ है।

अगर आप स्वयं कूँ खोजनौ चाहमतें तौ सबते बढ़िया तरीका जे है कै, आप दूसरेन की सेवा में स्वयं कूँ खो देओ।

 आप हु अपने आप में बू परिवर्तन लाऔ जो आप दुनिया में देखबौ चाहमतें।

एक सभ्य और आदर्श परिवार के समान कोई विद्यालय नाँय तथा एक भले अभिभावक जैसौ कोई अन्य शिक्षक नाँय।
: महात्मा गांधी

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 प्रेम ही एक ऐसौ फल है जो हर मौसम में मिलतौ है और जाय हर कोई पा सकतौ है।
कल बीत चुकौ है, आबे वारौ कल अबही आयौ नाँय , हमारे पास केवल आज है, चलौ आज ते। ही शरुआत करतैं।
: मदर टेरेसा

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जो व्यक्ति बिना सोचे समझे कार्य करतौ है सफलता और वैभव वा कौ साथ छोड़ दैमतै।

सांप कूँ आप कितनौ हु दूध पिलाऔ, अवसर मिलबे पै वो आपकूँ डस ही लेगौ, वा ही प्रकार आप एक दुष्ट व्यक्ति कौ कितनौ हु भला कर लेओ बू सदा ही आपकौ बुरौ चाहबैगौ।

 एक बात जो शेर ते सीखी जा सकतै कै, बू जो शिकार करतौ वाय पूरी गश्त लगायकैं पूरी जोरदारी ते करतौ है या ही तरह कोई व्यक्ति जो कछु हु करनौ चाहमत होय वा काम कूँ वो पूरे ध्यान ते, मन लगायकैं और पूरे जोरदार प्रयास के संग करै।
 यदि आप काऊ कार्य में सफल हैबौ चाहमतें तौ कबहु कोशिश करबौ मत छोड़ौ, चौं कै लगातार कोशिश करबे ते ही आपकूँ सफतला मिलतै ।

कोई काम शुरू करबे ते पहलैं अपने आप ते तीन प्रश्न करौ, पहलौ, मैं जे काम चौं कर रह्यौ हूँ।  दूसरौ – या कौ काह परिणाम होयगौ और तीसरौ काह में सफल है जांगो। जब गहराई ते सोचबे पै इन तीनों प्रश्नन कौ संतोषजनक उत्तर मिल जाय, तबही आयगें बढ़ें।

लक्ष्य के बीच में विलम्ब और आलस्य सही नाँय है, ऐसौ करनौ आपकूँ अपने लक्ष्य ते भटका सकतौ है।
 जो व्यक्ति कर्तव्यनिष्ठ नाँय होय यानि अपनी जिम्मेदारीन ते भागतौ होय, बू कबहु अपने परिवार वारेन कौ पालन पोषण नाँय कर सकै।

एक बार जब आप काऊ चीज़ पै काम करना शुरू कर दैमतें, तौ असफलता ते मत डरौ और वाय मत छोड़ौ। ईमानदारी ते काम करवे वारे लोग सबते ज्यादा खुश रहमतें ।

इस बात कूँ कबहु जाहिर मत हैमन देओ कै आपने काह करबे के लैं सोचौ है।  बुद्धिमान व्यक्ति की तरह  याय रहस्य बनाय कैं रखौ और या काम कूँ करबे के लैं दृढ़ रहौ।
जो व्यक्ति शक्ति ना हैवे पै हु मन ते कबहु हार नाँय मानत वाय या संसार की कोई हु ताकत हरा नाँय सकै।

जो व्यक्ति आपके मन में है वो आपते दूर रहकैं हु दूर नाँय है और जो व्यक्ति आपके मन में नाँय बू आपके जौहरैं रहकैं हु बहुत दूर है।
: आचार्य चाणक्य

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देशभक्ति गीत:-

 जीमत हैं देश के लैं , वो देश के लैं अपनौ रक्त बहामत हैं,
 माँ भारती के चरणन में अपनौ शीश चढ़ाकैं, देश की लाज बचामत हैं ।
 परवाह नाँय करत अपनी जान की वो, देश के लैं हँसत-हँसत अपनी जान लुटामत हैं ।


याद रखौ सदैव हमनैं,
कैसैं जे आज़ादी पाई,
देश भक्त के बलिदानन ते,
हमनैं जे स्वतंत्रता पाई,
याद रखंगे वीरो तुमकूँ ,
जे बलिदान तुम्हारौ है,
हमकूँ तौ है जान ते प्यारौ,
जे गणतंत्र हमारौ है ।

Wednesday, 22 January 2020

पढ़िए महर्षि सौभरि जी कौ कथा प्रसंग ब्रजभाषा में


Brahmarshi Saubhari ji ki katha-





आइये आज हम ब्रह्मा जी के 10 मानस पुत्रन में ते ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मर्षि अंगिरा और इनके पुत्र ऋषि घोर  तथा घोर जी के महर्षि कण्व एवं कण्व जी के वंश में उत्पन्न एक अत्यन्त विद्वान एवं तेजस्वी भगवद रूप महापुरुष “ब्रह्मऋषि सौभरि जी” के बारे में पढतें । विन्नै वेद-वेदांगन के अध्ययन-मनन ते ईश्वर, संसार और इनकी वस्तु तथा परमार्थ कूँ अच्छी तरह समझ लियौ हतो। वो हर समय अध्ययन एवं ईश्वर के भजन में लगे रहमत हते, विनकौ मन संसार की अन्य काऊ वस्तून में नाँय लगतौ हतो। एक बार विनके मन में जे इच्छा उत्पन्न भई कै वन में जाय कैं तपस्या करी जाय । जब विनके माता-पिता कूँ या बात के बारे में पतौ चलौ, तौ विन्नै सौभरि जी कूँ समझाते भये कही, “बेटा या समय तुम युवा हो, तुम्हें अपनौ विवाह करकैं गृहस्थ-धर्म कौ पालन करनौ चहियै। चौं कै हर वस्तु उचित समय पै ही अच्छी लगतै, या लैं पहले अपनी जिम्मेदारीन कूँ निभाऔ, फ़िर विनते मुक्त  हैकैं, संसार कूँ त्यागकैं भगवान कौ भजन करियो, वा समय तुम्हें कोई नाँय रोकेगौ। हालांकि अबहु तुम्हारौ मन वैराग्य की ओर है, परन्तु युवावस्था में मन चंचल हैमतौ है, नैक देर में ही डिग जामतौ है। या प्रकार  ते अस्थिर चित्त ते तुम तपस्या एवं साधना कैसैं करैगौ? लेकिन सौभरि जी तौ जैसे दृढ़-निश्चय कर चुके हते। विनके माता-पिता की कोई हु बात विन्नै टस ते मस नाँय कर सकी और एक दिना वे सत्य की खोज में वन की ओर निकर पड़े। चलते-2 वे एक अत्यन्त ही सुन्दर एवं रमणीय स्थान *सुनरख, वृन्दावन* पहुँचे जहाँ पास में ही यमुना नदी बह रही हती और पक्षी मधुर स्वर में कलरव कर रहे हते। ऐसौ शान्त वातावरण देख कैंच या स्थान कूँ विन्नै अपनी तपस्या-स्थली के रूप में चुन लियौ।




ऐसैं ही दिन बीत रहे हते, विनके शरीर पै अब काऊ हु मौसम कौ असर नाँय होंतौ हतो। ढिंग के ही गाँव वारे जो कुछ रूखौ-सूखौ भोजन दै जामते, वा ही ते वो अपना पेट भर लैमत हते। धीरे-2 कब युवावस्था बीत गई और कब बुढ़ापे नै विन पै अपनौ असर दिखानौ शुरु कर दियौ, पतौ ही नाँय चलौ। फ़िर एक दिन अचानक वो ही है गयौ, जो नाँय हैनौ चहियै हतो।

वहीं दूसरी तरफ, …सम्राट मान्धातृ अथवा मांधाता, इक्ष्वाकुवंशीय नरेश युवनाश्व और गौरी पुत्र अयोध्या में राज करते हते । वह सौ राजसूय, अश्वमेध यज्ञों के कर्ता और दानवीर, धर्मात्मा चक्रवर्ती सम्राट् हते । मान्धाता ने शशिबिंदु की पुत्री बिन्दुमती ते विवाह करो हतो । विनके मुचकुंद, अंबरीष और पुरुकुत्स नामक तीन पुत्र और 50 कन्याएँ उत्पन्न भयी हतीं।

राजा मान्धाता ‘युवनाश्व’ के पुत्र हते, युवनाश्व च्यवन ऋषि द्वारा संतानोंत्पति के लैं मंत्र-पूत जल कौ कलश पी गए हते । च्यवन ऋषि नै राजा ते कही कै अब आपकी कोख ते बालक जन्म लेगौ। सौ वर्षन के बाद अश्विनीकुमारन नै राजा की बायीं कोख फाड़कैं बालक कौ प्रसव  करायौ हतो। ऐसी स्थिति में  बालक कूँ पालनौ, एक बड़ी समस्या हती, तौ तबही इन्द्रदेव नै अपनी तर्जनी अंगुरिया वाय चुसामत भए कही- माम् अयं धाता (जे मोय कूँ ही पीबैगौ)। तबही ते बालक कौ नाम मांधाता पड गयौ।

