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Saturday, 27 August 2022

कान्हा की बाललीला ब्रजभाषा में

कन्हैया की एक सुन्दर बाललीला कौ प्रसंग:-

जसुमति मैया ने देखौ कै गाँम के अधिकाँश बालक गुरू जी ससौं शिक्षा ग्रहण करने जात हैं, चाहे अति अल्प समय के लिये ही सही, किन्तु प्रत्येक बालक जात अवश्य हैं गुरूशाला, फिर मेरौ ही कन्हैया चौं नाँय जात? मैया चिन्तित है गई, इतनौ बड़ा है गयौ अब मैं हु याय शिक्षा ग्रहण करबे के लैं भेजूँगी।

ऐसौ विचार कर मैया आँगन में ऊधम मचात भये कन्हैया कूँ पकड़ लाई और बोली: "लाड़ले सुत,शीघ्र ही स्नान आदि कर तत्पर है जा, आज मैं तोय पढ़ने बैठाऊँगी।" सहसा आई या स्थिति ते नटखट कन्हैया अचकचायगे।

विन्नै मैया ते पूछी: "मैया काह पढ़ायौ जामतौ है?"

मैया ने कही: "वेद-शास्त्र पढ़ाये जामत हैं, मेरे लाडले।"

कन्हैया बोले: "मैया ! वेद-शास्त्र पढ़ने ते काह हैमतौ है?"

मैया बोली: "तत्व-ज्ञान मिलतौ है।"

कन्हैया: "ये तत्व काह है, माँ?"

मैया: "परमात्मा ही तत्व है, लाडले।"

कन्हैया ने पुनः पूछी: "मैया, परमात्मा के तत्व कूँ जानवे ते काह होंतौ है?"

मैया ने हु पुनः उत्तर दियौ: "भगवान की भक्ति मिलतै।"

नटखट नन्हे कान्हा अबहु कहाँ चुप रहबे वारे हते, विन्नै तौ आज मानों प्रश्न पर प्रश्न पूछ कैं मैया ते ही सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करनौ है। वह पुनः बोले: "मैया, भक्ति ते कहा मिलैगौ?"

मैया ने कही: "भक्ति ते मुक्ति मिलतै , ईश्वर मिलतैं ।"

कन्हैया: "ईश्वर तौ मिलेगें मैया, जे सत्य है...किन्तु तू जे बता कै वा समय वहाँ तू और बाबा हु मिलंगे या नाँय और यह माखनचोरी हु करने कूँ मिलेगी या नाँय।"

मैया नै अपने लाडले लल्ला कूँ दुलारते, पुचकारते समझाते भये कही: "ओ मेरे प्राण प्रिय माखनचोर! वहाँ माखन की कोई कमी नाँय होगी, वहाँ तोय माखन चुरानौ ही नाँय पडेगौ।"

इतेक सुनते ही नटखट नन्हे कान्हा बिफर उठे, कमल सम नयनों में मोटे-मोटे आँसू झलक आये.....बिसूरत भये बोले: "मैया जहाँ तू नाँय, बाबा नाँय, ग्वालबाल नाँय, माखनचोरी नाँय वहाँ मैं चौं जाऊँ? चौं जाऊँ मैया.....मैं नाँय जाऊँगौ।"

और फिर प्रारम्भ है गईं गहरी गहरी सुबकियाँ व हिचकियाँ: "मैया, मोय नाँय लैनी ऐसी मुक्ति, ऐसी भक्ति....जहाँ सखान के संग माखनचोरी कौ आनन्द नाँय, वहाँ मैं चौं जाऊँ? काह करंगौ मैं वहाँ जाय कैं? नाँय जांगो कतई।"

मैया हतप्रभ ! हृदय में करूणा और वात्सल्य कौ सागर उमढ़बे लग्यौ: "हाय चौं मैं ऐसौ कर बैठी? मेरा लाड़लौ प्राण-धन....इतेक अश्रु अनवरत, मन में इतेक पीड़ा दै बैठी याय, मैया विचलित है गई। मैया के सबरे स्वप्न अपने प्राण-धन के अश्रुन के संग बहन लगे।"

इतकूँ नटखट कान्हा कौ रो-रो कैं बुरौ हाल

"चौं मैं वेद-शास्त्र पढ़ू, अपने मैया बाबा और ग्वाल सखान ते दूर हैबे के लैं"

द्रवित और अभिभूत मैया कूँ अतहिं प्रभावित कर, नटखट नन्हे कान्हा नै मैया की मॉंउ कारूणिक दृष्टि ते देख कैं अत्यधिक अबोध मासूम स्वर में मनुहार करत भये कही:

"मैया, बहुतहिं जोर की भूख लगी है नवनीत और दधि खाने को दै ना।"

