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ब्रजमण्डल में मेट्रोन के आवे-जाबे की घोषणा ब्रजभाषा में कैसैं होयगी

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Saturday, 30 November 2019

मथुरा जिला (ब्रजमंडल) कौ परिचय और ब्रज भ्रमण ब्रजभाषा में: Full Brajmandal Tour

ब्रजप्रदेश व ब्रजमंडल का परिचय संक्षेप में...



मथुरा क्षेत्रफल के हिसाब ते 3,709 स्क्वायर किलो मीटर में फैलौ भयौ है |पहलें जे जगत विख्यात नगरी, कैउ नामन ते जानी जामत हती जैसें- मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। वाल्मीकि रामायण में मथुरा नगरी कूँ लवणासुर की राजधानी बतायौ गयौ है ।

प्राचीन काल ते लैकैं अब तक या नगर कौ अस्त्वित्व अखंड रूप ते चलौ आ रह्यौ है । पदम पुराण में मथुरा कौ महत्व सर्वोपरि मानौ गयौ है । यद्यपि काशी आदि सभी पुरियाँ मोक्ष दायिनी हैं पर मथुरापुरी धन्य है चौं कै जे देवतान के लिएहु दुर्लभ है । ‘गर्गसंहिता’ में हु पुरियों की रानी कृष्णापुरी मथुरा बृजेश्वरी है, तीर्थेश्वरी है, यज्ञ तपोनिधियों की ईश्वरी हु बतायौ गयौ है ।  

ब्रजमण्डल मनमोहक दृश्य, ऐतिहासिक महत्व के स्थान तथा शानदार शहर, सुनहरे तट, छोटे वाले पर्वत, रंग-बिरंगे लोग, समृद्ध संस्कृति और त्यौहारन कौ क्षेत्र है।
ब्रज विदेशी यात्रीन के लैं, अंतर्राष्ट्रीय छात्र और यहां तक कै प्रवास के इच्छुक व्यक्तिन कूँ एक लोकप्रिय गंतव्य के रूप में अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पै अपनौ स्थान मजबूती ते बना रह्यौ है। स्वास्थ्य और चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में एक आकर्षक गंतव्य के रूप में यहाँ की शाख बढ़ रही है। भारत की यात्रा पर्यटकन कै लैं असाधारण हैमतै, चौं कै आश्चर्यन ते भरे या प्रदेश में दक्षिण के सुंदर समृद्ध समुद्र तट, जादू भरे बैक वॉटर,  प्राचीन सभ्यतान के अवशेष, पर्वत, घाटियां, हरे भरे मैदान और उष्ण-कटिबंधी वर्षावन जैसे दिलकश नजारे लोगन कौ मनमोहबे के रहस्य अपने में समेटे भये हैं।

जे कह्यौ जामतौ है कै यदि आपनै विश्वभ्रमण लियौ लेकिन ब्रजमंडल नाँय देखो तौ आपने अब तक केवल और केवल आधी दुनिया ही देखी है ।  पर्यटन की दुनिया में अपनी ऐतिहासिक विश्वधरोहर और परंपरागत आध्यात्मिकता के मारें ब्रज एक नए गंतव्य के रूप में अत्यंत तेजी ते उभर कर सामने आयौ है। जे दोनों ही बात विश्वभर के उत्साही पर्यटकन कूँ अपनी ओर आकर्षित करतें।
योगेश्वर श्री बालकृष्ण जी कौ निज धाम, विनकी बाल लीलान कौ साक्षी एवं उनकी प्रियतमा श्री राधारानी कौ हृदय है ब्रज धाम। भारत वर्ष में अनेक तीर्थ स्थल जैसैं अयोध्या, द्वारिका, चित्रकूट, चार धाम इत्यादि स्थित हैं। इन्हीं सब धामन में ब्रज मण्डल अपनौ अनूठौ महत्व रखतौ है। भक्ति रस में ब्रज रस की माधुरी अनुपमेय है। भगवान श्री कृष्ण नै ब्रज में प्रकट है कैं रस की जो मधुरतम धारा प्रवाहित करी वाकी समस्त विश्व में कोई तुलना नाँय। बड़े-बड़े ज्ञानी, योगी, ऋषि मुनि, देवगण सहस्त्र वर्ष प्रभु के दर्शन पावे कूँ तप करतें फ़िर हु वो प्रभु कौ दर्शन प्राप्त नाँय कर पामत वहीं या ब्रज की पावन भूमि में विश्वप्रभु श्री कृष्ण सहज ही सुलभ है जामतें। भगवान श्री कृष्ण के नैन की ओर देखबे ते ही भव बाधा ते पार है जामतें। या ही लैं किन्हीं संत ने कही है: -
मोहन नैना आपके, नौका के आकार ।
जो जन यामें बस गयौ है, गयौ भव ते पार ।।

ब्रज गोपिका विनके मनोहारी रूप की प्रशंसा करत भये कहमतें: -

आओ प्यारे मोहना पलक झपक तोय लैउं ।
ना मैं देखूं तो कूँ, और ना काऊ कूँ देखन दैउं ।।