महाराजा मांधाता के समय में ही ब्रह्मर्षि सौभरि जी जल के अंदर तप व चिंतन करते हते | वा जल में ‘संवद’ नामक मत्स्य निवास करतौ हतो । बू अपने परिवार के संग जल में विहार करतौहतो । एक दिना ब्रह्मर्षि सौभरि जी नै तपस्या ते निवृत हैकैं वा मत्स्य राज कूँ वाके परिवार सहित देखकैं अपने अंदर विचार करौ और सोची कै जे मछली की योनि में हु अपने परिवार के साथ रमण कर रह्यौ है चौं ना मैं हु या ही तरह ते अपने परिवार के संग ललित-क्रीड़ाएं करै करंगौ । वा ही समय जल ते निकलकैं गृहस्थ जीवन जीने की अभिलाषा ते राजा मान्धाता के पास पहुँचगे । अचानचक्क आये भए महर्षि कूँ देखकैं राजा मान्धाता आश्चर्यचकित भए और बोले, हे ब्रह्मर्षि! बताऔ मैं आपकी काह सेवा कर सकतौ हूँ, मोकूँ बतल देओ ।  सौभरि जी नै आसन ग्रहण करते भए राजा मान्धाता ते बोले हे राजन! मोय आपकी एक कन्या की आवश्यकता है वाके संग मैं अपनौ विवाह रचानौ चहामतौ हूँ । आपके समान अन्य राजान की पुत्रियां हु हैं परन्तु मैं यहाँ या लैं आयौ हूँ कै कोई हु याचक आपके यहाँ ते खाली हाथ कबहु नाँय लौटै । आपके तौ 50 कन्याएं हैं विनमें ते आप मोय सिर्फ एक ही दै देओ । राजा ने महर्षि की बात सुन व विनके बूढ़े शरीर कूँ देखकैं डरते भए बोले, हे ब्रह्मर्षि! आपकी जे इच्छा हमारे मन ते परे है चौं कै हमारे कुल में लड़की अपनौ वर स्वयं चुनतैं । ब्रह्मर्षि सौभरि सोचबे लगे जे बात केवल टालबे के लैं है और वो जे हु सोच रहे हते कै जे महाराज मेरे जर्जर शरीर कूँ देखकैं भयाभय है रहे हैं । राजा की ऐसी मनोदशा देखकैं वह बोले हे राजन! अगर आपकी पुत्री मोय चाहंगी तौ ही मैं विवाह करंगो अन्यथा नाँय । जे सुनकैं राजा मान्धाता बोले फिर तो आप स्वयं अंतःपुर कूँ चलिए, अंतःपुर में प्रवेश ते पहले ही ब्रह्मऋषि सौभरि जी नै अपने तपोबल ते गंधर्वन ते हु सुन्दर और सुडौल शरीर धारण कर लियौ । ब्रह्मऋषि के संग अंतःपुर रक्षक हतो, वा ते महर्षि ने कही कै अब वो राजा की पुत्रीन ते बोलै, जो कोई पुत्री मोय वर के रूप में स्वीकार करत होय वो मेरौ स्मरण करै इतेक सुनते ही राजा की सब पुत्रीन नै पने-अपने मन महर्षि जी कौ स्मरण करौ और परस्पर जे कहमन लगी जे आपके अनुरूप नाँय हैं या लैं मैं ही इनके संग विवाह करूंगी । देखत ही देखत राजा की पुतत्रीन नै आपस में कलह करबौ शुरू कर दियौ । जे सबरी बात अंतःपुर रक्षक नै राजा मान्धाता कूँ बताई । जे सुनकैं राजा कूँ बड़ौ आश्चर्य भयौ और बोले रक्षक तुम कैसी बात कर रहे हो । राजा अब सबरी बात समझ गए हते । बड़ी धूमधाम ते  50 कन्यान कौ विवाह संस्कार पूरा कियौ और वहाँ ते ऋषि कूँ पचासों पुत्रीन के संग विदा कियौ । ब्रह्मर्षि सौभरि जी विन पचासों कन्यान कूँ अपने आश्रम कूँ लै गये, आश्रम पहुंचते ही विश्वकर्मा कूँ बुलायौ और सब कन्यान के लैं अलग-अलग गृह बनबाबे के लैं कही  और जे हु कही कै चारों तरफ सुन्दर जलाशय और पक्षीन ते गूंजते भए बगीचे होंय । शिल्प विद्या के धनी विश्वकर्मा नै वे सबरी सुविधा उपलब्ध करायीं जो अनिवार्य हती । राज कन्यान के लैं अलग-अलग महल खड़े कर दिए । अब राज कन्यां बड़े मधर स्वभाव ते वहाँ रमण करबे लगीं ।

एक दिना राजा मान्धाता नै अपनी पुत्रीन कौ हाल जानबे के लैं महर्षि के आश्रम पहुंचे और वहाँ जाय कैं अपनी पुत्रीन ते एक-एक कर कैं विनकौ हाल-चाल पूछ्यौ और कही कै पुत्री खुश तौ है ना? तुम्हें काऊ प्रकार कौ कष्ट तौ नाँय है । पुत्रीन नै जवाब दियौ, नाँय मैं बहुत खुश  हूँ बस एक बात है कै मेरे स्वामी सौभरि जी मोय छोड़कैं अन्य बहनन के पास जामत ही नाँय । या ही तरह राजा नै दूसरी पुत्री ते हु वही प्रश्न कियौ वानै हु पहली वारी पुत्री की तरह ही जवाब दियौ | या ही तरह ते राजा मान्धाता कूँ सब पुत्रीन ते समान उत्तर सुनबे कूँ मिलौ । राजा सब कछू समझ गए और ब्रह्मर्षि सौभरि जी के सामने हाथ जोड़कैं बोले महर्षि जे आपके तपोबल कौ ही परिणाम है । अंत में राजा अपने राज्य को लौट आये । महर्षि सौभरि जी के 5000 पुत्र भए । कई वर्षन तक ऋषि सौभरि जी नै अपनी पत्नी और बच्चन के संग सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करौ । अब वे आयगे की सोचबे लगे कै अब विनके पुत्रन के हु पुत्र हुन्गे, या ही तरह अंदर ही अंदर विचार करबे लगे कै मेरी इच्छान के मनोरथ कौ विस्तार होंतौ ही जाय रह्यौ है । जे सब सोचकैं फिर ते विन्नै वैराग्य हैमन लगौ और  धीरे-2 विनकौ मन इन सब ते उचटबे लगौ। विनकौ मन विनते बार-2 एक ही प्रश्न करतौ कै, काह जे ही सांसारिक भोगन के लैं मैंनै तपस्या और कल्याण कौ मार्ग छोड़ दियौ हतो। विन्नै गृहस्थ-जीवन के सुख कूँ हु देखौ हतो और तपस्या के समय की शांति और संतोष कूँ हु। या प्रकार वे गृहस्थमोह सब कछु त्यागकैं अपनी स्त्रीन संग वन की ओर गमन कर गए । और याके बाद फिर ते भगवान् में आशक्त है कैं मोक्ष कूँ प्राप्त कियौ ।

साभार:-
पंडित ओमन सौभरि भुर्रक, भरनाकलाँ, गोवर्धन (मथुरा)

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Tuesday, 21 January 2020

ब्रजमण्डल में मेट्रोन के आवे-जाबे की घोषणा ब्रजभाषा में कैसैं होयगी

                              Metro Map 


Mathura District Metro (BrajMandal)-


भविष्य में मथुरा में मेट्रो आबैगी तौ salutation और information की लिया-देइ या तरीका ते करी जाय करैगी ।
कोक़िलावन (कोसीकलां) ते बनकें चलबे वारी मेट्रो गोवर्धन/वृंदावन हैकैं मथुरा में घुसैगी और सूधी गोकुल हैमत भये दाऊजी कूँ निकर जाएगी । इन शहरन कूँ जाबे बारे यात्री आइकैं बैठ जाऔ । कोकिलावन के बाद पहलौ मैट्रो स्टेशन *नंदगाँव* पड़ैगौ , बरसाने बारे आदमी अगले स्टेशन की प्रतीक्षा करें । यात्रीगणन कृपया करकें आयगे की तरफ मौहड़ौ करकें खड़े है जाँय । अगलौ स्टेशन बरसाने कौ आ चुकौ है बसस्टैंड की ओर उत्तर जाएं । आयगे कौ डिब्बा नारीन के लैं आरक्षित है, लपका और लऊआन कूँ सख्त चेतावनी है कै वे वा डिब्बा में नाँय चढ़ै अन्यथा हाथ-पाँव तोड दिये जांगे । अगलौ स्टेशन *ग्राम पलसों धाम* है, दरवज्जे सती हरदेवी मंदिर की ओर खुलंगे, कृपया आराम ते उतरें । अगलौ स्टेशन गोवर्धन आबे वारौ है । मेट्रो में कोई धूम्रपान नाँय करें तौ अच्छौ रहबैगौ । लेऔ जी गोवर्धन रेलवे स्टेशन आ चुकौ है नीमगांव और गांव भरनाकलां/ सहार के आदमी यहाँ उतर सकतैं । अगलौ स्टेशन दानघाटी गोवर्धन है परिक्रमा बारे यही पै उतर जायँ तौ फायदा में रहंगे ।

 जे गाड़ी यहाँ ते सीधे वृन्दावन जाएगी । अगलौ स्टेशन चन्द्रोदय मन्दिर है, छटीकरा और चौमुहाँ के लैं फीडर बस कौ प्रयोग करें । अगलौ स्टेशन प्रेममन्दिर है, दर्शनार्थी दर्शन करबे कूँ यहाँ उतरें । अगलौ स्टेशन बिहारी जी मंदिर, यात्रिगण उतरबे में हड़बड़ी ना करें आराम ते उतरें और निश्चिंत रहें चौं कै आप ब्रजधाम में हौ । अगलौ गायत्री तपोभूमि मथुरा स्टेशन है, आकाशवाणी बारे यहीं उतर सकतैं । गाड़ी की दिशा में जाबे बारौ डिब्बा, लुगाइन के लैं घिरौ भयौ है , या डिब्बा में चढ़बे की कोशिश करबे बारौ, 'दंड कौ भागी' होयगौ । जे भूतेश्वर जंक्शन है जे गाड़ी नए बसड्डे ते हैं कैं जंक्शन की ओर जाएगी, 'कंकाली बारे' और गोवर्धन चैराहे बारे यहीं पै उतर जइयों । चौं कै यहाँ ते बैंगनी रंग की मेट्रो गोवर्धन कूँ कृष्णा नगर हैकैं जायगी ।
अगलौ स्टेशन कृष्णा नगर चौरायौ आबैगौ, वहाँ ते रामलीला मैदान बारे कृष्णा नगर बजार मांऊँ और राधानगर बारे, मोहन मिष्ठान मांऊँ जा सकें ।
 सावधान है जाओ दरवज्जे बन्द हैवे वारे हैं अगलौ स्टेशन मथुरा रेलवेजंक्शन है दिल्ली-आगरा जानौ होय तौ यहाँ ते ट्रैन लै कैं निकर लेओ ।  यहाँ ते टाउनशिप' जाबे बारेन कौ "यात्री किरायौ" आधौ कर दियौ है, म्हां जाबे बारे खूब लाभ उठाऔ ।
अगलौ स्टेशन *मथुरा कचहरी* जा काऊ कूँ केस-वेस सुल्टानौ होय तौ उतर लेओ । अगलौ स्टेशन टाऊनशिप, रिफायनरी वारे यहाँ पै उतरैं, जे गाड़ी गोकुल बैराज ते गोकुल कूँ जायगी चुप्प-सीना हाथ जोड़ कैं जमुना जी की ओर बैठ जाऔ और पइसा तौ अब तुम फेंक ही नाँय सकें चौं कै भिच्ची में आयगे हो चौं कै दरवज्जेन पै शीशा जड़े भये हैं, जे नाँय होंते तौ तुम धकाधक फेंके बिना मानते थोड़े ही। आबे वारौ गोकुल स्टेशन है दरवाजे सूधे हाथ माहुँ खुलंगे । अगलौ स्टेशन महावन है खीरमोहन मिठाई खाबे वारे यहाँ उतरें । अगलौ स्टेशन रमणरेती है ब्रज की रज में लोर मारबे कूँ व हाथीन द्वारा आरती देखबे कूँ यहाँ उतरें । अगलौ स्टेशन दाऊजीनगर है, जे पंडान की नगरी है, मिश्री कौ स्वाद यहाँ चखौ जा सकै है , ब्रजराज दाऊजी के दर्शन कूँ यहाँ उतरें । जे गाड़ी यहीं तक है फिर यहीं ते वापस कोकिलावन कूँ बनकें जायगी ।


Sunday, 19 January 2020

अन्य भाषा सीखवे के संदर्भ में कही गयी कछु बात


 जे वस्तुतः मामलौ ऐसौ है कै भाषा सीखबे ते आपकौ दिमाग और अधिक स्मार्ट बनतौ है। भाषा सीखबे के परिणामस्वरूप मस्तिष्क में तंत्रिका नेटवर्क बढ़िया तरह ते मजबूत हैमतैं।