विह्वल अधीर मैया ने अपने प्राण-प्रिय-निधनी के धन कूँ अपने में भींच लियौ। धन्य परात्पर प्रभु धन्य यशोदा मैया। 64 दिवस में 64 कलाओं में सिद्ध हस्त हो जाने वारे परमब्रह्म प्रभु की ऐसी वात्सल्यमयी बालसुलभ-लीला।


 ब्रजभाषा गीत:-

किशोरी इतनौ तौ कीजो, लाड़ली इतनौ तौ कीजो,

जग जंजाल छुड़ाय वास बरसाने कौ दीजो ।

भोर होत महलन में तिहारे सेवा में नित जाऊं,

मंगला के नित्त दर्शन पाऊं, जीवन सफल बनाऊं ।

किशोरी मोहे सेवा में लीजो, लाड़ली सेवा में लीजो,

जग जंजाल छुड़ाए वास बरसाने कौ दीजो ।

पड़ी रहूँ मैं द्वार तिहारे, रसिकन दर्शन पाऊं,

भगतन की पद धूलि मिले तौ अपने सीस चढाउँ ।

किशोरी मोहे द्वारे रख लीजो, लाड़ली द्वारे रख लीजो,

जग जंजाल छुड़ाए वास बरसाने कौ दीजो ॥

भूख लगे तौ ब्रजवासिन के टूक मांग के खाऊं,

कबहु प्रसादी श्री महलन की कृपा होए तौ पाऊं ।

किशोरी मेरी विनय मान लीजो, लाडली विनय मान लीजो,

जग जंजाल छुड़ाए वास बरसाने कौ दीजो ॥

राधे राधे रटूं निरंतर तेरे ही गुण गाऊं,

तेरे ही गुण गाय, गाय मैं तेरी ही होय जाऊं ।

किशोरी मोहे अपनी कर लीजो, लाड़ली अपनी कर लीजो ।


(ब्रजप्रदेश: ब्रजभाषा पढ़ो और दैनिक जीवन में थोड़ा लिखो भी )

 एक बेर की बात है कै...

 जशोदा मैया, प्रभु श्री कृष्ण के उलाहनेन सौं तंग आ गयीं हतीं और छड़ी लैकैं श्री कृष्ण की मॉंउ दौड़ीं। जब प्रभु नै अपनी मैया कूँ क्रोध में देख्यौ तौ वे अपनौ बचाव करबे कैं मारें भागन लगे। भगते-भगते श्री कृष्ण एक कुम्हार के पास पहुँचे । कुम्हार तौ अपने मिट्टी के घड़े बनाबे में व्यस्त हतौ। लेकिन जैसे ही कुम्हार नै श्री कृष्ण कूँ देख्यौ तौ बू बहुत प्रसन्न भयौ। कुम्हार जानत हतो कै श्री कृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं। तब प्रभु ने कुम्हार ते कही कै कुम्हारजी !, आज मेरी मैया मो पै बहुत क्रोधित हैं। मैया छड़ी लै कैं मेरे पीछे आ रही है। भैया, मोय कहीं छुपा लेऔ।' तब कुम्हार नै श्री कृष्ण कूँ एक बड़ौ से मटका के नीचें छिपा दियौ। कुछ ही क्षणन में मैया यशोदा हु वहाँ आ गयीं और कुम्हार ते पूछन लगीं- 'क्यूँ रे कुम्हार ! तूने मेरे कन्हैया कूँ कहीं देखौ है, काह ?' कुम्हार  नै कही- 'नाँय तौ मैया ! मैंने कन्हैया कूँ नाँय देख्यौ।' श्री कृष्ण इन सब बातन नै घड़े के नीचे छुपकैं सुन रहे हते। मैया तो वहाँ ते चली गयीं। अब प्रभु श्री कृष्ण कुम्हार ते कहमतैं- 'भैया कुम्हार , यदि मैया चली गयी होय तो मोय या घड़े ते बाहर निकाल।'

            