        समस्त ब्रज मण्डल कूँ रसिक संतजनन नै बैकुण्ठ ते हु सर्वोपरि मानौ है। या ते ऊपर और कोई धाम नाँय हत, जहाँ प्रभु नै अवतार लै कैं अपनी दिव्य लीला करी होंय। या ब्रज भूमि में नित्य लीलाकर्ता श्रीकृष्णजी की बांसुरी के ही स्वर सुनाई दैमतें और अन्य काऊ कौ कोलाहल नाँय सुनाई दैमत। यहाँ तौ नेत्र और श्रवणेन्द्रिय हु प्रभु की दिव्य लीलान कौ दर्शन और श्रवण करतैं। यहाँ के रमणीय वातावरण में पक्षीन कौ चहकनौ, वायु ते लतान कौ हिलनौ, मोर बंदरों कौ वृक्षन पै कूदनौ, यमुना के जल प्रवाहित हैवे की ध्वनि, समस्त ब्रज गोपिकान कौ यमुना ते अपनी- अपनी मटकी में जल भरकैं लानौ और विनकी पैंजनीन की झनझनाट, गोपिकान कौ आपस में हास-परिहास, ग्वालवालन कौ अपने श्याम सुन्दर के संग नित्य नयी खेल-लीलान कौ करनौ, सब बाल-सखान ते घिरे  भये श्री कृष्ण कौ बड़ी चपलता ते गोपियन कौ मार्ग रोकनौ और उनसे दधि कौ दान माँगनौ। यमुना किनारे कदम्ब वृक्ष के ऊपर बैठकैं बंशी बजानौ और बंशी की ध्वनि सुनकैं सभी गोपिकान कौ यमुना तट पै दौड़कैं आनौ और लीला करनौ । जे ही सब नन्द नन्दन की नित्य लीला या ब्रज में भई हैं। यहाँ की सभी कुँज-निकुँज बहुत ही भाग्यशाली हैं चौं कैं कहूँ पै प्यारे श्याम सुन्दर कौ काऊ लता में पीताम्बर उलझौ तौ कहूँ काऊ निकुँज में श्यामाजू कौ आँचल उलझौ। प्रभु श्री श्याम सुन्दर की सब निकुँज लीला सब भक्तन, रसिकजन, सन्तन कूँ आनन्द प्रदान करतें।

 ब्रज कौ हर वृक्ष देव है, हर लता देवांगना है, यहाँ की बोली में माधुर्य है, बातन में लालित्य है, पुराणन कौ सौ उपदेश है, यहाँ की गति ही नृत्य है, रति को हु जे स्थान त्याग करने में क्षति है, कण-कण में राधा-कृष्ण की छवि है, दिशान में भगवद नाम की झलक, प्रतिपल कानन में राधे-राधे की झलक, देवलोक-गोलोक हु याके समक्ष नतमस्तक हैं। सम्पूर्ण ब्रज-मण्डल कौ प्रत्येक रज-कण,  वृक्ष, पर्वत, पावन  कुण्ड-सरोवर और श्री यमुनाजी श्रीप्रिया-प्रियतम की नित्य निकुंज लीलाओं के साक्षी हैं। श्री कृष्ण जी ने अपने ब्रह्मत्व का त्याग कर सभी ग्वाल- बाल और ब्रज गोपीन के संग अनेक लीला करी है। यहाँ विन्नै अपनौ बचपन बितायौ। जामें विन्नै ग्वाल बालन के संग क्रीड़ा, गौ चारण, माखन चोरी, कालिया दमन आदि अनेक लीला करी हैं। भगवान कृष्ण की इन लीलान पै ही ब्रज के नगर, गाँव, कुण्ड, घाट आदि स्थलन कौ नामकरण भयौ है।

ब्रजक्षेत्र कौ नक्शा (Map Of Braj Region)-

किसी भी सांस्कृतिक भू-खंड के सास्कृतिक वैभव के अध्धयन के लिये उस भू-खंड का प्राकृतिक व भौगोलिक अध्ययन अति आवश्यक होता है। भू-संरचना की दृष्टि से ब्रज को तीन प्राकृतिक भागों में विभाजित किया जा सकता है - (1) मैदानी भाग (2) पथरीला या पहाड़ी भाग और (3) खादर का भाग ।




ब्रजमंडल के मंदिर-
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लगभग 5000 से ज्यादा मंदिरन कौ रजिस्ट्रेशन है मथुरा जिले के बसे भये क्षेत्रन में- या में बृन्दाबन, बरसाना ,गोवर्धन ,दाऊजी ,नंदगांव,गोकुल,महावन, खदिरवन आदि खेत्र शामिल हैं ।
इन में ते दो बटके से मंदिर तौ अकेले वृन्दावन में है ।
 वृन्दाबन के बारे में जे कहावत है- या ही कौ नाम तौ वृन्दाबन है यों तौ मंदिर तौ गाम गाम में हैं ।

नीचें हम कछु मंदिरन के बारे में बता रहे हैं ।

1- ब्रज के मंदिर
1- कृष्ण जन्भूमि मंदिर(मथुरा )
2- बांकेविहारी मंदिर(वृन्दावन )
3- राधाबल्लभ मंदिर (वृन्दावन )
4- द्वारकाधीश मंदिर (मथुरा )
5- गोकुलनंद मंदिर (बिरला टेम्पल )(मथुरा )
6- कृष्णबलराम मंदिर (इस्कोन ) (वृन्दावन )
7- अष्टसखी मंदिर (वृन्दावन )
8- श्री गोविन्द देव मंदिर(वृन्दावन )
9- रंग जी मंदिर (वृन्दावन )
10- प्रेम मंदिर (वृन्दावन )
11- दाऊजी मंदिर (बल्देव )
12- नन्द भवन (गोकुल )
13- गिर्राज जी (गोवर्धन )
14- श्री जी मंदिर (बरसाना )


2- ब्रज में पर्वत-
 ब्रज में 5 पर्वत या पहाड़िया हैं:

 • गोबर्धन  • नंदगाँव  • बरसाना  • कामबन  • चरण  


3- ब्रज के टीले-

ब्रज में कच्चे टीले भी बहुत संख्या में हैं। मथुरा नगर का अधिकांश भाग इन टीलों पर बसा हुआ है और नगर के चारों ओर भी दूर-दूर तक अनेक टीले फैले हुए हैं। इनमें से अधिकांश टीलों के अन्दर मथुरा नगर के प्राचीन काल में बार-बार बसने और उजड़ने के पुरातात्विक अवशेष छुपे हुऐ हैं। इनमें कंकाली यीला, भूतेश्वर टीला, कटरा केशवदेव टीला, गोकर्णश्वर टीला, सप्तॠषि टीला, जेल टीला, चौबारा टीला   महोली के समतल किये गये टीले, छाता का टीला, भौगाँव का टीला, नगला सांकी का टीला, सुनरख के टीले, वृन्दावन के पुराने गोविन्द मन्दिर टीला, मदनमोहन मन्दिर टीला, गोंदा आटस का टीला, कीकी नगला का टीला, माँट का टीला, गौसना का टीला, भरतपुर का नोंह का टीला आदि-आदि उल्लेखनीय हैं। 

4- मथुरा की नदियाँ- 
गर्गसंहिता में यमुना के पचांग - १.पटल, २. पद्धति, ३. कवय, ४. स्तोत्र और ५. सहस्त्र नाम का उल्लेख है। 

5- ब्रज की झील- 

नौहझील-
यह मथुरा जिला की छाता तहसील के अन्तर्गत इसी नाम के ग्राम के समीप स्थित है ।

कीठम झील-
यह दिल्ली आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग सख्या-२ पर रुनकुता नामक ग्राम के समीप स्थित है। ब्रज की यह सरम्य स्थली सैलानियों के लिये आकर्षण का भी केन्द्र है।

मोती झील (दूसरी)-
यह भरतपुर के समीप का जलाशय है, जो वहाँ की रुपारेल नामक छोटी नदी के पानी से भरा जाता है।

केवला झील-
यह अत्यन्त सुंदर झील भरतपुर के समीप है, जो अजान बंध के जल से भरी जाती है। शरद ॠतु में इस झील के किनारे देश-विदेश के अगणित जल पक्षी विहार करने हेतु पहुँचते हैं। सैलानी उन पक्षियों को देखने के लिए यहां आते हैं।

मोती झील-
यह वृन्दाबन रमणरेती में स्वामी अखंडानंद आश्रम का एक जलाशय है। यह कफी गहरा है और इसके फर्स सहित चारों ओर से पक्का है। इसमें उतरने के लिये चारों ओ सीड़िया निर्मित हैं, जो पस्तर की हैं। इसमें वर्षा के जल को संचित कर लिया जाता है, किन्तु वर्तमान समय में अल्प वर्षा के कारण खाली रह जाती है और इसमें जो अल्प जल रहता भी है तो वह बहुत पवित्र नहीं है।

5- ब्रज के 12 वन-
(१) मधुबन, (२) तालबन, (३) कुमुदबन, (४) बहुलाबन, (५) कामबन, (६) खिदिरबन, (७) वृन्दाबन, (८) भद्रबन, (९) भांडीरबन, (१०) बेलबन, (११) लोहबन और (१२) महाबन


6- ब्रज के सरोवरें-
ब्रज में चार सरोवर हैं जिनके नाम हैं - पान सरोवर, मान सरोवर, चंद्र सरोवर और प्रेम सरोवर।

पान सरोवर-
ब्रज के नंदगाँव का यह एक छोटा जलाशय है। 

मानसरोवर-
वृन्दावन के समीप यमुना के उस पार है। यह हित हरिवंश जी का प्रिय स्थल है यहाँ फाल्गुन में कृष्ण पक्ष ११ को मेला लगता है।

चन्द्र सरोवर-
यह गोबर्धन के समीप पारासौली ग्राम में स्थित है। इसके समीप बल्लभ सम्प्रदायी आचार्यो द्वारा वैठकें आयोजित की जाती थीं और यह सूरदास जी का निवास स्थल है।

प्रेम सरोवर-
यह बरसाना के समीप है। इसके तट के समीप एक मंदिर है। भाद्रपद मास में इस सरोवर पर नौका लीला का आयोजन और मेला होता है।


7- ब्रज के कुण्ड-

ब्रज में अनेक कुंड हैं, जिनका अत्यन्त धार्मिक महत्व है। आजकल इनमें से अधिकांश जीर्ण-शीर्ण और अरक्षित अवस्था में हैं, जो प्राय सूखे और सफाई के अभाव में गंदे पड़े हैं। इनके जीर्णोद्धर और संरक्षण की अत्यन्त आवश्यकता है, क्योंकि इन कुंडों के माध्यम से भूगर्भीय जल स्तर की बड़ोतरी होती है साथ-ही-साथ भूगर्भीय जल की शुद्धता और पेयशीलता बड़ती है। कवि जगतनंद के अनुसार ब्रज में पुराने कुंडों की सख्या 159 है तथा बहुत से नये कुंड भी हैं। उन्होंने लिखा है पुराने 159 कुंडों में से 84 तो केबल कामबन में हैं शेष 75 ब्रज के अन्य स्थानों में स्थित हैं। 

 उनसठ ऊपर एकसौ, सिगरे ब्रज में कुंड।
 चौरासी कामा लाखौ, पतहत्तर ब्रज झुँड।। 
औरहि कुंड अनेक है, ते सब नूतन जान। 
कुंड पुरातन एकसौ उनसठ ऊपर मान।।