 यदि आप काऊ आदमी ते वाकी भाषा में बात करतें जाय बू समझतौ है, तौ वाके दिमाग तक जामतै। अगर आप वा ते वाई की मातृभाषा में बात करेंगे, जो वाके दिल तक जायगी ।

अगर आप अपनी भाषा कूँ छोड़ कैं दूसरी भाषाहु जानतें तौ जे दूसरी आत्मा कौ अधिकारी हैवे के बराबर है।

 जिन्नै कोई अन्य देशी या विदेशी भाषा कौ ज्ञान नाँय तौ विन्नै अपनी भाषा हु के बारे में पूरी जानकारी नाँय है सकै चौं कै समानांतर अध्ययन ते बहौत कछु सीखबे कूँ मिलतौ है ।

 बू आदमी जो अन्य भाषान कूँ बोलवौ नाँय जानै, बू प्रतिभावान आदमी है सकै मगर वाके विचारन में कमियां जरूर मिलबे की संभावना ज्यादा रहबैगी जो एक ते ज्यादा भाषा जानतौ है ।
 एक भाषा आपके जीवन कौ एक रास्तौ खोलतै लेकिन रास्ते पै पड़वे वारौ हर एक दरवाजे दो भाषान के जरिये ही खुल पामतें।
 भाषा एक संस्कृति कौ रोडमैप है। भाषा बतामतै कै याके बोलवे वारे लोग कहां के रहबै वारे हैं ।
 कछु लोग विदेशी भाषान कूँ सीखबौ याके लै चहामतें ताकि विदेश में जाय कैं रह सकें, पढ़,सकें, नौकरी कर सकें ।

साभार:- ब्रजवासी 


ब्रजभाषा सीखिए

ब्रज के भोजन और मिठाइयां

ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'

ब्रज मेट्रो रूट व घोषणा

ब्रजभाषा कोट्स 1

ब्रजभाषा कोट्स 2

ब्रजभाषा कोट्स 3

ब्रजभाषा ग्रीटिंग्स

ब्रजभाषा शब्दकोश

आऔ ब्रज, ब्रजभाषा, ब्रज की संस्कृति कू बचामें

ब्रजभाषा लोकगीत व चुटकुले, ठट्ठे - हांसी

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मेरौ ब्रजभाषा प्रेम: My Love Affair with Brajbhasha


ब्रजभाषा देश की प्राचीनतम भाषान में ते एक है। जे केवल ब्रज क्षेत्र में ही नाँय बल्कि देश के अधिकांश भागन में बोली और समझी जाबे वारी भाषा है।




हमने प्रेम कूँ खानेन में विभक्त करने में कोई कसर नाँय छोड़ी, लेकिन प्रेम तौ प्रेम ही है। अभागौ है दुनिया में बू व्यक्ति जाने काऊ कूँ प्रेम नाँय करौ या जो काऊ के प्रेम कौ पात्र नाँय बनौ। ध्यान रखबे वारी बात जे है कै जहाँ अहम्‌ होयगौ, वहाँ प्रेम नाँय मिलैगौ। जहाँ अविश्वास होयगौ, स्वार्थ होयगौ, भेदभाव होयगौ वहाँ हु प्रेम नाँय होयगौ। दूसरी ओर जहाँ प्रेम होयगौ वहाँ लगाव जरूर होयगौ, अपनौपन होयगौ, आत्मत्याग व समर्पण हु होयगौ ।

 अनेक ऐसे विद्वान भये हैं, जिन्नै ब्रजभाषा में बहुत ही उल्लेखनीय काम करते भये याय राष्ट्रीयऔर अंतरराष्ट्रीय आयाम दियौ है ।
इमरै ने ब्रजभाषा साहित्य कौ मूल भाषा में गहरौ अध्ययन कियौ है और भाषान की राजनीति कूँ लै कैं हु वे काम करते रहे हैं ।

रुपर्ट स्नेल हु केवल या ही काम के लिए नाँय जाने जाँय विनकूँ ब्रजभाषा साहित्य पै अपने शोध और किताबन के लैं जानौ जामतौ है । ब्रजभाषा में कृष्णभक्ति काव्य परंपरा कूँ लै कैं हिंदी तक में शायद ही काऊ विद्वान ने इतेके विस्तार ते काम कियौ है ।  हिंदी में कृष्णभक्ति काव्य-परंपरा कौ सबरौ जोर सूरदास और अष्टछाप के कवीन पै रह्यौ है, लेकिन रुपर्ट स्नेल नै अपने शोध के माध्यम ते जे दिखायौ कै बड़ी संख्या में कवि कृष्ण भक्ति काव्य की रचना कर रहे हते और ब्रजभाषा की व्याप्ति के पीछैं इन्हीं भक्त कवियों कौ बड़ौ योगदान रह्यौ

यदि ब्रजक्षेत्र की एक सर्वमान्य भाषा होंत है तौ ब्रजमंडल के हर जिलेन में व्यक्तिन ते के संग सम्पर्क बढ़िया ते जुड़ सकतौ है, या ते विकास के हु रास्ते खुल सकतें। ब्रजमण्डल की एकता एवं संप्रभु अखण्डता के लैं ब्रजप्रदेश में एक भाषा कौ होनौ अत्यन्त आवश्यक है। मातृभाषा सीखबे, समझबे एवं ज्ञान की प्राप्ति में सरल है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने स्वयं के अनुभव के आधार पर कही है कै ‘‘मैं अच्छौ वैज्ञानिके या लैं बनौ, चौं कै मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त करी (धरमपेठ कॉलेज नागपुर)। अंग्रेजी भाषा माध्यम में पढ़ाई में अतिरिक्त श्रम करनौ पड़तौ है। मेडिकल या इंजीनियरिंग पढ़बे हेतु पहलैं अंग्रेजी सीखनी पड़तै और बाद में विन विषयन कौ ज्ञान प्राप्त होंतौ है। पंडित मदन मोहन मालवीय अंग्रेजी के ज्ञाता थे। विनकी अंग्रेजी सुनवे कूँ अंग्रेज विद्वान हु आमत हते लेकिन विन्नै कही हती कै ‘‘मैं 60 वर्ष ते अंग्रेजी कौ प्रयोग करतौ आ रह्यौ हूँ, परन्तु बोलबे में हिन्दी जैसी सहजता अंग्रेजी में नाँय आ पामत। या ही प्रकार विश्व कवि रविन्द्र नाथ ठाकुर नै कही है, ‘‘ यदि विज्ञान कूँ जन-सुलभ बनानौ है तो मातृभाषा के माध्यम ते विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए।’’ या सम्बन्ध में महात्मा गांधी कौ हु मत हतो कै अंग्रेजी माध्यम ने बच्चन की तंत्रिकान
भार डालौ है , विन्नै रट्टू बनायौ है, वे सृजन के लायक नाँय रहे। .विदेशीभाषा ने देशी भाषान के विकास कूँ बाधित करौ है।


 विश्व के आर्थिक एवं बौद्धिक दृष्टि ते सम्पन्न जैसे अमरीका, रशिया, चीन, जापान, कोरिया, इंग्लैण्ड , फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इजरायल आदि देशन में जन समाज, शिक्षा एवं शासन-प्रशासन की भाषा वहां की अपनी भाषा ही है।
 याकौ तात्पर्य जे है कै जब तक भारत में शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षा एवं न्यायालय सहित शासन-प्रशासन कौ कार्य अपनी भाषा में नाँय होयगौ तब तक देश आगे नाँय बढ़ सकै।
 बच्चन के मानसिक विकास के लैं मातृभाषा इतेक ही आवश्यक है जितेक शारीरिक विकास के लैं माँ कौ दूध’’ ।

भाषा संस्कृति और संस्कारन की संवाहिका हैमतै। भाषा के पतन ते संस्कृति व संस्कारन कौ ही पतन है रह्यौ है। भाषा बदलबे ते मूल्य हु बदल जामतें। भाषा संस्कृति कौ अधिष्ठान है।

 कार्य व व्यवहार में अपनी भाषा कौ ही उपयोग करैं। अपने बालकन कूँ मातृभाषा में ही पढा़यें। अपने संगठन, संस्था के स्तर पै सबरौ कार्य व्यवहार अपनी ही भाषा में करैं। घर, कार्यालय, दुकान में नाम पट्ट एवं पट्टिकान कूँ अपनी भाषा में ही लिखें। अपने व्यक्तिगत पत्र, आवेदन पत्र, निमंत्रण-पत्र आदि हु मातृभाषा या भारतीय भाषा में लिखें या छपवाऔ।

साभार:- ब्रजवासी 


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Thursday, 16 January 2020

आऔ हम सब मिलकैं ब्रजभाषा और ब्रज संस्कृति कूँ बचामें

*राधे राधे ब्रजवासियो*




अपनी भाषा और संस्कारन्नै कबहु मत भूलौ, जो अपनी भाषाऐ, अपने वार-त्यौहारानन्नै, अपनी माटी कूँ और अपने रीति/रिवाजन्नै भूल जामतौ है बू एक पेड़ ते टूटी भयी डार की तरह होंतौ है।
आज के या अधुनिक काल के समय में हम अपनी भाषा, रीति-रिवाज तीज त्योहार सबन कूँ भूलत जाय रहे हैं और सोचतैं कै हम बहुत आगे जांगे।
हर राज्य, भाषा और क्षेत्र बारे अपनी भाषा, रीति रिवाज और पहिचान कूँ संग लैकैं चलतौ है और अपने मूल चीजन कूँ नाँय छोड़त जबही बे सब भाषा जीवित हैं।
जैसैं बंगाली, पंजाबी, मराठी, उड़िया, आसामी, गुजराती, नेपाली, सिंधी, तमिल, तेलगी, कन्नड़, मलयालम औऱ मणिपुरी आदि निबक भाषा । पर हमनैं अपनी ब्रज भाषा और ब्रज के सब रीति-रिवाज लगभग छोड़ दिये हैं।
जैसैं पहले की सी होरी, दिवारी, सनूने(रक्षा बंधन), सावन के झूला, तीज, मावस, पूण्यों, सीरौ-बासौ ।
अब तौ हमारे आपस के ब्यौहार सब खतम होंत जाय रहे हैं।
अब आदमी ज्यादा आधुनिक बनवे लग गयौ है। ब्याह में चाहें अन्य कार्यक्रमन में पातर, कुल्हड़, सरैया की पाँत खतम करिकैं बफर सिस्टम जैसी नयी व्यवस्था कूँ ज्यादा महत्त्व दैमतैं औऱ सबते जरूरी ब्याह, सगाई सब कछु एक ही दिना में कर दैमतैं, जाते सब रीति-रिवाज और नेग धरे के धरे रह जामतैं । मेरौ सबते हाथ जोड़ कैं निवेदन है कै अपनी भाषा और संस्कृति की ओर दुबारा लौटॉ व अपनी "ब्रजवासी पहिचान" कूँ बनाय रखौ।

जैसौं कै आप सबन कूँ पतौ है कै आाधुनिक हिन्दी की जननी बृजभाषा ही है । पर आज के बढ़ते आधुनिकवाद में ब्रजभाषा लुप्त होंत जाय रही है जबकि या भाषा में अनेक कविन नैं जैसैं कैं सूरदास, रसखान, तुलसीदास और रहीम आदिन निबक रचना करीं हैं । बिना जमुना मैया की शुद्धता और बाँधन के कारण, जल कमी ते उद्योग, आवास और सड़क, भूमि अधिगृहण और अति तेजी ते आधुनिकतावाद के बढ़वे ते ब्रज अपने मार्ग ते भटकत जाय रह्यौ है ।
अतः सबन् ते निवेदन है कै बंशी वारे के या ब्रज कूँ बचाबे में अपनौ सहयोग करैं
                                जय श्री कृष्णा!!!