कुम्हार बोल्यौ- 'ऐसे नाँय, प्रभु जी ! पहले मोय चौरासी लाख योनींन के बन्धन ते मुक्त करबे कौ वचन देऔ।' भगवान मुस्कुराये और कही- 'ठीक है, मैं तुम्हें चौरासी लाख योनींन ते मुक्त करबे कौ वचन दैमतौ हूँ। अब तौ मोय बाहर निकाल देऔ।' कुम्हार कहमन लग्यौ- 'मोय अकेले नाँय, प्रभु जी ! मेरे परिवार के सब लोगन नै हु चौरासी लाख योनींन के बन्धन ते मुक्त करबे कौ वचन देओगे तौ मैं आपकूँ या घड़ा ते बाहर निकालूँगौ।' प्रभु जी कहन लगे- 'चलो ठीक है, विन्नै हु चौरासी लाख योनींन के बन्धन ते मुक्त हैबे कौ मैं वचन दैमतौ हूँ। अब तौ मोय घड़े ते बाहर निकाल देऔ।' अब कुम्हार नै कही- 'बस, प्रभु जी ! एक विनती और है। बा कूँ हु पूरौ करबे कौ वचन दै देओ तौ मैं आपकूँ घड़े ते बाहर निकाल दूँगौ।' भगवान बोले- ' वा हु ऐ बता दै, काह कहनौ चाहमतौ है ?' कुम्हार कहमन लग्यौ- 'प्रभु जी ! जा घड़े के नीचे आप छुपे हो, बाकी मट्टी मेरे बैलन के ऊपर लाद के लायी गयी है। मेरे इन बैलन कूँ भहु चौरासी योनींन के बन्धन ते मुक्त करबे कौ वचन देऔ।' भगवान नै कुम्हार के प्रेम पै प्रसन्न है कैं बिन बैलन कूँ हु चौरासी के बन्धन ते मुक्त हैबे कौ वचन दियौ।' प्रभु बोले- 'अब तौ तुम्हारी सब इच्छा पूरी हो गयीं होंय, तौ मोय घड़े ते बाहर निकाल देऔ।' तब कुम्हार कहमतौ है- 'अबही नाँय, भगवन ! बस, एक अन्तिम इच्छा और है। बा हु कूँ हु पूरौ कर देऔ और वो जे है- जो हु प्राणी हम दोनोंन के बीच के या संवाद कूँ सुननैगौ, बा कूँ हु आप चौरासी लाख योनींन के बन्धन ते मुक्त करौगे। बस, यह वचन दै देऔ तौ मैं आपकूँ या घड़ा ते बाहर निकाल दूँगो।' कुम्हार की प्रेम भरी बातन कूँ सुन कैं प्रभु श्री कृष्ण बहुत खुश भये और कुम्हार की या इच्छा कूँ हु पूरौ  करबे कौ वचन दियौ। फिर कुम्हार नै बाल श्री कृष्ण कूँ घड़े ते बाहर निकालौ। बिनके चरणन में साष्टांग प्रणाम कियौ। प्रभु जी के चरण धोये और चरणामृत पीयौ। अपनी पूरी झोंपड़ी में चरणामृत कौ छिड़काव कियौ और प्रभु जी के गले लग कैं इतेक रोयौ कै प्रभु में ही विलीन है गयौ।       

जरा सोच कैं देखौ जी, जो बाल श्री कृष्ण सात कोस लम्बे-चौड़े गोवर्धन पर्वत कूँ अपनी किन्नी अंगुरिया पै उठा सकतैं, तौ काह वे एक घड़ा नाँय उठा सकते । " लेकिन बिना प्रेम रीझे नहीं नटवर नन्द किशोर" । कोई कितेक हु यज्ञ करै, अनुष्ठान करै, कितेक हु दान करै, चाहे कितनी हु भक्ति करै, लेकिन जब तक मन में प्राणी मात्र के लैं प्रेम नाँय होयगौ, प्रभु श्री कृष्ण मिल नाँय सकत।

राधे राधे ॥ जय श्री कृष्णा


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या कथा कूँ जो हु पढ़ेगौ वाय 84 लाख योनींन ते मुक्ति मिल जायगी।।

( भगवान श्रीकृष्ण की मुँहबोली भाषा #ब्रजभाषा)

🦚 ब्रज के लाल की जय 🦚 

आज की अमावस्या(मावस) "जोगी लीला" के लैं प्रसिद्द है।


आज के दिना भगवान शंकर श्री कृष्ण के दर्शन के लैं पधारे हते। भोले भंडारी शिवजी इन साकार ब्रह्म के दर्शन के लैं आए हैं। यशोदा मैया कूँ पता चलौ कै कोई साधु द्वार पै भिक्षा लैबे के ताहि खड़े हैं। विन्नै दासी कूँ साधु कूँ फल दैबे की आज्ञा दई। दासी नै हाथ जोड़ कैं साधु कूँ भिक्षा लैबे व बाल कृष्ण कूँ आशीर्वाद दैबे कूँ कही।