8- ब्रज के ताल- 

ब्रज में बहुत से तालाब हैं जो काफी प्रसिद्ध हैं। कवि जगतनंद ने केवल दो तलाबों - रामताल और मुखारीताल का वर्णन प्रस्तुत किया है। १ इनके अतरिक्त भी बहुत से तालाब हैं, जिनमें मथुरा का शिवताल प्रसिद्ध है।
दोइ ताल ब्रज बीच हैं, रामताल लखिलेहु।
और मुखारी ताल है, 'जगतनंद' करि नेहु।।

9- ब्रज की पोखर-

ब्रज में अनेकों पोखर अथवा बरसाती कुंड हैं। कवि जगतनंद ने उनमें से 6 का नामोल्लेख किया है वो पोखर निम्नलिखित हैं -

(१) कुसुमोखर (गोबर्धन) (२) हरजी ग्वाल की पोखर (जतीपुरा) (३) अंजनोखर (अंजनौ गाँव) (४) पीरी पोखर और (५) भानोखर बरसाना तथा ईसुरा जाट की पोखर (नंदगाँव) है। उनमें कुसुम सरोवर को ब्रज के जाट राजाओं ने पक्के विशाल कुंड के रूप में निर्मित कराया था।

10- ब्रज की बाबड़ी-

इनका प्रयोग ब्रज प्रजा पेय जल के प्राप्त करने के लिये करती थी। ब्रज में अभी भी कई प्रसिद्ध और सुन्दर बावड़ी है, किन्तु ये जीर्ण अवस्था में पड़ी है। इनमें मुख्य निम्न वत हैं - ज्ञानवापी (कृष्ण जन्मस्थान, मथुरा), अमृतवापी (दुर्वासा आश्रम, मथुरा), ब्रम्ह बावड़ी (बच्छ बन), राधा बावड़ी (वृन्दाबन) और कात्यायिनी बावड़ी (चीरघाट) हैं।

11- ब्रज के कूप-

ब्रज में बहुसख्यक कूप हैं जिनका उपयोग आज भी ब्रजवासी पेय जल प्राप्त करने के लिये करते हैं। ब्रज मंडल के अधिकांश ग्रामों की आवसीय परिशर में भूगर्भीय जल खारी है अथवा पीने के लिये अन उपयोगी है। अतः इस संदर्भ में कहावत प्रचलित कि भगवान कृष्ण ने बचपन की सरारतों के चलते ब्रज के ग्रामों की आवसीय परिशर के भू-गर्भीय जल को इस लिये खारी (क्षारीय) और पीने के लिये अन उपयोगी बना दिया ताकि ब्रज गोपियाँ अपनी गागर लेकर ग्राम से बाहर दैनिक पेय जल लेने के लिये निकले और कृष्ण उनके साथ सरारत करें, उनकी गागरों को तोड़ें और उनके साथ लीला करें। आज भी ब्रज ग्रामीण नारियों को सिर पर मटका रख ग्राम से बाहर से जल लाते हुए समुहों के रूप में ग्राम बाहर के पनधट और कूपों पर देखा जा सकता है। पेय जल के साथ-साथ इन कूपों का ब्रज में धार्मिक महत्व भी है। कवि जगतनंद के समय में १० कूप अपनी धार्मिक महत्ता के निमित्त प्रसिद्ध थे। इनके नाम इस प्रकार वर्णित हैं -
(१) सप्त समुद्री कूप, (२) कृष्ण कूप, (३) कुब्जा कूप (मथुरा), (४) नंद कूप (गोकुल और महाबन), (५) चन्द्र कूप (चन्द्र सरोवर गोबर्धन), (६) गोप कूप (राधा कुंड), (७) इन्द्र कूप (इंदरौली गाँव-कामबन), (८) भांडीर कूप (भाडीर बन), (९) कर्णवेध कूप (करनाबल) और वेणु कूप (चरण पहाड़ी कामबन)

12- ब्रज के उपवन- 

ब्रज के पुराण प्रसिद्ध २४ उपबनों के नाम कवि जगतनंद ने इस प्रकार लिखे हैं -
(१) अराट (अरिष्टबन), (२) सतोहा (शांतनुकुंड), (३) गोबर्धन, (४) बरसाना, (५) परमदरा, (६) नंदगाँव, (७) संकेत, (८) मानसरोवर, (९) शेषशायी, (१०) बेलबन, (११) गोकुल, (१२) गोपालपुर, (१३) परासोली, (१४) आन्यौर, (१५) आदिबदरी, (१६) विलासगढ़, (१७) पिसायौ, (१८) अंजनखोर, (१९) करहला, (२०) कोकिला बन, (२१) दघिबन (दहगाँव), (२२) रावल, (२३) बच्छबन और (२४) कौरबबन

13- ब्रज की कदमखण्डी-

ब्रज में संरक्षित बनखंडो के रूप में कुछ कदंबखंडियाँ थी, जहाँ बहुत बड़ी संख्या में कदंब के वृक्ष लगाये गये थे। उन रमणीक और सुरभित उपबनों के कतिपय महात्माओं का निवास था। कवि जगतनंद ने अपने काल की चार कदंवखंडियों का विवरण प्रस्तुत किया है। वे सुनहरा गाँव की कदंबखंडी, गिरिराज के पास जती पुरा में गोविन्द स्वामी की कदंबखंडी, जलविहार (मानसरोवर) की कदंबखंडी और नंदगाँव (उद्धवक्यार) की कदंबखंडी थी।