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भाषा यानी अभिव्यक्ति कौ माध्यम। संसार में हजारन भाषाएं बोली जामतैं। राष्ट्रीय स्तर पै प्रयोग करी जाबे वारी भाषान में फिर हु ठहराव है, लेकिन जो विलुप्त भाषाएं हैं वे ज्यादातर क्षेत्रीय स्तर की हैं।
 गांवन ते पलायन, शहरन में बढ़ती भयी आबादी, भाषान की क्लिष्टता, भीषण अकाल, महामारी आदि ऐसे कई कारणन ते कैऊ भाषाएं लुप्त हैं गईं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पै करी जा रही साजिशन के कारण हु कैऊ आंचलिक व लोक भाषाएं दम तोड़बे के कगार पै हैं। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलन में जब कोई बच्चा हिंदी या अपनी क्षेत्रीय भाषा कौ प्रयोग करतौ है तो बाकी वाय सजा दयी जामतै। अब जरा सोचौ कै जो बच्चा अपनी भाषा के प्रयोग के लैं सजा पाबैगौ, काह बू अपनी भाषा ते कट नाय जाएगौ। 
परिणामतः हौले- हौले मातृभाषा दम तोड़ देगी। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021 तक 96 प्रतिशत भाषाएं और विनकी लिपि समाप्त है जांगी। विश्व में दुर्लभ श्रेणी की भाषान की संख्या 234 तक पहुंच चुकी है तथा 2500 ते हु अधिक बोलिय समाप्त हैबै के कगार पै हैं। भाषा के संग-संग वा ते जुड़ी जानकारी प्रकृति, रहस्य, जीवन शैली, संस्कृति आदि कौ हु अंत है जामतौ है। ईसाई और यहूदीन के धर्मग्रंथन की मूल भाषा हिब्रू हती जो अब प्रयोग में नाय है। याय तरह भारत में पाली, प्राकृत सहित कई भाषाओं ने अपनौ अस्तित्व खोयौ है। सिंधु घाटी की लिपि आज तकहु नाय पढ़ी जा सकी, जो काऊ युग में निश्चय ही जीवंत भाषा रही हुंगी। क्षेत्रीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनगिनत भाषाएं लुप्त है गई हैं या विलुप्तप्राय हैं। जब हु कोई भाषा अपने सहज स्वाभाविक अर्थ कू छोड़कैं विशेष अर्थ कू व्यक्त करबे लगतै, तो बू क्लिष्ट बन जामतै और यही क्लिष्टता वाके जनसामान्य ते कटबे की वजह बनतै। उदाहरण के तौर पर संस्कृत, ग्रीक, लैटिन आदि भाषाएं।

या ही तरह महात्मा बुद्ध और महावीर की भाषा प्राकृत और पाली रही। इन्हीं भाषान में उनके लेख व उपदेश हु है, जो कि क्लिष्ट हैबे के कारण आम जन ते कट गए। संस्कृत भाषा हु एक सीमित वर्ग की भाषा रही है। लैटिन, ग्रीक जैसी भाषाएं अपनी क्लिष्टता के कारण अवरुद्ध है गईं। इन भाषान की लिपियां तो हैं, मगर भाषा लुप्त सी है गईं, कुछ परिवर्तित हो गईं। लुप्त हैमत भाषान के बाबत अबू अब्राहम ने द ट्रिब्यून में लिखौ कै संस्कृत मृत भाषा नाय है। यह बात सही है कै संस्कृत भाषा कौ उपयोग रोजमर्रा के जीवन में लंबे समय तक नाय है सकौ। फिर हु जे भाषा काफी शक्तिशाली है और शास्त्रन में विद्यमान है। जे भाषा या ही मारें जीवित है कै अधिकतर क्षेत्रीय भाषाएं संस्कृत के शब्द और मुहावरेन कू आत्मसात करती हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2008 में किए गए अध्ययन के अनुसार विश्व में लगभग 6780 भाषाएं बोली जाती हैं और इनमें 6432 ऐसी भाषाएं हैं, जिन्हें 1.50 करोड़ लोग बोलते हैं। 585 करोड़ लोग ऐसे हैं जो 268 भाषान कौ प्रयोग करतैं। ग्लोबलाइजेशन के दौर में 6432 भाषान के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। वर्ष 2021 तक 96 भाषाएं और विनकी लिपियां समाप्त है जांगी। विश्व में 234 भाषाएं ऐसी हैं जो कि दुर्लभ श्रेणीन में आ चुकी हैं तथा 2500 ते हु अधिक भाषाएं एवं बोलियां समाप्ति की कगार पै हैं।

लुप्त होती भाषान कू ध्यान में रखते भए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के हिंदी विभाग नै एक सराहनीय कदम उठायौ है। उप्र के मेरठ के बावली गांव के ठेठ मुहावरे अब बावली तक सीमित नांय रहंगी। इन क्षेत्रन में प्रचलित ठेठ लोकोक्तियां और मुहावरे अब सहेजे जायेंगे ताकि याकी जीवंतता बनी रहे। 
याय हिंदी विभाग एक किताब कौ रूप दैकैं कोर्स में शामिल करबे वारौ है। या संदर्भ में पांच सौ ते अधिक लोकोक्तियां और मुहावरे एकत्र करे जा चुके हैं। वैसे, लुप्त हो रही भाषान के बारे में सोचकैं मन व्याकुल है उठतौ है, चौ कै भाषा का सीधौ-सीधौ लगाव वा क्षेत्र के संस्कृति, परिवेश, अस्मिता, खान-पान और रहन-सहन ते है। भाषा अपने आप में अपने समाज कौ प्रतिबिंब हैमतौ है। कुल मिलाकर कहें, तौ भाषा अपने आप में प्रतिबिंब हैं। लुप्त हो रही भाषान पर सिर्फ चिंता व्यक्त न कर कैं हमें चहिए कै ऐसी भाषान कू सृजनात्मक तरीके ते आत्मसात करें। लुप्त हो रही भाषाओं के कारण ही देश-दुनिया में सामाजिक प्रभुत्व खंडित है रहयौ है। भाषा संरक्षण के लैं वैचारिक पहल की आवश्यकता है।
बहौत से देशन नै अपनी जमीन की भाषान कू अहमियत दैकैं वहां के शासन, न्यायिक कार्य, शिक्षा, अनुसंधान, ज्ञान-विज्ञान की भाषान के रूप में विकसित कर दियौ है। हमारे यहां ऐसौ चौं ना हो हैबै? हम मातृभाषाओं को शिक्षा कामाध्यम बनाने की शिक्षाविदों की राय कू चौं नहीं अंगीकार करतें? हम उलटी गंगा बहा रे हैं।

दुनिया में कई स्रोतन ते विकसित ज्ञान भाषांतरण के माध्यम से वामें मिल जाने ते अद्यतन ज्ञान के भंडार के रूप में वाकौ विकास आदि कई कारणन ते अंग्रेजी कौ ज्ञान व्यर्थ नाय कहयौ जा सकै। काऊ भाषा या भाषान कौ ज्ञान कबहु व्यर्थ नाय जाय। या दृष्टि से दुनिया की काऊ हु भाषा के सीखबे के प्रति हमारी उदारता स्वागत-योग्य है।

मातृभाषा के माध्यम ते शिक्षा के पक्ष में कई वैज्ञानिक तर्कों के बावजूद हम अंग्रेजी माध्यम की ताहि अधिक आकर्षित हैं। प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा के माध्यम ते दैबे की वैज्ञानिकता के पक्ष में कई विभूतीन द्वारा दिए गए तर्कों और आग्रहन कू हमनै नजरअंदाज कियौ है। बढ़ते कानवेन्टों (शिक्षा कौ निजीकरण!), सरकारों का अंग्रेजी माध्यम की ओर आकर्षण (शिक्षा कौ व्यापार?) आदि नै दासता की शिक्षा कू ही मजबूत कियौ है। गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषान के माध्यम ते दैबे ते भारत की वैज्ञानिक प्रगति कू दुनिया में अव्वल देखबे की चेतना जगावे वारे अब्दुल कलाम अमर है गए हैं। वर्ष 1999 में यूनेस्को ने हर वर्ष 21 फरवरी कू अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनावे की सिफारिश की हती। यूनेस्को द्वारा जे निर्णय बांग्लादेश में मातृभाषा के माध्यम कू लै कैं जो बलिदान 1952 में भए हते विनकी स्मृति कू सार्थकता प्रदान करबे कौ प्रयास हतो। शांति और बहुभाषिकता कू बढ़ावा दैबे के लैं वर्ष 2000 से अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जा रहयौ है। 16 मई 2009 कू संयुक्तराष्ट्र महासभा नै संकल्प पारित कियौ हतो और अपने सदस्य-राष्ट्रन ते आग्रह कियौ हतो कै ‘दुनिया के लोगन द्वारा प्रयोग की जाबे वारी सबरी भाषान के संरक्षण कू बढ़ावा दें।’


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अपनी भाषा कूँ हम कैसैं अच्छे ते सीखें-

नयी भाषा सीखने के लिए नए-नए शब्दों को याद करना ही काफी नहीं। इसके लिए नए तरीके से सोचना भी ज़रूरी है, क्योंकि हर भाषा में तर्क करने और हँसी-मज़ाक करने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। इसके अलावा, नए शब्दों का सही उच्चारण करने में जीभ का अलग तरह से इस्तेमाल करना पड़ता है। जब एक व्यक्‍ति कोई नयी भाषा सीखता है, तो शुरू-शुरू में उसे शायद कुछ भी समझ में न आए।  लेकिन जैसे-जैसे वह भाषा को गौर से सुनता है, तो वह एक-एक शब्द को और उस भाषा के बोलने के तरीके को समझने लगता है।

 भाषा बोलने में माहिर लोगों की नकल कीजिए। नयी भाषा सीखनेवालों को उकसाया जाता है कि वे सुनने के अलावा, उस भाषा में माहिर लोगों के उच्चारण और बोलने के तरीके की नकल करें। इससे वे नयी भाषा को गलत लहज़े में बोलने से दूर रहेंगे और दूसरे उनकी बात आसानी से समझ पाएँगे। जब शुद्ध भाषा की बात आती है तो हमें उन लोगों से सीखना चाहिए, जो इस भाषा को “सिखाने की कला” में माहिर हैं।
मुँह-ज़बानी याद कीजिए। भाषा सीखनेवालों को कई बातें मुँह-ज़बानी याद करनी पड़ती हैं, जैसे नए-नए शब्द और छोटे-छोटे वाक्य। उसी तरह, मसीहियों के लिए शुद्ध भाषा सीखने में कई बातों को मुँह-ज़बानी याद करना बहुत मददगार साबित हो सकता है । पहले लोग भजनों को मुँह-ज़बानी याद करते थे। आज भी लोग कम उम्र में ही धर्म ग्रंथ श्लोकों को शब्दश याद कर लेते हैं। हमारे बारे में क्या? क्या हम भी अपनी याददाश्‍त का बढ़िया इस्तेमाल कर सकते हैं? कुछ लोग नयी भाषा का मन-ही-मन अभ्यास करते हैं। लेकिन इससे अच्छे नतीजे नहीं मिलते। शुद्ध भाषा सीखते वक्‍त कभी-कभी हमें धीमी आवाज़ में खुद को पढ़कर सुनाना चाहिए, ताकि हम जो पढ़ रहे हैं उस पर ध्यान लगा सकें।