शिवजी नै दासी ते कही कै, ‘मेरे गुरू नै मो ते कही है कै गोकुल में यशोदाजी के घर परमात्मा प्रकट भए हैं। या  मारें मैं बिनके दर्शन के ताहि आयौ हूँ। मोय लाला के दर्शन करने हैं।’ (ब्रज में शिशुओं को लाला कहमत हैं, व शैव साधून कूँ जोगी कहतैं)। दासी नै भीतर जाय कैं यशोदा मैया कूँ सबरी बात बतायी। यशोदाजी कूँ आश्चर्य भयौ। विन्नै बाहर झाँक कैं देख्यौ कै एक साधु खड़े हैं। विन्नै बाघाम्बर पहिनौ है, गले में सर्प है, मूड पै भव्य जटा है, हाथ में त्रिशूल है। यशोदा मैया नै साधु कूँ बारम्बार प्रणाम करत भए कही कै, ‘महाराज आप महान पुरुष लगतैं। काह आपकूँ जे भिक्षा कम लग रही है? आप माँगिये, मैं आपकूँ वही दउंगी पर मैं लाला कूँ बाहर नाँय लाऊँगी। अनेक मनौतियाँ मानी हैं तब वृद्धावस्था में जे पुत्र भयौ है। जे मोय प्राणन ते हु प्रिय है। आपके गले में सर्प है। लाला अति कोमल है, बू याय देखकैं डर जायगौ।’

जोगी वेषधारी शिवजी नै कही, ‘मैया, तुम्हारौ पुत्र देवन कौ देव है, वह काल कौ हु काल है और संतन कौ तौ सर्वस्व है। बू मोय देखकैं प्रसन्न होयगौ। माँ, मैं लाला के दर्शनन के बिना पानी हु नाँय पीऊँगौ। आपके आँगन में ही समाधि लगाकैं बैठ जाऊँगौ।’


शिवजी महाराज ध्यान करत भए तन्मय भए तब बालकृष्णलाल बिनके हृदय में पधारे और बालकृष्ण ने अपनी लीला करनौ शुरु कर दियौ। बालकृष्ण नै जोर-जोर ते रोबौ शुरु कर दियौ। माता यशोदा नै विन्नै दूध, फल, खिलौने आदि दै कैं चुप्प कराबे की बहुत चेष्टा करी पर वे चुप ही नाँय है रहे हते। एक गोपी नै मैया यशोदा ते कही कै आँगन में जो साधु बैठे हैं विन्नै ही लाला पै कोई मन्त्र फेर दियौ है। तब माता यशोदा जीन नै शांडिल्य ऋषि कूँ लाला की नजर उतारबे के लैं बुलाये। शांडिल्य ऋषि समझ गए कै भगवान शंकरही कृष्णजी के बाल स्वरूप के दर्शन के ताहि आए हैं। विन्नै मैया यशोदा ते कही, मैया! आँगन में जो साधु बैठे हैं, इन कौ लाला ते जन्म-जन्म कौ सम्बन्ध है। मैया विन्नै लाला के दर्शन करवाऔ।’ मैया यशोदा नै लाला कौ सुन्दर श्रृंगार कियौ, बालकृष्ण कूँ पीताम्बर पहिनायौ, लाला कूँ नजर नाँय लगै या मारें गले में बाघ के सुवर्ण जड़ित नाखून पहिनाये। साधू (जोगी) ते लाला कूँ एकटक देखबे ते मना कर दई कै कहीं लाला कूँ बिनकी नजर नाँय लग जाय। मैया यशोदा नै शिवजी कूँ भीतर बुलायौ। 


नन्दगाँव में नन्दभवन के अन्दर आज हु नंदीश्वर महादेव हैं। आज हु नन्दगाँव में नन्दभवन के बाहर 'आशेश्वर महादेव कौ मंदिर है जहां शिवजी श्रीकृष्ण के दर्शनन की आशा में बैठे हैं।


पद: - आयो है अवधूत जोगी कन्हैया दिखलावै हो माई

राग : आसावरी 

कर्ता : सूरदास

आयो है अवधूत जोगी कन्हैया दिखलावै हो माई ॥ ध्रु0 ॥

हाथ त्रिशूल दूजे कर डमरू, सिंगीनाद बजावै ।

जटा जूट में गंग बिराजै, गुन मुकुंदके गावै हो माई ॥ १ ॥

भुजंगकौ भूषण भस्मकौ लेपन, और सोहै रुण्डमाला ।

अर्द्धचंद्र ललाट बिराजै, ओढ़नकों मृगछाला ॥ २ ॥

संग सुंदरी परम मनोहर, वामभाग एक नारी ।

कहै हम आये काशीपुरीतें, वृषभ कियें असवारी ॥ ३ ॥

कहै यशोदा सुनौ सखीयौ, इन भीतर जिन लाऔ ।

जो मांगै सो दीजो इनकों, बालक मती दिखाऔ ॥ ४ ॥

अंतरयामी सदाशिव जान्यौ, रुदन कियौ अति गाढौ ।

हाथ फिरावन लाई यशोदा, अंतरपट दै आड़ौ ॥ ५ ॥

हाथ जोरि शिव स्तुति करत हैं, लालन बदन उघारयौ ।

सूरदास स्वामीके ऊपर, शंकर सर्वस वार्यौ ॥ ६ ॥


साभार:- ब्रजवासी 


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