14- ब्रज १६ पुराने घाट-

कवि जगतनंद द्वारा उल्लखित पुराने घाटों के नाम निम्नलिखित हैं -

(१) व्रमहांड घाट (महाबन), (२) गौ घाट, (३) गोविन्द घाट, (४) ठकुरानी घाट, (५) यशोदा घाट, (६) उत्तरेश्वर घाट (गोकुल), (७) वैकुंठ घाट, (८) विश्रांत घाट, (९) प्रयाग घाट, (१०) बंगाली घाट (मथुरा), (११) राम घाट, (१२) केशी घाट, (१३) विहार घाट, (१४) चीर घाट, (१५) नंद घाट औ (१६) गोप घाट (वृन्दाबन)

15- ब्रज में विद्यमान 16 देवियां-

कात्यायनी देवी, शीतला देवी, संकेत देवी, ददिहारी, सरस्वती देवी, वृंदादेवी, वनदेवी, विमला देवी, पोतरा देवी, नरी सैमरी देवी, सांचैली देवी, नौवारी देवी, चौवारी देवी, योगमाया देवी, मनसा देवी, बंदी की आनंदी देवी।

16- ब्रज क्षेत्र के प्रमुख महादेव मंदिर-

भूतेश्वर महादेव, केदारनाथ, आशेश्वर महादेव, चकलेश्वर महादेव, रंगेश्वर महादेव, नंदीश्वर महादेव, पिपलेश्वर महादेव, रामेश्वर महादेव, गोकुलेश्वर महादेव, चिंतेश्वर महादेव, गोपेश्वर महादेव, चक्रेश्वर महादेव 

17- नृत्य व नाट्य रुप-

वर्तमान रास-नृत्य
कत्थक नृत्य और रास
नरसिंह नृत्य
चुरकुला नृत्य
होली नृत्य

ब्रज उत्तर भारत का एक विशेष धार्मिक क्षेत्र है। ब्रज के आधार पर कई नामकरण हुए हैं।

ब्रज- धार्मिक क्षेत्र
ब्रजवासी- ब्रज की नागरिकता
ब्रजभाषा- ब्रज की भाषा
ब्रज रज- ब्रज की मांटी 
ब्रज परिक्रमा- ब्रज की परिक्रमा
ब्रज रत्‍न- ब्रज का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
ब्रजवुड-ब्रज का सिनेमा
ब्रज संस्कृति- ब्रज की संस्कृति


ब्रज की प्रसिद्ध परिक्रमायें-

A- 84 कोस परिक्रमा- 

जो ब्रज 84 कोस की, परिकम्मा एक दैंतौ है ।
लख चौरासी योनिन के,  संकट हरि हर लैंतौ है ॥

ब्रज की परिधि यानी चौरासी कोस में करीब 35 पड़ाव है। मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले भक्त ध्रुव की तपोस्थली ध्रुवघाट स्थित मंदिर से शुरू होकर मधुवन पहुंचती है। यहा से तालवन, कुमुदवन, शातनु कुण्ड, सतोहा, बहुलावन, राधा-कृष्ण कुण्ड, गोवर्धन, काम्यक वन, संच्दर सरोवर, जतीपुरा, डीग का लक्ष्मण मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, जल महल, कमोद वन, चरन पहाड़ी कुण्ड, काम्यवन, बरसाना, नंदगाव, जावट, कोकिलावन, कोसी, शेरगढ, चीर घाट, नौहझील, श्री भद्रवन, भाडीरवन, बेलवन, राया वन, गोपाल कुण्ड, कबीर कुण्ड, भोयी कुण्ड, ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर, दाऊजी, महावन, ब्रह्माड घाट, चिंताहरण महादेव, गोकुल, लोहवन से होकर वृंदावन मार्ग में अनेक पौराणिक स्थलों के दर्शन चौरासीकोस यात्रा में होते हैं।

B- गिर्राज जी की परिक्रमा-
 कछु माखन कौ बल बढ़ौ, कछु गोपन करी सहाय ।
श्री राधे जू की कृपा से गिरिवर लियौ उठाय ।।

श्री गोवर्धन मथुरा से 20 किमी० की दूरी पै स्थित है। पुराणन के अनुसार श्री गिरिराज जी कौ पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत ते ब्रज में लाये हते। दूसरी मान्यता जे हु है कै त्रेता युग में दक्षिण में जब राम सेतुबंध कौ कार्य चल रहा हतो तौ हनुमान जी या पर्वत कूँ उत्तराखंड ते ला रहे हते। लेकिन सेतुबन्ध कौ कार्य पूर्ण हैबे की देववाणी कूँ सुनकैं हनुमान जीन नै या पर्वत कूँ ब्रज में स्थापित कर दियौ। गोवर्धन पर्वत बहुत द्रवित भए और इन्नै हनुमान जीन ते कही कै मैं श्री राम जी की सेवा और विनके चरण स्पर्श ते वंचित रह गयौ। जे वृतांत हनुमानजीन नै श्री राम जीन कूँ सुनायौ तौ राम जी बोले द्वापर युग में मैं या पर्वत कूँ धारण करंगो एवं याय अपनौ स्वरूप प्रदान करंगो।