गौर से सुनिए। जब एक व्यक्‍ति कोई नयी भाषा सीखता है, तो शुरू-शुरू में उसे शायद कुछ भी समझ में न आए। लेकिन जैसे-जैसे वह भाषा को गौर से सुनता है, तो वह एक-एक शब्द को और उस भाषा के बोलने के तरीके को समझने लगता है। सुनने के लिए ध्यान लगाना ज़रूरी है। हालाँकि यह आसान नहीं, मगर इसमें हम जो मेहनत करते हैं, वह वाकई रंग लाती है। बोलने में माहिर लोगों की नकल कीजिए। नयी भाषा सीखनेवालों को उकसाया जाता है कि वे सुनने के अलावा, उस भाषा में माहिर लोगों के उच्चारण और बोलने के तरीके की नकल करें। इससे वे नयी भाषा को गलत लहज़े में बोलने से दूर रहेंगे और दूसरे उनकी बात आसानी से समझ पाएँगे। जब शुद्ध भाषा की बात आती है तो हमें उन लोगों से सीखना चाहिए, जो इस भाषा को “सिखाने की कला” में माहिर हैं।  उनसे मदद माँगिए। और गलती करने पर जब आपको सुधारा जाता है, तो खुशी-खुशी उसे कबूल कीजिए ।

भाषा बोलने के लिए सच्चाई पर विश्‍वास करना और इसके बारे में दूसरों को सिखाना ज़रूरी है। लेकिन इसमें परमेश्‍वर के उसूलों और सिद्धांतों के मुताबिक अपने चालचलन को ढालना भी शामिल है। इसके लिए हमें दूसरों की नकल करनी चाहिए, जिसमें उनके जैसा विश्‍वास और जोश दिखाना भी शामिल है।
भाषा सीखनेवालों को कई बातें मुँह-ज़बानी याद करनी पड़ती हैं, जैसे नए-नए शब्द और छोटे-छोटे वाक्य। उसी तरह, मसीहियों के लिए शुद्ध भाषा सीखने में कई बातों को मुँह-ज़बानी याद करना बहुत मददगार साबित हो सकता है।

 शुद्ध भाषा सीखते वक्‍त कौनसी बात हमारी मदद कर सकती है? खुद को पढ़कर सुनाइए। कुछ विद्यार्थी नयी भाषा का मन-ही-मन अभ्यास करते हैं। लेकिन इससे अच्छे नतीजे नहीं मिलते। शुद्ध भाषा सीखते वक्‍त कभी-कभी हमें धीमी आवाज़ में खुद को पढ़कर सुनाना चाहिए, ताकि हम जो पढ़ रहे हैं उस पर ध्यान लगा सकें। हम कैसे शुद्ध भाषा का “व्याकरण” सीख सकते हैं? व्याकरण पर ध्यान दीजिए। नयी भाषा सीखने के दौरान, व्याकरण यानी शब्दों को जोड़कर कैसे वाक्य बनते हैं इस पर और व्याकरण के नियमों पर भी ध्यान देना फायदेमंद होता है। इससे हम समझ पाते हैं कि वह भाषा कैसे बोली जाती है और हम उस हिसाब से उसे सही-सही बोल पाते हैं। जिस तरह हर भाषा का अपना व्याकरण होता है, उसी तरह शुद्ध भाषा का भी अपना व्याकरण यानी ‘खरी बातों का एक आर्दश’ होता है। हमें किस समस्या से निपटना पड़ सकता है और हम यह कैसे कर सकते है?

सीखते रहिए। एक इंसान शायद नयी भाषा में लोगों के साथ थोड़ी-बहुत बातचीत करना सीख ले। मगर फिर वह उस भाषा को आगे सीखना बंद कर देता है। शुद्ध भाषा सीखनेवालों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो सकता है। याद करने का एक पक्का समय तय कीजिए। बिना शेड्‌यूल बनाए जब तब अध्ययन करना और वह भी घंटों तक ऐसा करना, फायदेमंद नहीं होता। इसके बजाय, नियमित तौर पर और थोड़े समय के लिए अध्ययन करना ज़्यादा अच्छा होता है। ऐसे वक्‍त पर अध्ययन कीजिए जब आपका दिमाग चुस्त रहता है और आपका ध्यान आसानी से नहीं बँटता। नयी भाषा सीखना जंगल में रास्ता बनाने जैसा है। जितना ज़्यादा आप उस रास्ते से आते-जाते हैं, उतना ज़्यादा उस पर चलना आसान होता है। लेकिन अगर आप कुछ समय के लिए उस रास्ते से जाना बंद कर दें, तो बहुत जल्द उस पर झाड़ियाँ उग आएँगी। इसलिए शुद्ध भाषा सीखने में लगन से और नियमित तौर पर अध्ययन करना बेहद ज़रूरी है। नयी भाषा सीखनेवाले कुछ लोग उसे बोलने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि या तो उन्हें शर्म आती है या वे गलती करने से डरते हैं। और इस वजह से वे भाषा जल्दी नहीं सीख पाते। भाषा सीखने के बारे में यह पुरानी कहावत एकदम सच है, “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।” दूसरे शब्दों में कहें तो जितना ज़्यादा एक व्यक्‍ति नयी भाषा बोलने का अभ्यास करेगा, उतनी आसानी से वह उसे बोल पाएगा। उसी तरह, हमें भी हर मौके पर शुद्ध भाषा बोलनी चाहिए।

आम तौर पर चाहे हम अलग-अलग भाषाएँ क्यों न बोलते हों,
उदाहरण देकर समझाइए कि नियमित तौर पर अध्ययन करना क्यों ज़रूरी है? अध्ययन करने का एक पक्का समय तय कीजिए। बिना शेड्‌यूल बनाए जब तब अध्ययन करना और वह भी घंटों तक ऐसा करना, फायदेमंद नहीं होता। इसके बजाय, नियमित तौर पर और थोड़े समय के लिए अध्ययन करना ज़्यादा अच्छा होता है। ऐसे वक्‍त पर अध्ययन कीजिए जब आपका दिमाग चुस्त रहता है और आपका ध्यान आसानी से नहीं बँटता। नयी भाषा सीखना जंगल में रास्ता बनाने जैसा है। जितना ज़्यादा आप उस रास्ते से आते-जाते हैं, उतना ज़्यादा उस पर चलना आसान होता है। लेकिन अगर आप कुछ समय के लिए उस रास्ते से जाना बंद कर दें, तो बहुत जल्द उस पर झाड़ियाँ उग आएँगी। इसलिए शुद्ध भाषा सीखने में लगन से और नियमित तौर पर अध्ययन करना बेहद ज़रूरी है।



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  यदि हमें भारत को विश्व में सिरमौर बनाना है, तो अपनी भाषा खासकर ¨हदी को मजबूत करना होगा। बच्चे भाषा का संस्कार पहले घर से ही सीखते हैं, फिर स्कूल में। जिस तरह से हमारा देश प्रगति कर रहा है, उसी प्रकार से हमें अपने संस्कार को आगे बढ़ाना चाहिए। कहने को हमारा देश आधुनिक होता जा रहा है। सोशल मीडिया दिनचर्या का हिस्सा बन गई है। बच्चों के साथ बड़े भी अपनी भाषा में बदलाव लाते जा रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव हमारे संस्कारों पर पड़ रहा है। फेसबुक, वाट्सअप आदि सोशल मीडिया एप पर लोग मोबाइल पर कम शब्दों की सांकेतिक भाषा का प्रयोग कर बातचीत की आदत अपना रहे हैं। धीरे धीरे यह आदत हमारे स्वभाव और फिर संस्कार का हिस्सा बन जाती है। यदि हम सही प्रकार से भाषा का प्रयोग नहीं करेंगे, तो हम घर और स्कूल के माध्यम से भी बच्चों को संस्कार नहीं दे पाएंगे। हमें अपनी भाषा को सर्वोच्च स्थान देना चाहिए।

अशुद्धियों के प्रदूषण से बचाएं भाषा-
भाषा के प्रति लोगों का नजरिया बेहद सामान्य हो गया है। लोगों ने भाषा को अपनी सुविधा के अनुसार ढाल लिया है। इससे फौरी तौर पर अभिव्यक्ति को विस्तार मिल जाता है, लेकिन भाषा अशुद्ध होती जा रही। आने वाले समय में नई पीढ़ी के लिए गंभीर समस्या होने वाली है। इसलिए इसे एक चुनौती के रूप में लेने का वक्त आ गया है। हमें भाषा को अशुद्धियों के प्रदूषण से बचाने का संकल्प लेना होगा। यहां तक कि भाषा का ऐतिहासिक, तुलनात्मक आदि अध्ययन भी भाषा के जरिये ही संभव है।

भाषा सामाजिक संपत्ति-
भाषा एक सामाजिक संपत्ति है। इससे शिक्षित समाज का भी विकास, नव निर्माण संभव है। भौगोलिक, सांस्कृतिक और व्यवहारपरक विभिन्नता के कारण भाषा का प्रयोग भी सीमित व विशिष्ट होता है। इसके जरिये ही समाज भी सीमित विशिष्ट बनता है। जातीयता, प्रांतीयता का भी बोध होता है।

सांस्कृतिक सभ्यता का सरंक्षण-
पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृति, सभ्यता व भाषा के सभी तत्व संरक्षित रहते हैं। किसी भी सांस्कृतिक वर्ग की ललित और उपयोगी कलाओं का भंडार भाषा के माध्यम से ही स्थित व सुरक्षित रहता है। विश्व में विज्ञान से लेकर भाषा विज्ञान तक के नए अविष्कार व शोध होते रहते हैं। अध्ययन व शोध लेखन में नए-नए शब्द गढ़े व रचे जाते हैं। इन शब्दो से भाषा के द्वारा सामाजिक व वैज्ञानिक विकास की अभिव्यक्ति होती है। मनुष्य को सभ्य व पूर्ण बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है। सभी प्रकार की शिक्षा का माध्यम भाषा ही है।

मानवीय मूल्यों का अहसास कराती भाषा-
विश्व के हितों को ध्यान में रखते हुए जो ¨चतन, मनन गहराई से किया जाता है, वह दार्शनिक ¨चतन कहलाता है। यहां बताना चाहूंगी कि गांधी जी स्वयं अंग्रेजी के प्रभावी ज्ञाता व वक्ता थे। गांधी के विचार शिक्षा के संदर्भ में स्पष्ट थे। उनके अनुसार, हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाने जैसा है। उनका मानना था कि कि विदेशी भाषा के माध्यम से दी गई शिक्षा बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करती है। मौलिकता का अभाव पैदा होता है। जबकि मातृभाषा संस्कार के साथ नैतिक व मानवीय मूल्यों की भी शिक्षा देती है।

आधुनिकता की आंधी में हम अपनी भाषा को दिन ब दिन छोटा करते जा रहे हैं। इस कारण हमारे संस्कार भी सिमट रहे हैं। हमें भाषा का स्वरूप नहीं बिगाड़ना चाहिए। भाषा के परिष्करण, परिमार्जन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इससे हमारा ज्ञान भी बढ़ेगा और संस्कार भी दिखेंगे। अभिव्यक्ति का माध्यम है भाषा। जितनी अच्छी भाषा होगी, उतनी ही प्रभावी हमारी अभिव्यक्ति। मेरा मानना है कि भाषा को मूल स्वभाव में ही बोलना चाहिए, लिखना चाहिए। आजकल लोग भाषा को बिगाड़ रहे हैं। कम शब्दों के चक्कर में ज्ञान भी कम करते जा रहे, जो बड़ी समस्या बन रही है। हमें भाषा के संस्कार को समझना, अपनाना होगा।

भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा हम अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं। भाषा से ही हम किसी को प्रभावित कर सकते हैं। अच्छे शब्दों के प्रयोग व प्रभावी शैली में जब हम बात करते है तो उसमें हमारे संस्कार भी झलकते हैं। जीवन में यदि अच्छी भाषा का प्रयोग सीख लिया तो मानो जग जीत लिया। गांधीजी ने भी यही शिक्षा दी, बुरा न बोलो, बुरा न सुनो, बुरा न देखा।¨हदी है हम वतन हैं, ¨हिन्दुस्तान हमारा..इन पंक्तियों में कवि ने ¨हदी भाषा का महत्व समझाने की कोशिश की। भाषा के संस्कार में बड़ों की अहम भूमिका होती है। घर, परिवार, विद्यालय में जैसा बोला जाता, लिखा जाता, उसे ही बच्चे सीखते हैं। इसलिए बड़ों की बड़ी जिम्मेदारी है भाषा के संस्कार निखारें। व्यक्तित्व को निखारती है भाषा। सफलता की तरह भाषा का भी शार्टकट नहीं होना चाहिए। प्रत्येक शब्द, वाक्य को समझकर ही बोलना, लिखना चाहिए। रामचरित मानस की चौपाई और गीता के श्लोक को देखें, ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया तो कि सीधे मन मस्तिष्क में उतर जाए। ऐसी भी भाषा को आत्मसात करने की जरूरत है।

सांस्कृतिक सभ्यता का सरंक्षण-
पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृति, सभ्यता व भाषा के सभी तत्व संरक्षित रहते हैं। किसी भी सांस्कृतिक वर्ग की ललित और उपयोगी कलाओं का भंडार भाषा के माध्यम से ही स्थित व सुरक्षित रहता है। विश्व में विज्ञान से लेकर भाषा विज्ञान तक के नए अविष्कार व शोध होते रहते हैं। अध्ययन व शोध लेखन में नए-नए शब्द गढ़े व रचे जाते हैं। इन शब्दो से भाषा के द्वारा सामाजिक व वैज्ञानिक विकास की अभिव्यक्ति होती है। मनुष्य को सभ्य व पूर्ण बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है। सभी प्रकार की शिक्षा का माध्यम भाषा ही है।

मानवीय मूल्यों का अहसास कराती भाषा-
विश्व के हितों को ध्यान में रखते हुए जो ¨चतन, मनन गहराई से किया जाता है, वह दार्शनिक ¨चतन कहलाता है। यहां बताना चाहूंगी कि गांधी जी स्वयं अंग्रेजी के प्रभावी ज्ञाता व वक्ता थे। गांधी के विचार शिक्षा के संदर्भ में स्पष्ट थे। उनके अनुसार, हजारों व्यक्तियों को अंग्रेजी सिखलाना उन्हें गुलाम बनाने जैसा है। उनका मानना था कि कि विदेशी भाषा के माध्यम से दी गई शिक्षा बच्चों पर अनावश्यक दबाव डालने, रटने और नकल करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करती है। मौलिकता का अभाव पैदा होता है। जबकि मातृभाषा संस्कार के साथ नैतिक व मानवीय मूल्यों की भी शिक्षा देती है।

Omprakash Sharma

Monday, 13 January 2020

ब्रजभाषा में पढ़ें मकरसंक्रांति व पोंगल त्यौहार के बारे में


या बार सूर्य कौ मकर राशि में गोचर हैनौ 15 जनवरी कूँ बतायौ जा रह्यौ है जाके मारें हिंदू पंचांग में या पर्व की तिथि 15 जनवरी दई गई है। उत्तर प्रदेश और बिहार के कछु क्षेत्रन में या त्योहार कूँ खिचड़ी (Khichdi ) के नाम ते जानौ जामतौ है। वैसैं जे त्यौहार हर वर्ष 14 जनवरी कूँ पड़तौ है । हिंदू त्योहारन की तारीख पंचांग देखकर ही निर्धारित करि जामतें । हिंदी और अंग्रेजी की दिनांकन में हमेशा अंतर रहमतौ है। या ही वजह ते हर साल आबे वारे त्योहारन कौ दिनांक हर बार अलग होमतौ है लेकिन तिथींन कौ क्षय है जानौ, तिथींन कौ घट-बढ़ जानौ, अधिक मास कौ पवित्र महीना आ जानौ परंतु मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही आबै है। परन्तु पिछले कछु समय ते याकी दिनांकन में हु अंतर आबे लगौ है। याकी शुरुआत 2015 ते भयी हती और मकर संक्रांति के दिनांक कूँ लै कैं वर्ष 2030 तक जेही असमंजस बनौ रहबैगौ। मकर संक्रांति हिन्दू धर्म कौ प्रमुख पर्व है । ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि ते मकर राशि में प्रवेश करतौ है ।सूर्य के एक राशि ते दूसरी राशि में प्रवेश करबे कूँ संक्रांति कहमतैं । मकर संक्राति के पर्व कूँ कहूँ-कहूँ उत्तरायणहु कह्यौ जामतौ है ।



मकर संक्राति के दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करबे कौ विशेष महत्त्व है ।
मकर संक्रांति ते अग्नि तत्त्व की शुरुआत हैमतै और कर्क संक्रांति ते जल तत्त्व की । या दिन तिल कौ हर जगह काउ ना काउ रूप में प्रयोग हैमत ही है । तिल स्वास्थ्य के लैं हु बहौत गुणकारी है । मकर संक्रांति पै माघ मेले में प्रयागराज संगम पै भारी संख्‍या में साधु-संत व लोगन कौ नहान हौंतौ है । आज के दिना सूर्य के बीज मंत्र कौ जाप करैं, मंत्र ऐसैं होयगौ - "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः" ।


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 पोंगल दक्षिण भारत कौ बड़ौ फसलन कौ त्योहार है। तमिलनाडु में याय 'ताई पोंगल' के नाम ते हु जानौ जामतौ है। जे हर वर्ष 14 जनवरी कूँ ही मनायौ जामतौ है। पोंगल पै अरवा चावल, सांभर, मूंग की दाल, तोरम, नारियल, अबयल जैसे पारंपरिक व्यजन बनाए जामतें। या पर्व कौ व्यंजन 'चाकारी पोंगल' है, जाय दूध में चावल, गुड़ और बांग्ला चना कूँ उबालकैं बनायौ जामतौ है।



 जे त्योहार चार दिन तक चलतौ है। या में 'भोगी पोंगल' 15 जनवरी कूँ, 'थाई पोंगल' 16 जनवरी कूँ, 'मट्टू पोंगल' 17 जनवरी कूँ और 'कान्नुम पोंगल'  18 जनवरी कूँ मनाया जाय करै है।

ब्रजभाषा में लोहड़ी के त्यौहार के बारे में पढ़ें



लोहड़ी, मकर संक्रांति ते एक दिना पहलैं आमतै । भारत में मुख्‍यत: जे पंजाब, हरियाणा, दिल्‍ली, हिमाचल प्रदेश और जम्‍मू-कश्‍मीर में मनायी जामतै । हमारौ देश विविधतान के रंग ते रंगौ भयौ है। यहां तमाम तरह के पर्व मनाए जामतें। इन में ते एक पर्व है लोहड़ी कौ, जो कै पौष माह के अंत और माघ की शुरुआत में मनाया जामतौ है। कैउ स्‍थानन पै लोहड़ी कूँ तिलोड़ी हु कह्यौ जामतौ है। जे शब्‍द तिल और रोड़ी यानी गुड़ के मेल ते बनौ है।
लोहड़ी मुख्य रूप ते पंजाबीन कौ "फसल त्यौहार" है। जे हर वर्ष  13 जनवरी कूँ मनायौ जामतौ है। जे त्यौहार रबी की फसलन की कटाई कूँ दर्शामतौ है और याके मारें सब किसान एक संग मिलकैं भगवान कूँ धन्यवाद दैमतैं। लोहड़ी ते संबंधित अनुष्ठान मातृ प्रकृति के संग लोगन के लगाव कौ प्रतीक है। त्यौहार के कछु दिना पहले, युवा समूहन में एकत्र हौंतैं और लोकगीत गामत भए अपने इलाकेन में घूमतैं। ऐसौ करबे ते वे लोहड़ी की रात कूँ निर्धारित अलाव/अगाहनौ के लैं जलाऊ लकड़ी और पइसाहु इकट्ठे करतैं। या विशेष दिन पै, फुलली (पॉपकॉर्न), मूंगफली और रेवड़ी (गुड़ और तिल के बीज ते बनी भयी मीठी नमकीन) कौ प्रसाद अग्नि कूँ अर्पित करौ जामतौ है। या लोहड़ी के मौके पर अपने दोस्त और रिश्तेदारन कूँ मैसेज और कोट्स भेजकर ढेर सारी (निबक/निरी) शुभकामनाएं देओ।



 फिर आय गयी भांगड़ा की बारी,
लोहड़ी मनाबे की करौ तैयारी,
आग के पास सब आऔ,
सुंदर मुंदरीए कहकैं जोर ते गाऔ।।
जैसे जैसे लोहड़ी की आग तेज होय
वैसैं-वैसैं हमारे दुखन कौ अंत होय ।

Sunday, 12 January 2020

Most Frequent Sentences Used in Brajbhasha


















साभार:- ब्रजवासी 


ब्रजभाषा सीखिए

ब्रज के भोजन और मिठाइयां

ब्रजभूमि का सबसे बड़ा वन महर्षि 'सौभरि वन'

ब्रज मेट्रो रूट व घोषणा

ब्रजभाषा कोट्स 1

ब्रजभाषा कोट्स 2

ब्रजभाषा कोट्स 3

ब्रजभाषा ग्रीटिंग्स

ब्रजभाषा शब्दकोश

आऔ ब्रज, ब्रजभाषा, ब्रज की संस्कृति कू बचामें

ब्रजभाषा लोकगीत व चुटकुले, ठट्ठे - हांसी

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Friday, 10 January 2020

Slang words and abuses in Brajabhasha

 ब्रजभाषा कठबोली शब्द(Slang word in Brajabhasha)-

कठबोली या स्लैंग (slang) काऊ भाषा या बोली के उन अनौपचारिक शब्द और वाक्यांशन कूँ कहमतें हैं जो बोलबे वारे की भाषा या बोली में मानक तौ नाँय माने जाँय लेकिन बोलचाल में स्वीकार्य हैमतें। भाषावैज्ञानिकन कौ माननौ है कि कठबोलियाँ हर मानक भाषा में हमेशा अस्तित्व में रही हैं और लगभग सबरे लोग विनकौ प्रयोग करत हैं।
जैसैं 'मूत्र' को कई हिन्दीभाषी कठबोली में 'सूसू', पुलिस कूँ मामा कहमतें , कोई 'सिगरेट' कूँ 'सुट्टा' हु बुलामतें ।