भगवान श्री कृष्ण बलराम जीन के संग वृन्दावन में रहकैं अनेक प्रकार की लीला कर रहे हते। विन्नै एक दिन देखौ कै वहाँ के सब गोप इन्द्र-यज्ञ करने की तैयारी कर रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण सबके अन्तर्यामी और सर्वज्ञ हैं विनते कोई बात छिपी नाँय हती। फ़िर हु विनयावनत है कैं विन्नै नन्दबाबा ते पूँछी- बाबा आप सब जे काह कर रहे हो? तौ नन्दबाबा और सब के सब ब्रजवासी बोले - "लाला, हम इन्द्रदेव की पूजा करवे की तैयारी कर रहे हैं। वो ही हमें अन्न, फ़ल आदि दैमतौ।" या पै कन्हैया नै सब ब्रजवासीन ते कही , अन्न, फ़ल और हमारी गैयान कूँ भोजन तौ हमें जे गोवर्धन पर्वत दैमतौ है। तुम सब ऐसे इन्द्र की पूजा काहे कूँ करतौ। मैं तुम सबन ते गोवर्धन महाराज की पूजा करवांगो जो तुम्हारे सब भोजन, पकवान आदिन कूँ पावैगो और सबन कू आशीर्वाद हु दैवैगौ। या बात पै सब ब्रजवासी और नंदबाबा कहमन लगे - लाला! हम तौ पुराने समय ते ही इन्द्र कूँ पूजते आ रहे हैं और सब सुखी हैं, तू काहे कूँ ऐसे देवता की पूजा करावै जो इन्द्र हम ते रूठ जाय और हमारे ऊपर कछु विपदा खड़ी कर देय। तौ लाला नै कही - ’आप सब व्यर्थ की चिन्ता कूँ छोड़ कैं मेरे गोवर्धन की पूजा करौ। तौ सबन नै गोवर्धन महाराज की पूजा की और छप्पन भोग, छत्तीस व्यंजन आदि सामग्री कौ भोग लगायौ। भगवान श्री कृष्ण जी गोपन कूँ विश्वास दिलावे कै लैं गिरिराज पर्वत के ऊपर दूसरे विशाल रूप में प्रकट है गये और विनकी सब सामग्री खावे लग गए। जे देख सब ब्रजवासी बहुत प्रसन्न भये। जब अभिमानी देवराज इन्द्र कूँ पतौ लगौ कै समस्त ब्रजवासी मेरी पूजा कूँ बंद कर कैं काऊ और की पूजा कर रहे हैं, तौ वे सब पे बहौत ही क्रोधित भए। इन्द्र नै तिलमिला कैं प्रलय करबे वारे मेघन कूँ ब्रज पै मूसलाधार पानी बरसाने की आज्ञा दई। इन्द्र की आज्ञा पाय कैं सब मेघ सम्पूर्ण ब्रज मण्डल पै प्रचण्ड गड़गड़ाहट, मूसलाधार बारिश, एवं भयंकर आँधी-तूफ़ान ते सारे ब्रज कौ विनाश करबे लगे। जे देख कैं सब ब्रजवासी दुखी हैकैं श्री कृष्ण जी ते बोले - "लाला तेरे कहवे पै हमने इन्द्र की पूजा नाँय करी, जाके मारें बू नाराज है गयौ है और हमें भारी कष्ट पहुँचा रह्यौ है अब तू ही कछु उपाय कर । श्री कृष्ण जी नै सम्पूर्ण ब्रज मण्डल की रक्षा हेतु गोवर्धन पर्वत कूँ खेल-खेल में उठा लियौ एवं अपनी बायें हाथ की कनिका उंगली पै धारण कर लियौ और समस्त ब्रजवासियों, गैया वाके नीचे एकत्रित कर लयी। श्री कृष्ण जी नै तुरन्त ही अपने सुदर्शन चक्र  ते सम्पूर्ण जल कूँ सोखबे के लैं आदेश करौ। श्री कृष्ण जी ने सात दिन तक गिरिराज पर्वत कूँ उठाये रखौ और सब ब्रजवासी आनन्दपूर्वक वाकी छ्त्रछाया में सुरक्षित रहे। या ते आश्चार्यचकित इन्द्र कूँ भगवान की ऐश्वर्यता कौ ज्ञान भयौ एवं वो समझ गये कै जे तौ साक्षात परम परमेश्‍वर श्री कृष्ण जी हैं। इन्द्र ने भगवान ते क्षमा-याचना की एवं सब देवतान के संग स्तुति की।

श्रीवृन्दावन के मुकुट स्वरूप श्री गोवर्धन पर्वत श्री कृष्ण के ही स्वरूप हैं। श्री कृष्ण सखाओं सहित गोचारण हेतु नित्य यहाँ आमतें तथा विभिन्न प्रकार की लीलान कूँ करतें। प्राचीन समय ते ही श्री गोवर्धन की परिक्रमा कौ पौराणिक महत्व है। प्रत्येक माह के शुक्लपक्ष की एकादशी ते पूर्णिमा तक कैउ लाख भक्त यहाँ की सप्तकोसी परिक्रमा पैदल एवं कुछ भक्त दंडौती (लेटकैं) लगामतें । प्रति वर्ष गुरु पूर्णिमा (मुड़िया पूनौ) पर यहाँ की परिक्रमा लगाबे कौ विशेष महत्व है । श्री गिरिराज तलहटी समस्त गौड़ीय सम्प्रदाय, अष्टछाप कवि एवं अनेक वैष्णव रसिक संतन की साधाना स्थली रही है।