 कठबोली की शब्दावली कछु ख़ास क्षेत्र जैसैं कैं 'हिंसा, अपराध, ड्रग्स और सेक्/जेण्डर ' में विशेष रूप ते समृद्ध हैं। वैकल्पिक रूप ते कठबोली, वर्णन करी गयी चीजन के संग केवलअपनेपन ते बाहर निकल सकतै। मोबाइल फोनन पै प्रयोग होबे वारे SMS की भाषा  (LOL)", जो "जोर से हंसने" या "जोरदार हँसी" कूँ बतामतै ।
कठबोली कौ निम्न या गैर-प्रतिष्ठित लोगों की शब्दावली ते है ।
कठबोली बोलबे ते बोलने वारेन कौ सामाजिक स्तर या गौरव नीचौ हैमतौ है, ऐसौ कछूक लोग मानतें ।

फट्टू
जुगाड़ी
घंटा
ओए
 काण्ड
ऐस्तैसी
अंगुरिया करनौ
निकम्मौ
बैतल
 गैला
ऊधमगारौ
छैला
छिछोरा
छोट्टिया
 महेरी खाबा
लटूरेन में आग लगा दंगो
पेंदना-पेंदीनी से
चटकी पेंन्दी के
 मूला
बहलोल
सिर्री
घण्टोली
नथोली
सूधौ
भिनगा
 मचूच
दारी के
टेड़ा
 कंजा
भेंडा
कनेटा
 छैल-छबीली
रंगरसिया
भडुआ
रडुआ
चुप्प छिनार
गंजेड़ी
ठोड़ीहला
चिलुआ
चम्पू
चटोरा
चांदमारा
मालामारा
बहरूपिया
 बाबड़े
भोलू
 ऐंठू
 टुंडा
गुटारी
मुच्छड़
गौंछा
दढ़ियल
कलुआ
कटल्ला
अधूंस
पेट्या
रोडू
पद्दू
 रंहट्या
 उर्रु
 लुंड
मलूक

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क्या गाली पुराने समय में भी लोग दिया करते थे ?

एक आदर्श समाज में गाली के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, पर हम जानते हैं ऐसा सिर्फ कल्पनाओं में होता है ।लोग एक-दूसरे को जलील करने के तरीके खोज ही लेते हैं और ये हमेशा करते भी रहेंगे । आपने कभी गौर किया है कि हमारे किसी भी प्राचीन ग्रंथ और महाकाव्यों में गाली का एक शब्द भी नहीं है. महाभारत में इतनी मारकाट और रक्तपात है पर कोई किसी को गाली नहीं देता. जबकि इतना तो तय है कि जन-जीवन में गालियां जरूर रही होंगी. यहां तक कि ग्रीक गंथ्रों, जैसे होमर के महाकाव्य ‘इलियड और ओडिसी’ में भी गाली नहीं मिलती. कालिदास जैसे महान कवि नायिका के अंग-अंग का मादक वर्णन तो करते हैं पर किसी गाली का कोई सन्दर्भ नहीं देते ।गाली शब्द का ज़िक्र होते ही क्यों मां, बहन और बेटियों का ही ख़्याल आता है क्योंकि पुरुषों के लिए तो कोई गाली बनी ही नहीं! तन्वी जैन इन गालियों को औरतों के ख़िलाफ़ 'शाब्दिक हिंसा' मानती हैं.

गालीन कौ वर्गीकरण-

मोटे तौर पै गालीन कूँ पांच परिवारन में विभक्त कर सकतें पहलौ सगे-सम्बन्धीन ते यौन-सम्बन्धन कूँ लै कैं बनबे वारी, दूसरी, शरीर के अंग-विशेष कूँ केन्द्रित करकैं दयी जाबे वारी गाली (जे पश्चिमी देशन में ज्यादा प्रचलित हैं जैसैं asshole, dick, cunt, prick इत्यादि), तीसरी, जानवरन के ऊपर रखकैं दयी जाबे वारी, चौथी है, जाति या नस्ल के नाम पै दयी जाबे वारी और पांचवीं, लिंग के आधार पै बनबे वारी । फुटकर गालीन के रूप में संख्या, फूल, पेड़न के नाम पर बनवे वारी गालीन कौ एक छोटॉ उप-परिवारहु है सकतौ है ।

बाबा जी कौ घंटा
गांडू
बकचो*
सारे
सास के
बहिनचो...
धी के लौंडा
बाबरचो*
बिजलौंडी
 रांडी
रंडी


ब्रजभाषा में आप इन पंक्तिन ते समझबे की चेष्ठा करौ एक बार...
ब्रज की भाषा लगै अति प्यारी,
अति ही सुंदर लागत मोकूँ यहां "सारे" की गारी ।
या भाषा कूँ बोल गये हैं जबते कुंज बिहारी ।
तब ही ते अति सरस भयी, जे बोलत में सुखकारी ।
ओरे!अरे! अरी! कहि बोलैं, सबरे ब्रजवासी नर नारी ।

Brajbhasha mein bodh kathaa v Kavita

💐 *बच्चन में संस्कार बचपन ते ही दैमते रहने चहियैं* 💐

एक संत नै एक द्वार पै घुसते भये आवाज लगायी' " भिक्षाम् देहि"। इतेक ही में एक छोटी बच्ची बाहर  आयी और बोली- बाबा हम तौ बहौत ही ग़रीब हैं, तिहारे लैं हमारे पास दैवे कूँ कछु नाँय । संत बोले-  अरी लाली(छोरी) नाँयी मत करै, अपने आँगन की धूल ही दै दै । छोरी नै एक मुट्ठी भर कैं धूल उठायी और बाबा कूँ दै दई । संत के संग चलबे बारे शिष्य नैं पूछी, गुरु जी! धूलहु कोई भिक्षा हैमतै काह? आपने वा लाली कूँ धूल दैवे की चौं कही ? संत बोले- लाला, अगर बू आज "ना" कह दैमती फिर कबहु ना दै पामती, आज धूल दई तौ काह भयौ, वामें कछु दैवे  की कम ते कम भावना तौ जाग गयी । कल सामर्थवान होयगी तौ फल-फुलहु देगी । *जितेक छोटी कथा है निहतार्थ उतनौ ही बड़ौ*

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Braj Kavita-

 देहरी, आंगन, धूप अनुपस्थित।
 ताल, तलैया, कुआ अनुपस्थित।
 घूँघट वारौ रूप अनुपस्थित। डलिया,चलनी,सूप अनुपस्थित।

आया समय फ्लैट कल्चर कौ,
चौक, आंगन और छत अनुपस्थित।
हर छत पै पानी की टंकी,
पोखर, तालाब, नदी अनुपस्थित।।
लाज-शरम चंपत आँखन ते,
घूँघट वारौ रूप अनुपस्थित।
पैकिंग वारे चावल, दालें,
चक्की,चलनी, सूप अनुपस्थित।
बढ़ीं गाड़ियां, जगह कम पड़ी,
सड़कन के फुटपाथ अनुपस्थित।
 लोग भये बेमतलब सब,
 मदद करें वे हाथ अनुपस्थित।
मोबाइल पै चैटिंग चालू,
यार-दोस्त कौ संग अनुपस्थित।
बाथरूम, शौचालय घर में,
घेर, गौत, जंगल अनुपस्थित।

हरियाली के दर्शन दुर्लभ,
 कोयलिया की कूक अनुपस्थित।
घर-घर जलैं गैस के चूल्हे,
चिमनी वारी फूंक अनुपस्थित।
मिक्सी, लोहे की अलमारी,
 सिलबट्टा, संदूक अनुपस्थित।
मोबाइल सबके हाथन में,
विरह, मिलन की बात अनुपस्थित।

बाग-बगीचे खेत बन गए,
जामुन, बरगद, पेड़ अनुपस्थित।
सेब, संतरा, चीकू बिकते
चिलमटरी,गोंदी, गूलर, अनुपस्थित।
ट्रैक्टर ते है रही जुताई,
जोत-जात में मेंड़ अनुपस्थित।
रेडीमेड बिक रह्यौ ब्लैंकेट,
पालन के घर भेड़ अनुपस्थित।

लोग बढ़ गए, बढों अतिक्रमण,
 जुगनू, तितली, झाड़ अनुपस्थित।
कमरे बिजली ते रहे चमक,
आरे, खूंटी, टांड़ अनुपस्थित।
चावल पकवे लगौ कुकर में,
 बटलोई कौ मांड़ अनुपस्थित।
कौन चबाए चना-चनौरी,
भड़भूजे कौ भाड़ अनुपस्थित।

पक्के ईंटन वारे घर हैं,
छप्पर और खपरैल अनुपस्थित।
बिछे खड़ंजा गली-गलीन में,
 कीच- धूल और गैल अनुपस्थित।
चारे में हु मिलौ केमिकल,
गोबर ते गुबरैल अनुपस्थित।।

शर्ट-पैंट कौ फैशन आयौ,
धोती और लंगोट अनुपस्थित।
खुले-खुले परिधान आ गए,
बंद गले के लत्ता अनुपस्थित।।
 आँचल, चोली और दुपट्टे
 घूंघट वारी ओट अनुपस्थित।
बढ़ी महंगाई के सब मारें
एक-पांच के नोट अनुपस्थित।।

लोकतंत्र अब भीड़तंत्र है,
जनता की पहचान अनुपस्थित।
कुर्सी पानौ राजनीति है,
नेता से सच्चाई अनुपस्थित।
गूगल विद्यादान कर रह्यौ,
गुरु जी कौ सम्मान अनुपस्थित।


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हमारौ ग्रुप प्रेम कौ मंदिर है,
जे बहुत ही सुन्दर है,
      याय और सुन्दर बनाऔ।
मन ऐसौ रखो कै,
      काहु कूँ बुरौ ना लगै।
हृदय ऐसौ रखौ कै,
      काहु कूँ दुःखी नाँय करैं।
संबंध ऐसौ रखो कै,
      वाकौ अंत न होय।
हमने रिश्तेन कूँ संभालौ है मोतीन की तरह,
कोई गिरहु जाए तौ झुक कैं उठा लैमतें ।
ग्रुप नाँय जे परिवार है,
      बसतौ जहाँ पूरौ प्यार है।
सुख के तौ साथी हजार हैं,
     यहां सब जिंदगी के आधार हैं ।
अपनौं सौ प्यार है यहाँ,
     या के लैं सबन कौ आभार है ।
काम होय कोई तौ बता दीजौं,
    या ग्रुप में हर कोई तैयार है ।
सबन कूँ साथ जोडबे के लैं,
     सबन कौ हृदय ते आभार है ।


*ब्राह्मण ओमन सौभरि भुर्रक*

Thursday, 9 January 2020

Learn Brajabhasha New Quotes



 करम बढ़िया होने चहियैं चौं कै समय काहु कौ नाँय हैमत । नैंक सी बात ते ही अर्थ बदल जामतौ है । अंगुरिया उठै तौ *बेइज्जती*👉 , अंगूठा उठै तौ *प्रशंसा* 👍 और अंगूठा ते अंगुरिया मिलै तौ *लाज़बाब*👌 बस जे ही सबरी जिंदगी कौ हिसाब ।

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भाषा शरीर कौ *अदृश्य* अंग है जामें  मनुष्य कौ सब कछु दिखाई दैमतौ है ।



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विश्वास करनौ सीखौ, संदेह तौ सबरौ संसार करतौ है । जिंदगी जब दैमत है तौ *अहसान* नाँय करै और जब लैमतै तौ *लिहाज*



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 संसार में दो संबंधरूपी पौधा ऐसे हैं जो कबहु मुरझामत नाँय और अगर मुरझायगे तौ वाकौ कोई इलाज नाँय, विनमें पहलौ है *निःस्वार्थ प्रेम* और दूसरौ है *अटूट विश्वास*



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मनुष्य की पहिचान भलहीं चेहरा ते होंत होयगी लेकिन वाकौ सम्पूर्ण परिचय तौ वाकी *वाणी*, *विचार*, *कामन* ते ही हैमतै ।

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कमाई की परिभाषा केवल धन ते तय नाँय होय, यामें *अनुभव*, *रिश्ते*, *सम्मान*, *सबक* इत्यादि सम्मलित रहमतें ।

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समझनी पडतें सबन के कष्ट और आवश्यकतायें , यूँ ही या संसार में दीवार और छतन ते घर नाँय बनें करैं ।

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दास बनकें जींगे तौ कुत्ता समझ कैं लात मारैगी जे दुनिया, राजा बनकें जींगे सलाम ठोकैगी जे दुनिया, दम कपड़ान में नाँय दिल में रखौ ।

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तुम पै कितेकहु पढ़ाईन की डिग्रियाँ होंय अगर अपनेन के दुख-दर्द नाँय पढ़ पाए तौ अनपढ़ ते नीचे ही हैं फिर...

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*विकल्प* बहौत मिलंगे मार्ग भटकाबे के लैं लेकिन *संकल्प* एक ही काफ़ी है मंज़िल तक जाबे कूँ ।



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घर के दरवाजे पै घोड़ा की नाल लगाबे ते सफलता नाँय मिलै
सफलता के लैं स्वयं के दौनों पैरन  में घोडा की नाल लगानी   पड़तै ।

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 संबंध कबहु सबते जीतकैं नाँय निभाए जा सकें, संबंधों की खुशहाली के लैं झुकनौं होंतौ है, सहनौ होंतौ है, दूसरेन कूँ जितानौ  होंतौ है और स्वयं हारनौ होंतौ है।
    सच्चे सम्बन्ध ही वास्तविक पूँजी हैं ।

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शांति की तह में छुपा लेओ सबरी उलझनन नैं, हल्ला कबहु कष्टन नैं आसान नाँय करै ।  बहस और बातचीत में एक ही अंतर है, बहस सिर्फ सिध्द करतै कै कौन सही है, जबकि बातचीत जे सिद्ध करतै कै काह सही है ।

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 झूठी शान के पक्षी ही पंखन ते ज्यादा फड़फड़ामतें, बाज की उड़ान में पंखन की कबहु आवाज नाँय होंत ।

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 बदला लैबे की नाँय,बदलाव लाबे की सोच रखौ । समझदार व्यक्ति बू नाँय जो ईंट कौ जबाब पत्थर ते देय, समझदार व्यक्ति बू है जो फेंकी भयी ईंट ते अपनौ घर बनाय लेय ।



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रिश्ते कबहु जिंदगी के संग नाँय चलैं, रिश्ते तौ एक बार बनतें फिर जिंदगी रिश्तेन के संग चलतै ।

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मत होय निरास जीवन ते अपने, काहु हु समय तेरौ नाम बन सकतौ है । अगर दिल में होय आग, और  इच्छा होय प्रबल, तौ चाय बेचबे बारौ हु प्रधानमंत्री बन सकतौ है ।

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हर एक की दृष्टि के अनुसार नाँय सम्भव निर्दोष रहनौ, चलौ चेष्ठा करैं कै स्वयं की दृष्टि में ही निरपराधी रहें ।

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 एक अनौखी सी दौड़ है जे जिंदगी, जीत जाऔ तौ कैउ पीछैं छूट जामतें, और हार जाऔ तौ अपने ही पीछैं छोड़ जामतें ।

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एक पल के लैं मान लैमतें कै किस्मत में लिखौ फैसलौ बदलौ नाँय करै लेकिन आप फैसले तौ लै कैं देखौ, काह पतौ किस्मत ही बदल जाय ।

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 ज्ञान धन ते उत्तम है चौं कै धन की हमकूँ रक्षा करनी पड़तै और ज्ञान हमारी रक्षा करतौ है ।

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कष्ट में अगर सहायता मांगौ तौ सोच-समझ कैं मांगियों चौं कैं
कष्ट थोड़ी देर कौ हैमतौ है और एहसान जिंदगी भर कौ ।

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 जीवन में अच्छे लोगन की खोज मत करौ, स्वयं अच्छे बन जाऔ ,काह पतौ आप ते मिलकें काहु की तलाश पूरी है जाय ।
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 उम्मीद हमें कबहु छोड़ कैं नाँय जाय, जल्दबाजी में हम लोग ही वाय छोड़ दैमतें ।
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 मनुष्य की सबते बड़ी विडंबना जे है कै बू झूठी प्रसंशा सुन कैं बर्बादतौ है सकै, लेकिन सच्ची आलोचना सुन कैं सम्भलनौं पसंद नाँय ।
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 एक मुँह और दो कानन कौ अर्थ हैमतौ है कै हम अगर एक बात बोलें तौ कम से कम दो बात सुनें हु।

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मनुष्य कूँ बोलबौ सीखबे में तीन वर्ष लग जामतें... लेकिन काह बोलनौ है जे सीखबे में पूरौ जीवन लग जामतौ है।

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जलौ केवल वितकूँ, जितकूँ तिहारी आवश्यकता होय...उजारेन में दीपकन के महत्व नाँय होय करें ।

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रास्ता पूछबे में शर्म महसूस नाँय करनौ चहियै, काह पतौ तिहारी मंजिल कौ रस्ता वहीं ते जामत होय जाकौ आपकूँ पतौ ही नाँय होय...

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 जहाज समंदर के किनारे सर्वाधिक सुरक्षित रहमतौ है। मगर वाय किनारे के लैं नाँय, बल्कि समंदर के बीच में जाबे के लैं बनायौ गयौ है ।

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आपकूँ काऊ लक्ष्य के लैं खड़ौ हैनौ होय तौ एक पेड़ की तरह... और गिरौ तौ बीज की तरह... ताकि फिर ते उगकैं वा ही लक्ष्य के लैं लड़ सकैं।

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 काऊ शांत और विनम्र व्यक्ति ते अपनी तुलना करकैं देखौ, आपकूँ लगैगौ कै, आपकौ घमंड निश्चय ही त्यागबे जैसौ है।

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एक मिनट में जिन्दगी नहीं बदलै पर एक मिनट में सोचकैं  लियौ गयौ फैसलौ पूरी जिन्दगी बदल दैमतौ है।

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हर व्यक्ति के अन्दर एक शक्ति छिपी रहमतै जब बू जाग्रत हैमतैं तबही चमत्कार हैमतैं ।

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 वाणी में हु अनौखी शक्ति हैमतै ... कड़वौ बोलबे वारे कौ शहदहु नाँय बिकै.. और मीठौ बोलबे वारे की तौ मिर्चहु बिक जामतें ।
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गीता में लिखौ है कै अगर आपकूँ कोई अच्छौ लगतौ है तौ अच्छौ बू नाँय, बल्कि अच्छे तौ आप हैं चौं कै वामें अच्छाई देखबे वारी नजर आपके पास है ।

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जीवन कौ सबसे बड़ौ अपराध - काऊ की आँखन में आपकी वजह ते आंसून कौ आनौ, और जीवन की सबते बड़ी उपलब्धि - काऊ की आँखन में आंसू आपके लैं आनौ।

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 जब तालाब भरतौ है तब मछली चैंटीन कूँ खामतै और जब तालाब सूखबे लगतौ है तब चैंटी मछलीन कूँ खामतें यानि प्रकृति सबन कूँ कबहु न कबहु अवसर जरूर दैमतै बस अपनी बारी की प्रतिक्षा करौ।"

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दिल बड़ौ रखौ, दिमाग ठंड़ौ रखौ, वाणी कूँ मीठी रखौ फिर कोई आपते नाराज है जाय तौ कींहजौं ।

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 विचार बहते भये पानी की तरह हैंमतौ है यदि आप वामें गंदगी मिलांगे तौ वह नालौ बन जायगौ और यदि सुगंधी मिला दंगे तौ बू ही गंगाजल बन जायगौ।

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समय और समझ दोनों एक साथ भाग्यशाली लोगन कूँ ही मिलतें चौं कै अक्सर समय पै समझ नाँय आवै और समझ आवे पै समय निकल जामतौ है ।

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जो मन की पीड़ा कूँ स्पष्ट रूप ते नाँय कह सकै, वायी कूँ क्रोध अधिक आमतौ है ।

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अगर रिश्तेन में पूरी तरह ते विश्वास, ईमानदारी और समझदारी है तौ इन्नै निभावे के लैं वचन, कसम, नियम और शर्तन  की कोई आवश्यकता नाँय ।

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 स्वयं में बहुत सी कमियन के बावजूद यदि हम स्वयं ते प्रेम कर सकतें, तौ दूसरें में थोड़ी बहुत कमियन की वजह ते विन ते घृणा कैसैं कर सकतें ।

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 स्वर्ग व नरक कोई भौगोलिक स्थिति नाँय, बल्कि एक मनोस्थिति है जैसौ सोचंगे, वैसौ ही पांगे।

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यदि आप बहुत अधिक लोगन पै निर्भर रहमतें तौ आपके निराश हैवे के अवसर हु अधिक है जामतै।

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 कमजोर तब रूकतैं, जब वे थक जामतें और विजेता तब रूकते  जब वे जीत जामतें।

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 ज्ञान कौ समुद्र अथाह है जो जे सोचतौ है कै मैं जो जानतौ हूँ, बू ही पूर्ण सत्य है, बू अंधेरे में ही भटक रह्यौ है।

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 संसार में ना कोई तुम्हारौ मित्र है और ना ही कोई शत्रु , तुम्हारे अपने विचार ही शत्रु और मित्र बनाबे के लैं उत्तरदायी हैमतें।

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 बोलबे में संयमी हौनौ और कार्यन में अग्रणी रहनौ, श्रेष्ठ व्यक्तिन की ही पहचान है।

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मानव के अंदर जो कछू सर्वोत्म है, वाकौ विकास प्रशंसा तथा प्रोत्साहन के द्वारा करौ जा सकतौ है।
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 जाके पास धैर्य और परिश्रम कौ बल है, बू जो कछु चीज की इच्छा करतौ है वाय प्राप्त कर लैमतौ है।

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 🌸🙏 *जय श्री राधे*🙏🌸


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