C- दाऊजी की परिक्रमा-

D- शनिदेव की परिक्रमा-

E- मथुरा वृन्दावन की परिक्रमा-

F- पिसाये गाम की परिक्रमा-
इस रमणीक स्थल को 'ब्रजभक्ति विलास' में 'पिपासा बन' कहा गया है। इसके प्राकृतिक सौंदर्य की प्रशंसा करते हुए ग्राउज ने लिखा है - यह मथुरा जिले का सबसे सुन्दर स्थल है, जो काफी विस्तृत भी है। इसमें प्राकृतिक चौकों की कई पंक्तियाँ हैं, जिनके चारों और कदंब के वृक्षों की कतारें हैं। इनके साथ कहीं-कहीं पर छोटे वृक्ष पापड़ी, पसेंदू, ढ़ाक और सहोड़ के भी है। ये चौक ऐसे नियमित रूप में वन गये हैं, कि इन्हें प्राकृतिक कहना कठिन है।
G-अपने गॉंवों की परिक्रमा-

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ब्रजक्षेत्र के संदर्भ में साधु- संतन द्वारा गाये भये कछु गीत और कहावत-

ब्रज वृन्दाबन स्याम पियारी भूमि है। 
तँह फूल-फूलनि भार रह द्रुम झूमि हैं।।
नव दंपति पद अंकनि लोट लुटाइयै। 
ब्रज नागर नंदलाल सु निसि-दिन गाइयै ।।
नंदीस्वर बरसानौ गोकुल गाँवरौ। 
बंसीबट संकेत रमत तँह सावरौ।।
गोवर्धन राधाकुंडसजमुना जाइयै ।
 ब्रज नागर नंदलाल सु निसिदिन गाइयै।।

कहाँ सुख ब्रज कौसो संसार !
कहाँ सुखद बशीबट जमुना, यह मन सदा विचार।।
कहाँ बन धाम, कहाँ राधा संग, कहाँ संग ब्रज-बाम।
कहाँ रस-रास बीच अन्तर सुख, कहाँ नारी तन ताम।।
कहाँ लता तरु-तरुप्रति, झूलन कँज-कुँज नव धाम।
कहाँ बिरह सुख गोविन संग सूर स्याम मन काम।।
   (सूरदास स. १५३५-१६४०) 


कहा करौ बैकुंठहि जाय ?
जहाँ नहि नन्द जसोदा गोपी, जहाँ नहीं ग्वाल-बाल और गाय।
जहाँ न जल जमुना कौ निर्मल, और नहीं कदमनि की हाय।
'परमानन्द' प्रभुचतुर ग्वालिनी, बज-रज तजि मेरी जाइ बलाय।।
जो बन बसौं तो बसौ वृन्दावन, गाँव बसौं तो बसौं नन्दगाम।
नगर बसौं तो मधुपुरी, यमुना तट कीजै विस्राम।।
गिरि जो बसौं तो बसौं गोवर्धन, अद्भुत भूतल कीजै ठाम।
'कृष्णदास' प्रभु गिरिधर मेरौ, जन्म करौ इति पूरन काम।।

भगवान शंकर जी कूँ हु यहाँ गोपी बननौ पड़ौ -
"नारायण ब्रजभूमि कूँ, को न नवावै माथ, जहाँ आप गोपी भये श्री गोपेश्वर नाथ।

सूरदास जी लिखतें- "जो सुख ब्रज में एक घरी, सो सुख तीन लोक में नाहीं"।

बृज की ऐसी विलक्षण महिमा है कि स्वयं मुक्ति भी इसकी आकांक्षा करती है -
मुक्ति कहै गोपाल सौ मेरि मुक्ति बताय।
ब्रज रज उड़ि मस्तक लगै मुक्ति मुक्त है जाय॥

वृन्दावन धाम कौ वास भलौ, जहाँ पास बहै यमुना पटरानी।
जो जन न्हाय के ध्यान करै, बैकुण्ठ मिले तिनकूँ रजधानी॥

 वृन्दावन के वृक्ष को मरम न जानें कोय, यहाँ डाल डाल और पात पात श्री राधे-राधे होय ।

हम ना भई वृन्दावन रेनू,
तिन चरनन डोलत नंद नन्दन नित प्रति चरावत धेनु।
हम ते धन्य परम जे द्रुम वन बाल बच्छ और धेनु।
सूर सकल खेलत हँस बोलत संग मध्य पीमत धेनु॥

वृन्दावन सौ वन कहूँ नाँय, नन्दगाँव सौ गाँव।
बंशीबट सौ बट कहूँ नाँय, कृष्ण नाम सौ नाम॥

 ब्रज चौरासी कोस में, चार धाम निजधाम। वृन्दावन और मधुपुरी, बरसानौ, नंदगाँव ।

*ब्रजप्रदेश* की राजकीय भाषा मथुरा वृन्दावन की आदर्श *ब्रजभाषा*  ही है, आप अधिकतर इसी मानक भाषा का प्रयोग करें । वो सही मायने में मानक ब्रजभाषा है । भगवान *श्रीकृष्ण*  की भाषा है ।


💐 * ब्रजभाषा के dialects*  💐 -

*आदर्श ब्रजभाषा*- ब्रजमंडल 84 कोस (राजधानी- ब्रजप्रदेश)
*पश्चिमी ब्रजभाषा*- भरतपुर, आधा मेवात, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर ।
*उत्तरी ब्रजभाषा*- बुलन्दशहर, नोएडा, अलीगढ़, हाथरस, कासगंज, बंदायू, संबल, पलवल ।
*पूर्वी ब्रजभाषा*- एटा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, आगरा
*दक्षिणी ब्रजभाषा*- भिंड,मुरैना, ग्वालियर ।



ब्राह्मण ओमन सौभरि भुर्रक, ब्रजवासी
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संबंधित लिंक...



ब्रजक्षेत्र के प्रतीक

कदम्ब कौ पेड़ (Cadamba) : Brajbhasha-
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कदम्ब कौ पेड़ ब्रज में सब पेड़न में लोक प्रिय ऍह |
भगवान कृष्ण कूँ अति प्यारौ लगतौ ऍह |
जब गेंद निकारबे कूँ बिन नै यमुना में छलांग लगाई हती,तौ बू कदम्ब कौ ई पेड़ हत कहियो |
आजकल नौघरेन (नयौ घर या वाड़ा ) में कहूँ -कहूँ मिल जामतौ ऍह |
गोपिकान के वस्त्र हरण करे हते, तबऊ कदम्ब के पेड़ कौ ही बर्णन मिलतौ ऍह |
वैसे कदम्ब के पेड़ के पत्ता और बीजन ते ” इत्र ” बनायौ जामतौ ऍह |
या की पत्ती,छाल,फल कूँ समान मात्रा मे लेंकैं काढ़ौ पीबे ते टाईप २ डायाबिटीज ठीक है जामतै |
कभऊ-कभऊ औरतें ऊ सिंगार के रूप में प्रयोग करतें |
गैया-
ब्रज में “गैया” (गइया ) ऐसौ जानवर ऍह, जाय माँ के रूप में देखौ जामतौ ऍह |
ई कृष्ण की अति प्यारी चीजन में ते एक ऍह |
या में (गइया में ) सबरे देवतान कौ वास बतामत कहियें, ऐसौ पुराणन में लेख मिलतौ ऍह |
अन्य जानवरन की तुलना में ई सब ते उत्तम दूध दैमतै |
वैदिक काल ते ई “गइया” कौ बड़ौ ई महत्व रह्यौ ऍह |
गइयाँन की भारत में ३० ते ऊ ज्यादा नस्ल पायी जामतें |
विश्व में गइयाँन की कुल संख्या १३ खरब (1.3 बिलियन) हैबे कौ अनुमान ऍह, बिन में ते भारत में 281,700,000 (२८ करोड़ ते ज्यादा ) एन्ह |
गइयाँन राखबे भारत कौ 5 मौ स्थान ऍह |
ब्रज भूमि में “गइया मैया” की सब ते ज्यादा गऊशाला हैं |
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मोरा-
ब्रज कौ सबसे प्रसिद्द पक्षी “मोरा” ऍह |
ब्रज मोरा सबेरे-सबेरे (धौंताय) कुक्यामते भये देखे जा सकतैं |
देखबे में बहौतई मलूक लगतें |
कृष्णा अपने मुकुट में “मोरपंख” राखत हते (हत कइये )|
कृष्णा कन्हैया कूँ बड़े प्यारे लगत हत कइये “मोरा पक्षी” , ऐसौ पुराण में बर्णन मिलतौ ऍह |
मोरा एक ऐसौ पक्षी ऍह जो सम्भोग करे ई बिना, आँसूँन नै मोरनी कूँ पिलबा कैं अपनी संतान उत्पत्ति करबामतौ ऍह |
ई काम बू तब करतौ ऍह जब नाचतौ ऍह |
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पारंपरिक रहबे , बिछाबे, फटकबे , रखबे के संसाधन 
पुराने समय ते ई काँस (एक प्रकार की घास ),डाब (जटिल घास ), सरपते,बिनडॉरी आदिन कौ बड़ौ ई महत्व रह्यौ हतै |
1-बोइया (काँस तेरोटी रखबे बारौ डिब्बा ),
2-सूप (फटकबे के लें बिनडॉरी की सिरकीन ते बनामतैं)
3-ईंड़ई (ई डाब ते बनतै,और बोझ उचबे कूँ सिर के नीचें लगामतैं )
4-बुर्जी और बिटौरा की छान (इन्नै बनाबे कूँ बिनडॉरी कौ प्रयोग हैमतौ ऍह)
5-छप्पर (छप्पर छायबे कूँ बिनडॉरी के पत्ता (सरपतेन )कौ प्रयोग हैमतौ ऍह )

1-गूंजा-(ई चून(आटा) ते बनबे बारी ऐसी मिठाई ऍह याके अंदर पंजीरी या खोवा (खोया ) भर कैं बनामतैं ) |
2-मठरी (मट्ठी )-(ई ऊ आटे ते बनबे बारी सुखी खाबे की चीज ऍह जो सबेरे-सबेरे (धौंताय ) जलपान करबे के काम आमतै (बू ऊ चाय के संग) )
3-सकलपारे-(सकलपारेन नै बनाबे कूँ गुड़ या चीनी के घोल ते आटौ गूँथ कैं फिर बा के बाद, नैक-नैकसे टुकड़ा बना कैं करैया(कढ़ाई ) में तल दैमतैं )
4-सैमरी (सेवईयां )-(आटे ते बनी पतरी-पतरी रेशेदार किनकी )
5-महेरी-(छाछ और जौ के दानेन ते बनी चीज जो सबेरे कलेऊ के काम आमतै )
6-दरिया(दलिया)-(गेहूं ते बनौ हलकौ भोजन जो सबेरे जलपान और बीमार लोगन के लें बड़ौ फायदेमंद )
7-अंगा-(आटे ते टिक्की जैसे मोटे आकार में बनबे बारौ भोजन जो बरोसी (अंगीठी )में कोरन ते सेक कैं पका कैं बनबे बारौ भोजन )

साभार:- ब्रजवासी 


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